■ पिशाचिनी का प्रतिशोध ■ भाग 37
(पिशाचिनी सिद्धि)
_______________________________________________________________________________ प्रिय पाठक मित्रों, आपनें गतांक में पढ़ा कि मैं भोजनोपरांत अपनें शयनकक्ष में अभी शयन हेतु पहुँचा ही था कि, मेरी पत्नी नें मुझें अवगत कराया कि मेरा मित्र चौहान मेरी प्रतीक्षा बैठक में बैठें हुए अति व्यग्रता से कर रहे हैं,तो मैं यह सुनकर अति तीव्रता से उठकर अपनें मित्र के निकट उत्सुकता से बैठक में पहुँचा ,मैंने देखा वह सिर नीचे झुकाए चिंता में मग्न कुछ सोच रहा था।
मुझें बैठक में आया देखकर वह मुझ से उठकर वहुत व्यग्रता से मेरे गले लग गया ,साथ ही मुझ सें वह अति दुःखित स्वर में बोला।
भाई कुछ समझ में नहीं आ रहा है, कि मेरी क़िस्मत में क्या लिखा ही ख़राब है ?, या फिर मुझसें मेरे भगवान ही रूंठें हैं।
एसी क्या बात है दोस्त ? चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा, अब तुम वताओ कि भावीजी की अब तवियत कैसी है, क्या डिलीवरी समय पर हो गई, और डिलीबरी का क्या रिज़ल्ट सामनें निकला।
मैं एक सांस में सब कुछ पूँछ लेना चाहता था अपनें मित्र से।
लेकिन वह कुछ बतानें के बजाए मेरी ओर दुःख भरी नजरों से देखता रहा,वह वहुत देर तक।
अरे भाई तुमनें अभी तक भाबीजी के बारे में बताया नहीं बताया नहीं,।
मैंने अपना पुनः वही प्रश्न उसको दोहराया।
...................।
परन्तु यह क्या वह मेरीं बात को शायद सुन नहीं रहाथा या फिर किसी सोच में जकड़ा होनें के कारण मेरीं बातें उसनें सही तरह से सुनीं ही नहीं थी, अतः मैंने उसका हाथ हिलाते हुए कहा।दोस्त कया बात है, बतातें क्यों नहीं ?
क्या बताऊँ दोस्त आज तुम्हारी भावी को नर्सिंगहोम में भर्ती किये पूरा पौन महीना हो चुका है, किन्तु डिलीबरी के नाम पर तो अभी कुछ ऐसा हुआ ही नहीं ,डॉक्टर और भी आश्चर्यचकित हैं कि कभी उन्हें लगता है कि बच्चा अभी दोघण्टे में होजायेगा.....पर तुरन्त लेबररूम में ले जानें और जच्चाबच्चा कि धड़कनें चैक करनें पर लगता है कि ....बच्चा है ही नहीं, और फिर लेबर रूम से वाहर निकलते ही बच्चे की हार्डबीत स्प्ष्ट सुनाई देनें के साथ साथ बच्चे की हरमूमेंट स्पष्ट दिखती है,कई बार जब से भर्ती किया है तुम्हारी भाबीजी को तब से अब तक छह बार अल्ट्रासाउंड होचुकी है, और परिणाम वही असमञ्जस से भरा विज्ञान भी फेल हो गया यहाँ पर तो,।
मेरा मित्र कहते कहते मौन होंगया।
क्यों भाई ऐसी क्या बात हुई अल्ट्रासाउंड की।
मैंने चौंक कर अपनें मित्र से पूँछा।
मेरे दोस्त दो अल्ट्रासाउंड में साफ दिखता है कि बच्चा उसके गर्भ में है, स्वस्थ है, पर चार अल्ट्रासाउंड में बच्चे के या गर्भवती होनें के कोई लक्षण कोई भी दूर दूर तक नहीं मिलतें.....अब भाई आप ही बताओ कि मैं क्या बताऊँ आपको।
