■ पिशाचिनी का प्रतिशोध ■ भाग 48
( पिशाचिनी सिद्धि )
______________________________________________________________________________ पकड़ो.... पकड़ों.. .।
जानें ना पाय.....।
अरे इधर से घेरो .....।
देखो कैसे ......तेजी से ....भाग रहा है।
हाय राम!........ इतना ...छोटा... बालक।
जितनें मुहँ उतनीं ढेंरों बातें ,
कुछ लोग उस बालक को पकड़नें हेतु उस के पीछे पीछे दौड़ रहे थे।
किन्तु वह बालक ऐसे दौड़ रहा था मानों वह किसी रेश का अंतरराष्ट्रीय स्तर का धावक हो,वह सब को पीछे छोड़ता हुआ गाँव की ओर भागता हुआ जा रहा था,अतः जो लोग उसे पकड़नें की कोशिशें कर रहें थे, वह अब उसे अपनीं पकड़ से निकलता हुआ देखकर , हताश होकर कुछ दूरी पर खड़े हो चुके थे, और कुछ वापिस लौट आए थे।
आश्रम पर विष्णु महायाग का आयोजन किया गया था,उसी आयोजन में श्रीकृष्ण लीला का मंचन भी आश्रम पर गत वर्षों की भांति आयोजन किया गया था,इसी कार्यक्रम में जब आम पब्लिक भाग लेनें आई थी, तो इसी बीच इस धावक बच्चें नें एक महिला और उसके छोटे बच्चे की हत्या ,निर्मम ढंग से हाथों से पीट पीट कर,और अपनें नुकिलें दाँतों से कर दी थी, और साथ ही मौक़ाय बारदात से भाग छूटा था।
अतः कार्यक्रम संचालकों ने इस दुःखद घटना के घटते ही श्रीकृष्ण लीला के मंचन कार्यक्रम को बीच में ही रोक दिया था ,और उस बच्चे को पकड़नें हेतु कुछ उत्साही लोग , उस बालक को पकड़ने हेतु दौड़ पड़े थे, ।
इसी बीच वह बालक तेजी से भागता भागता गाँव की ओर आ गया था, और गाँव के निकट खड़ें सरकंडों के जँगल में जाकर एकदम से गुम हो गया।
आनन फानन में पुलिसकर्मियों को सूचित कर दिया गया।
पुलिस के आनें के साथ ही पुलिस का एक विशेष दस्ता अपनें कार्य में मुश्तैदी से जुट गया , लगभग एक घण्टें में दोनों डैड बॉडीज़ पंचनामा कर ,सील कर के पोस्टमार्टम कराने को भेज दीं गईं थीं, पूरा जनसमुदाय इन हत्याओं से दहला हुआ था, स्वामी जी महाराज के चेहरे पर शिकन उभर आई थी, एक तो अभी कुछ समय पूर्व घटित द्वाररक्षक की निर्मम हत्या से ही माहौल बिगड़ा हुआ था ,उसपर भी इस नई घटना नें एक दम कहर बरपा दिया था, ।
महाराज जी का शिष्य इंस्पेक्टर बी शंकरन पहिलें से ही बहुत चिंतित थे, पिछले केस की भी अभी चार्जशीट दाखिल नहीं होपाई थी कि ऊपर से इस नई घटना से और भी उस पर दबाब बढ़ चुका था। अतः इंस्पेक्टर बी शंकरन किसी पागल कुत्ते की तरह पूरे गाँव में उस बालक की तलाश में भटक रहा था, किन्तु उस बालक का तो नामोनिशान भी उसे उस गाँव में नहीं मिला था, अतः हताश होकर इंस्पेक्टर साहब नें विभाग से डॉग स्क्वायड को बुला लिया था ।
डॉग स्क्वायड के हैंडलर नें टाइगर की पीठ थपथपाते हुए उसे घटना स्थल पर उस अपराधी बालक की कैप, और सनग्लासेस को सूंघाकर उसे छोड़ दिया, टाइगर सीधा दौड़ता हुआ उस स्थान पर जा पहुँचा ,जहाँ पर वह बालक सरकंडों के जंगल में गुम हो गया था, उसके पीछें पीछे उसका हैंडलर और पुलिस टीम के जवान भी दौड़तें दौड़तें उस स्थान पर जा पहुँचें ,उन्होनें देखा उस स्थान पर एक छोटी से गुफ़ा दिख रही थी, अतः पुलिस अधिकारी के आदेश पर पूरी गुफ़ा की ख़ुदाई कराई गई जिसमें कोई भी एसा सूत्र नहीं मिला जिसका कोई भी सम्बन्ध उस बालक से जुड़ता था, अतः हताश निराशा के दामन पकड़ें पुलिस अधिकार पुनः वापिस आश्रम पर लौट चुकें थे, इसी के साथ मेरा मन का संदेह भी अब डांवाडोल हो रहा था, आख़िर यह हत्याओं का सिलसिला रुकना ही जरूरी था, अतः मैं महाराज जी के निकट इस विषय में विचार करनें हेतु उनकी शरण में जा पहुँचा।
मुझें अपनीं ओर आता देख महाराज जी नें कहा।
आओ मास्टरसाहव, बैठो।
मैं महाराज जी के पायताने की ओर पड़ी एक कुर्सी पर बैठ गया।
महाराज जी यह सिलसिला कब तक चलता रहेगा।
मैंने महाराज से विनय की।
चिंता मत करो, अभी समय नहीं आया है,।
वह कुछ देर विचार कर बोलें।
मगर, इस घटना से तो यहाँ का पूरा जनमानस चिंतित है महाराज जी,साथ ही लोग पुलिस की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है।
हाँ यह सत्य है, पर तुम इस रहष्य को भलिंभाँति जानतें हो।
मैं मौन था, महाराज जी का इशारा मैं समझ चुका था,और यह रहष्य भी सत्य था, वह दुष्टात्मा बालक अब अपराध करनें की अपनीं प्रवृत्ति नई तरह की वदल चुका था।
महाराज जी ,मुझें क्या करना होगा?
