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पिशाचिनी का प्रतिशोध भाग 39

17 अप्रैल 2022

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■ पिशाचिनी का प्रतिशोध ■ भाग 39
               (पिशाचिनी सिद्धि)
_________________________________________________________________________________प्रिय मित्रों आपनें अब तक पढ़ा कि आकांक्षा सिंह को लेबररूम में डिलिबरी हेतु लेजाया गया किन्तु,उन्हें भर्ती  हुए एक लंबा समय गुज़र गया, परन्तु डॉक्टर नर्स सभी कन्फ्यूजन में थे कि यह कैसा विचित्र केस है, जो अभी तक डाक्टर्स यह नहीं कन्फर्म कर पाएं कि यह महिला प्रेग्नेंट है भी अथवा नहीं, क्यों कि आकांक्षा सिंह के कई बार प्रेगनेंसी चेकप और अल्ट्रासाउंड भी करा दिए गए थे  किन्तु कभी तो वह प्रेग्नेंट होने के लक्षण स्पस्ट पता चलतें तो किसी में एकदम  प्रेग्नेंसी के कोई भी लक्षणों का पता ही नहीं चलता, यह सब उस प्रेतात्मा की लीला थी जो डॉक्टर्स की समझ से वाहर थी, अतः एक लंबा बक्त गुजरनें पर डॉक्टर,नर्स परेशान होगये तो, मैंने ध्यान धर कर देखा ,तो मुझें वह रहष्य समझ में आचुका था ,अतः अब मैंने तंत्र,मंत्र विद्या का सहारा लेकर उस प्रेतात्मा को बांध दिया ,पर उसी समय उस प्रेतात्मा नें मेरी मंत्र शक्ति द्वारा उतपन्न कवच को भेदते हुए उसका सुरक्षा घेरा तोड़कर सब कुछ  ठप्प कर दिया,और उस प्रेतात्मा ने उस नर्सिंग होम में अपनीं काली शक्तियों के बल पर एकाएक डिलिबरी रूम में आग लगा दी ,जिसके कारण वहाँ लेबररूम में पन्द्रह बीस मिनट तक डॉक्टर नर्सों में अपनी अपनी जान बचानें हेतु अफ़रातफ़री का माहौल बना रहा ,आकांक्षा सिंह की सुरक्षा का किसी को कोई उसके बारे में कोई ख़्याल तक नही था,उसी समय अमरप्रताप चौहान दौड़ता हुआ वहाँ पहुँचा और उसनें चारों ओर से आग की लपटों में घिरी अपनी पत्नी को स्ट्रेचर पर डाल कर रूम से वाहर निकल आया।,
              दूसरी ओर  हॉस्पिटल के सुरक्षागार्ड द्वारा अग्निशमन विभाग को सूचित करने पर और स्थानीय लोगों की मदद से  आग को कंट्रोल कर लिया गया ,और आनन फानन में आकांक्षा सिंह को दूसरे कक्ष में  स्थानांतरित किया गया, साथ ही मेरा मित्र अमर प्रताप चौहान ने आकर मुझें अवगत कराया कि उसकी पत्नी के पुनः डिलीबरी पेन शुरू हो गया है,पुनः अल्ट्रासाउंड में बच्चे की स्पस्ट पोजीशन दिख रहीं है,डॉक्टर्स को अब उम्मीद है कि  वह अतिशीघ्र माँ बननें बाली है, अतः अब बच्चा होनें  की खुशखबरी हम सब को अति शीघ्रता से मिल जाएगी।
                   मैं अपनें मित्र की इस बात पर मन ही मन हँस रहा था, किन्तु मैं उसे उस प्रेतात्मा के रहष्य को बता भी नहीं सकता था, अतः मैं सोचनें लगा कि उस प्रेतात्मा नें सभी नर्स, डॉक्टर्स की अच्छी खासी क्लाश ले रखी है, ।
                     कैसी विचित्र विडम्बना है कि" आज के आधुनिक  युग में ,कुछ पढ़ें लिखें लोग,भूत प्रेतों के अस्तित्व को तो छोड़ो, वह परमात्मा के अस्तित्व को भी स्वीकार नहीं किया करते,उनकी नज़र में यह सब संयोग ही है,।"
                 यह लोग वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर  अपनी अपूर्ण दलील तो  देतें हैं,किन्तु ईश्वर क्या है,इस पर कभी विचारनें का इन्हें ना ही समय ,और नहीं इस रहष्य से पर्दा उठानें को इन्हें कोई महत्वपूर्ण सूत्र ही मिलता है ।