वह दुःख और आश्चर्य सेमिश्रित स्वर में बोला।
मुझें अपनें मित्र चौहान की बात सुनकर ताज्जुब हुआ, मैंने उसको बोला ।
अरे भाई ऐसा अजूवा तो पहिलीबार सुन रहाहूँ।
हाँ दोस्त ....हाँ यही बात तो मुझसें उस नर्सिंग होम के डॉक्टरों और नर्स,भी कहरहीं हैं।
ओह माई गॉड ....।
अचानक मेरे मुहँ से निकला तो उस प्रेतात्मा की बात सच होनें जा रही है।
मैं मन ही मन विचारनें लगा।
मेरे भाई मुझें रास्ता दिखाओ अब मैं क्या करूँ। मेरा मित्र मुझसें कहते कहते सिसक नें लगा अपनी पत्नी की दुर्दशा याद करते करते।
चलो ,उठो हाथ मुहँ धोकर भाईसाब आप जलपान करें मैं तब तक आपको खाना लगाती हूँ।
मेरी पत्नी जलपान की ट्रे टेबिल पर रखती हुई बोली।
हाँ यार सब ठीक होजाएगा, तू जल्दी से फ़्रेश होकर आओ और नाश्तें के बाद खाना खालो हम लोग तुरन्त चलतें हैं।
दोस्त ,भूखप्यास सब कुछ खत्म होचुकी है मेरी, पर चाय जरूर पियूँगा।
वह लंबी लंबी श्वांशों को भरता हुआ बेचैनियों से भर गया।
इसतरह हम दोनों उसके ट्रैक्टर पर सबार होकर हम लोग अपनें गन्तव्य पर निकल चुके थे ,मेरा मित्र चौहान अपनें ट्रैक्टर को फुल स्पीड से चला रहा था, हम दोनों निडर साहस के साथ अपनें गंतब्य पर अग्रसर थे, अभी हमारे सामनें कोई भी भय वाधाएँ नहीं आईं थीं,रात्रि का दूसरा चरण समाप्ति की ओर था पूरी सड़क पर खामोशी कासाम्राज्य को चुनोती देती ट्रैक्टर की ठक ठक की आवाज सुनाई दे रही थी, कभी कभार कोई टैक्सी अथवा एम्बुलेंस की सायं सांय और हैडलाइट जरूर कुछ समय को हमारे ध्यान को भंग करतीं चलीं जातीं थीं,हम निरन्तर आगे आगे बडरहे थे कि एक गाँव जो सड़क के नज़दीक था उसे क्रॉस करते हुए हम आगे बढ़ें ही थे कि हमारा ट्रैक्टर अचानक चलते चलते रुक गया।
क्या हुआ।
मैंने अपनें दोस्त से पूँछा।
पता नहीं देखता हूँ।
कहता हुआ वह उतर कर अपनें ट्रैक्टर को वह चैक करनें लगा,लगभग दस पन्द्रह मिनट तक वह अपनी नॉलिज के अनुसार उसे ठोक पीट करता रहा ,ततपश्चात उसनें ट्रैक्टर को स्टार्ट किया, ट्रैक्टर स्टार्ट हो गया और अगलें पल उसने अपने पैर का दबाब एक्सीलेटर पर दिया, पर यह क्या ?ट्रैक्टर अपनें पिछले दो पहियों पर खड़ा हो गया,।
सम्भल के दोस्त एक दम इतनीं रेस मत दो, सावधानी बरतें।
मैंने अपनें मित्र चौहान को अबगत कराया।
मेरे बात मानकर उसनें ट्रैक्टर को बंद करनें के बाद पुनः स्टार्ट किया, किन्तु इसबार भी वही क्रिया ट्रैक्टर नें की ,हम लोग कुछ देर को शांत होकर ट्रैक्टर पर बैठ गए और ठीक पन्द्रह मिनट बाद ट्रैक्टर स्टार्ट किया, इसबार भी वही क्रिया हमारे साथ दोहराई गई,कुछ समझ नहीं आरहा था घ्र बार प्रयास करनें पर वही क्रिया ट्रैक्टर के अगलें दो पहिए हवा में ऊपर उठ जाते ,जैसे कोई घुड़सवार किसी घोङे की एड़ देनें के बाद अचानक लगम कसकर खींच ले और परिणाम स्वरूप घोड़ा अपनें पिछले पैरों पर हिनहिनाता हुआ खड़ा होजाये, वही मनज्जर हमारे साथ होरहा था,।