फिलहाल तुम समय की ही प्रतीक्षा ही कर सकतें हो।
अभी हम आपस में बात कर ही रहे थे कि महाराज जी का शिष्य पुलिस इंस्पेक्टर बी शंकरन , महाराज जी के निकट आया ।
आओ वत्स ,कैसे चिन्तित हो।
महाराज जी वहुत ही ताज्जुब की बात है कि हमारें कार्य क्षेत्र में दो दो घटनाएं घट गई हैं और हम हैं कि उन घटनाओं में लिप्त किसी भी अपराधी को पकड़ना तो दूर , चिन्हित भी नहीं कर सकें हैं, बार बार ऊपर से जबाब माँगा जा रहा है।
वत्स, अभी तुम पर समय अनुकूल नहीं है, अत: किसी तरह अपना समय पास करो।
इंस्पेक्टर बी शंकरन महाराज जी के चरण स्पर्श करते हुए उठा और अपनी बुलेट मोटरसाइकिल पर सबार होकर निकल गया।
मैं महाराज जी के निकट चुपचाप बैठा रहा।
वहुत देर होचुकी थी ,किन्तु महाराज जी को नहीं कुछ बोलना था ,इसलिय वह मौन धारण किए रहें।
मेरे मन में ढेंरों प्रश्न आरहें थे किंतु उनका समाधान नहीं था,महाराज जी मौन धारण कर चुके थे,।
प्रिय मित्रों जब से आश्रम पर यह घटनाएं घटीं थीं ठीक तभी से मेरा मित्र अमरप्रताप चौहान का आना एक दम बन्द होंगया था, उसके परिवार से उसकी पत्नी आकांक्षा सिंह भी आश्रम पर नहीं आई थी।
महाराज जी अमरप्रताप आश्रम पर कब से नहीं आया है।
मैंने महाराज जी से एकाएक पूँछा।
पर महाराज जी नें कोई उत्तर नहीं दिया।
अब आप यहाँ से जाएं, क्योंकि स्वामी जी समाधिस्थ हैं।
महाराज जी के प्रधान सेवक नें मुझसें तेज आवाज में कहा।
अतः मैं बिना कुछ बोलें वहाँ से चुपचाप उठकर आश्रम के दक्षिणी द्वार पर आकर कुछ सोच नें लगा, उसी समय वहाँ तैनात वह पुलिस कर्मी मेरें नज़दीक आया और मुझसें बोला,।
मास्टरसाहव क्या आप हमारी मदद कर सकतें हैं।
जी क्यों नहीं, अगर हम से जो कुछ यथा सम्भव होगा, हम आपका सहयोग करेंगें।
मैंने उस पुलिस बालें से कहा।
देखिए आप हमारे साहब के साथ मिलकर कुछ ऐसे लोगों की सूची बनबा दीजिए जो गाँव में संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त हैं।
लेकिन इसके लिए तो आपको अथवा आपकें अधिकारियों को ग्राम प्रधान से मिलकर सूची बनानी चाहिये क्योंकि जितनीं नॉलिज स्थानीय लोगों में होगी उतनीं मुझें जानकारी नहीं हैं।
मैंने उस पुलिस कर्मी को समझाया।
अभी हम आपस में बात कर ही रहे थे कि इसी बीच इंस्पेक्टर बी शंकरन भी वहाँ पर आया।
मैंने इंस्पेक्टर साहब को नमस्कार किया ,और अपनीं वार्तालाप को बंद कर दिया था।..........शेषांश आगे।
Written By H.K. Joshi.