विज्ञान नें प्रकृति के रहष्य से उतना ही सीखा है, जितना उस 'अज्ञेय '  परमात्मा की इच्छा हुई स्वयं की ज्ञेय होनें की। 
प्रकृति स्वयं अपनें भेद को समयानुसार उज़ागर कर देती है।
भूत प्रेत, यह सब 'भगवान शिव' की माया है।
        मैं मन ही मन विचारनें लगा था उसी समय मैंने देखा हॉस्पिटल की एक बड़ी डॉक्टर जो अभी अभी थोड़ी देर पहिलें स्टाफ़ रूम से निकल कर ऑपरेशन थेटर में गई थी, वह लगभग बदहवास स्थिति में ऑपरेशन थेटर से निकलकर स्टाफ़ रूम के निकट पड़ी बैंच, जिस पर कि मैं बैठा था,ठीक मेरे सामने की बैंच पर आकर वह धम्म से बैठ गई,मैंने देखा उसकी कलाई से कुछ रक्त की बूंदें नींचे की ओर टप टप करतीं हुईं टपक रहीं थीं, पर इन बून्दों का उसे कोई ख़्याल भी नहीं था, किन्तु भय और आश्चर्य से उसका सम्पूर्ण शरीर रह रह कर काँप रहा था।
मैं उसके चेहरे पर उड़तीं भय की परछाईंयों को स्पष्ट देख रहा था साथ ही समझने की कोशिश कर रहा था,कि उसके साथ क्या हुआ है।
पप..प्प..प्पा...नी।
वह कपकँपाते स्वर में बोली।
मैने पास रखी शुद्ध पानी की विस्लरी की बोतल उसे तुरन्त पीनें के लिए  दी।
वह एक श्वांश में ,बिना रुके गट गट कर  सारी बोतल का पानी पी चुकी थी, उसके थोड़ा रिलैक्स होते ही मैंने उस से पूँछा।
डॉक्टर साहेब सब ठीक तो है,आप तो अभी कुछ देर पहिले ही ऑपरेशन थेटर से निकलकर आईं हैं, हमारे पैसेन्ट का क्या हाल है,अभी आकांक्षा सिंह की डिलिबरी हुई कि नहीं।
मेरे पूँछनें पर वह पुनः भय से भर कर एक झुरझुरी लेती हुई बोली।
ववव्वो....वो....एसा पहिली बार मैं देख रहीं हूँ।
जी डॉक्टर क्या है एसा पहिली बार।
अरे वही डिलिबरी का विचित्र केश।
वह कहतें कहतें हांफने लगी थी।
प्लीज़ डॉक्टर साहब, बताइएगा ,कैसी विचित्रता का है केस।
"अरे लोग कहतें हैं ना, कि भूत प्रेत नहीं..... होतें पर एसा नहीं है,.मैं कहतीं हूँ कि भूत होतें है.....अभी.. यह बच्चा तो जो अभी-अभी पैदा हुआ है,...... वह वहुत भयानक आकृति का है और पैदा होतें ही इसकी अजीबोगरीब क्रियाओं से लगता है कि वह अबश्य ही भूत है।
डॉक्टर साहब, क्या विस्तार से बताएंगीं उस बच्चे के बारे में।
मैंने डॉक्टर से  उत्सुकता से कहा।
वह अब तक काफी रिलैक्स हो गई थी, वह मुझें सिर  से पाँव तक घूरती हुई बोली।
देखिए मिस्टर ! आकांक्षा चौहान आपकी मरीज़ है , उसका वह ऐसा वच्चा है जो भूत ही है , क्यों कि डिलीबरी के बाद उस हाल के बच्चें नें मेरीं कलाई में  अपनें जोरदार और नुकीले दाँत जोर से गड़ा दिए और अपनीं लाल लाल सीमा से अधिक बड़ी बड़ी वाहर को उवली हुई आँखों से मुझें घूरता रहा था,जब मैनें उसे अपनें दोनों हाथों से पकड़ा तो वह जबरदस्ती  मेरे हाथों से छूटकर अपनीं माँ के पास उसके सीना पर चढ़कर बैठ गया और उसके दोनों स्तनों को पकड़कर स्वयं स्तन पान करने लगा, क्या आपनें कोई एसा हाल का पैदा हुआ बच्चा कोई इस तरह की हरकत करतें हुए कभी देखा है ? अतः बड़ी मुलश्किलों से मैं अपनें प्राण बचाकर यहाँ भागकर आई हूँ।
ओह ....तो यह बात है,।
अचानक मेरे मुहँ से निकला,और मैं अंतर्मुखी होकर उस बच्चे के बारे में बिचार करनें लगा, जैसा कि वह प्रेतात्मा मुझें  पहिले ही बार्निंग दे चुकी थी, तो क्या वह सब यही समय है ?