है भगवान अभी तो हमारी मंज़िल वहूटी दूर है कैसे पहुँचेंगे वहाँ तक।
मैं मन ही मन बुदबुदाया।
मेरा मित्र भी उतरकर मुझ से बोला।
अब क्या करें।
इतनीं रात में कोई और विकल्प नहीं हाँ ऐसा होसकता है कि हम लोग ट्रैक्टर को यही छोड़कर पैदल चलतें हैं रास्तें में अगर कोई वाहन हमें लिफ्ट देदे शायद।
मगर इसका क्या करें।
चौहान अपनें ट्रैक्टर की ओर संकेत करता हुआ बोला।
कोई बात नहीं हम इसे यहीं एक तरफ खड़ा करदेतें है।
ठीक है भाई।
वह बेमन से स्वीकृति देता बोला।
और अगलें पल हम अपना आवश्यक सामान लेकर पदयात्रा करनें लगे, लगभग आधा घण्टे बाद हमें किसी फोरव्हीलर की हैडलाइट्स हमारे पीछे से आती हैं दिखीं।
चलो अच्छा है, कोई वाहन तो आरहा है, वेहतर है,यह हमें बरेली तक लिफ्ट दे दे।
हम लोग सड़क के किनारे खड़े होकर उस वाहन की प्रतीक्षा करने लगे, लगभग दस मिनट बाद वह वाहन आया हम नें उस वाहन को रोकने हेतु हाथ दिया ,ड्राईवर ने तुरन्त वाहन रोक दिया,और हम से बोला।
कहाँ जाओगे।
भाईसाहब बरेली अर्जेन्ट जाना है, आप हमें मदद करें जो आपका किराया हो हम देंगें, पर हमें निराश ना करें।
मेरा दोस्त उस से बोला।
वह ड्राइबर भला मानुष था अतः उसनें हमें तुरन्त दरवाजा खोलकर अंदर आने दिया, डूबते को तिनके का सहारा ही वहुत होता है, सो मित्रों हम दोनों उस वाहन पर सवार होकर हम बरेली की ओर बढ़ चले,रात्रि में सड़क खाली होने के कारण वह वाहन अस्सी नब्बे की स्पीड पर सरपट भागरहा था जैसे ही हम थोड़ा राम गंगा से आधाकिलोमिटर दूर रहे होंगें कि एक काला साया जो लम्बाई में नो दस फीट का था मुझें स्प्ष्ट हमारे वाहन के साथ दौड़ने लगा। ड्राइवर सामनें दृष्टि किये अपनी मंजिल पर केन्द्रित था, मेरा मित्र अपनी पत्नी के ख्यालों में गुमसुम बैठा था। अचानक मेरीं छटी इंद्री नें खतरे का संकेत कर मुझें सचेत रहने को कहा। मेरीं दोनों आँखें उस साया को देख चुकीं थीं अतः मैं सोच रहाथा कि यह साया हमें जरूर हानि पहुँचा सकता है,अतः मैं मन ही मन अपनें इष्ट का ध्यान कर जाप में सलग्न हो गया, अचानक वह वाहन बीचाबीच पुल पर एक दम खड़ा हो गया।
क्या हुआ ड्राइबर साहब क्यों रोक दी।
मेरा मित्र उस से बोला।
पता नहीं क्यों रुक गई है।
ड्राइबर साहब ने पुनः गाड़ी स्टार्ट की, किन्तु यह क्या गाड़ी अपनी जगह से एक इंच तक नहीं हिली।
अचानक मेरीं दृष्टि पीछे की ओर गई और मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही मैं उस कौतूहल को देखरहा था कि अचानक मुझे ख्याल आया, अगर इस प्रेत आत्मा ने अगर रेश देनें के बाद अगर गाड़ी छोड़ दी तो निश्चित ही तौरपर हम लोग दुर्घटना का शिकार हो जायेंगे।