मुझें अब विशेष नजर रखनी पड़ेगी इस  प्रेतकी सन्तान पर,यह सोचकर मैं कुछ गोपनिय क्रियाएं करनें लगा, अतः मैंने आकांक्षा सिंह और अमर प्रताप चौंहान की सुरक्षा के लिये एक मजबूत सुरक्षा कवच अभिमन्त्रित कर दिया।
ठीक उसी समय मेरा मित्र  वार्ड नम्बर 01 से मेरे पास चहकता हुआ आया ,और बोला।
दोस्त आप चाचा बन गए हैं, एक स्वस्थ बच्चे के।
अच्छा !वधाई हो वहुत वहुत।
मैंने अपनें मित्र को  बोला, और सामनें बैठीं उस बड़ी डॉक्टर की और देखा।
लगता था कि वह रात के जागनें के कारण थक कर ऊँघ रही थी।
तभी स्टाफ़ रूम से दो नर्स और एक लेडी डॉक्टर उस बड़ी डॉक्टर के निकट आईं।
चलिए मैंम, आप रैस्ट रूम में चलकर रैष्ट करें।
एक नर्स नें उसका हाथ पकड़ा।
अरे  ! मैंम आपको तो, वहुत तेज़ टेम्परेचर है।
अगलें पल उस लेडी-डॉक्टर के साथी उसे अपनें साथ स्टाफ़ रूम में ले जा चुके थे।
मैं सोचनें लगा यह तो उस दुष्ट प्रेत की साधारण लीला है,
तो क्या आगे और भी कुछ होगा ? 
लगता है अब उस प्रेतात्मा को रोकना ही होगा ?,
अन्यथा वहुत बड़ा अनर्थ होनें बाला है, पर  इसे रोका कैसे जाय ?एसे ढेंरों प्रश्न मेरें मन मस्तिष्क में  आँधी तूफ़ान की गति से  घुमड़रहें थे किंतु उनका समाधान नहीं दिखाई दे रहा था। उस बलशाली प्रेतात्मा को अकेले रोकना मेरे बश में नहीं था, वह मतबाला हो कर पूरे हॉस्पिटल में अदृष्य रूप से उस जनरल वार्ड से लेकर ,अन्य प्राइवेट रूम्स में भी चक्कर लगा रहा था जिस जिस महिलाओं की डिलिबरी एक-दो दिनों में हुई थी वह उनके कमरों में चुपचाप घुस जाता और उनके बच्चों पर क़ाबू होकर उन महिलाओं का स्तन पान करनें लगता,और उन नवजातों के हिस्से का दूध पी जाता, इस तरह वह दुष्ट आत्मा अपनी लीला कर रहा था किंतु इसका पता ना तो डॉक्टर और ना उन प्रसूताओं को था जिनकें बच्चों को दूध नहीं पीनें को मिल रहा था इसी के साथ उस नर्सिंग होम में जन्में बच्चों की सेहत  और उन महिलाओं की सेहत अब धीरे धीरे कमज़ोर होचली थी।
             यह सब मैं अपनें दिव्य चक्षुओं से उस दुरात्मा प्रेत का कुकृत्य स्प्ष्ट वहीं बैंच पर बैठें बैठें देख रहा था,।
भाई,चलकर डॉक्टर से बात करलें।
मेरा मित्र अमरप्रताप चौहान मेरा हाथ पकड़कर हिलाते हुए मुझसें बोला।
हाँ ठीक है अभी चलतें हैं।
और अगलें पल हमदोनों उस रूम की ओर बड़े जिसमें आकांक्षा सिंह और उसके नवजात शिशु को डिलिबरी के बाद रखा गया था।
मैं सोच रहा था कि यह प्रेत अब तक उन बच्चों की माताओं का दुग्ध पान करनें के पीछे इसका क्या उद्देश्य है?
क्या यह प्रेत बालक के रूप में आकांक्षा चौहान के संग हमेशा रहेगा?
 नर्सिंग होम की डॉक्टर जिसका वह रक्त पान कर चुका था,क्या वह डॉक्टर इस दुष्ट प्रेत से बच पाएगी।
इन सभी प्रश्नों के उत्तर जान नें हेतु पढ़िए, अगला भाग.... 40।
Written By H. K. Joshi.             P. T. O.




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