अगलें पल मैंने अपनें मित्र की वांह पकड़ कर साइड का गेट खोलकर छलाँग लगादी,इधर हमदोनों नें छलांग लगाई दसरी तरफुस प्रेतात्मा नें हँसते हुए उस गाड़ी को छोड़ दिया, जिसके परिणाम स्वरूप वह तेजी से जम्प लेती हुई रामगंगा के पुल से पहले टकराकर हब में उछली और अगलें पल गाड़ी गंगा में गिर गई।
मैं पलभर को सन्न रहगया,मैं और मेरा मित्र मौत के मुहँ से बाल बाल बचें।मैंने उस काले साये को देखा वह अब वहाँ से गायव हो चुका था,मैंने अपनें मित्र से उस साया के बारे में जिक्र नहीं किया, अतः हमें अब उस वाहन चालक कीजान बचानें की कोई ना कोई युक्ति निकलनी थी, अतः मैंने अपने मित्र से कहा ,इस पुल से थोड़ी दूर पर पुलिस चौकी है अतः तुम अतिवेग से जाकर इतला करो।
मौक़े की स्थिति को भाँपते हुए मेरे मित्र नें अविलम्ब सूचना दी और उसी के साथ कुछ पुलिसकर्मियों का वहां आना हुआ जिनके प्रयास से उस वाहन चालक को तुरन्त निकलबाकर हॉस्पीटल भेज दिया गया , इस सब कार्य में सुवह के चार बज चुके थे, अतः हम दोनों मित्र उस नर्सिंग होम में दाखिल हुए तो मेरे मित्र की पत्नी को डिलीवरी हेतु लेबर रूम में लेजाया जा चुका था अतः हम हॉस्पिटल की एक बैंच पर बैठकर प्रतीक्षा करनें लगे, पूरी रात जागने और थकान के कारण मुझें निद्रा ने आघेरा, और उसी क्षण उस प्रेत आत्मा नें मुझसें सुषुप्त अवस्था में सम्पर्क साधा और मुझें सलाह दी कि तुम इस परिवार से दूर रहो तो बेहतर है।
मैं चौंककर उठा,देखा मेरा मित्र चौहान उस समय वह वहाँ नहीं था, अतः मैं उठकर वॉशरूम जलनें के बाद फ्रेश हो चुका था अतः वृह्ममुहूर्त में मैं संध्या से निवर्त होचुका था अतः मैंने अपनी थैली से अभिमंत्रित पीली सरसों दाने निकाल कर अपनें मित्र को दिये, साथ ही आदेश दिया कि वह इन दानों को अपनी पत्नी के कंठ में किसी काले वस्त्र में लपेटकर बांध दें।
अतः मेरे मित्र नें यह कार्य अति शीघ्रता से किया। और उसका परिणाम यह हुआ कि हॉस्पिटल की मुख्य डॉक्टर ने आकर मेरे मित्र को बताया कि अब उनके मरीज़ के प्रसव पीड़ा शुरू हो चुकी है, शायद दोचार घण्टे में कोई खुश खबरी उन्हें मिलजाए।
प्रिय पाठक मित्रों आपके मन में सबाल जरूर उठरहे होंगें कि।
प्रश्न 01:> क्या प्रेत भी महिलाओं के गर्भ से जन्म ले सकता है ?
>:02 क्या प्रेत की सन्तान मानव जैसी होगी?
03:> क्या उस प्रेतात्मा से मेरे मित्र को छुटकारा मिलता हैं अथवा नहीं ?
04>: क्या प्रेत का बालक आगे अपनी कोई प्रेतलीला दिखाएगा?
05>:क्या नर्सिंग होम की डॉक्टर उस बच्चे को सही तरह जन्म दिला पाएँगी?
इन सभी प्रश्नों के उत्तर जाननें के लिये पढ़िए, अगला भाग
■ पिशाचिनी का प्रतिशोध ■
भाग 38 (पिशाचिनी सिद्धि)
Written By H.K.Joshi. P. T. O.