■ पिशाचिनी का प्रतिशोध ■ भाग 45
(पिशाचिनी सिद्धि)
---------------------------------------------------------------------------- ------हाँ भावी जी, बताइए कि जब दो पुलिस बालें आपके कमरें में आए थे तो आप क्या कर रहीं थीं।
मैंने आकांक्षा चौहान से कहा।
जी... वो वो... है.. ना.. कि... मैं लेटी हुई थी.तभी ..यह.. लल्ला.।
आकांक्षा सिंह की जुबान लड़खड़ाई और अगलें पल उसने अर्द्ध सत्य बोल दिया।
फिर आपनें क्या देखा।
मैंने उनकी बात को सुनकर उनसे पूरी बात बतानें को कहा।
फिर क्या देखतीं मैं जो कुछ दिखाई दिया वह सब यही सब कुछ कमरें में रखीं वस्तुए हैं ....और अब आप ही बताओ कि मैं यहाँ और क्या देख सकतीं हूँ।
आकांक्षा सिंह नें तुरन्त सम्भल कर अपनी बात को पलटतीं हुई बोली,अब उन्होनें गेंद मेरें पालें में डाल दी थी, मेरा मित्र भी मेरीं बातों को ना समझता हुआ बोला।
कैसी बातें करते हो यार,तुम खुद ही सोचों की एक प्रसूता महिला अपनें कमरें में पड़ी हुई अपनें बालक के अलाबा और क्या ध्यान रख सकती है।
एक्जेक्टली माई फ्रेंड ,मैं भी यही कहना चाहता हूँ, पर यार भावीजी कुछ कहाँ बता रहीं हैं,अब तुम्हीं खुद सोचों कि छिपाना कहाँ तक सही है।
मैंने भावीजी की ओर देखतें हुए कहा।
भाई साहब मैं आपको क्या समझाऊँ कि....।
वह कहतें कहतें चुप हो गयीं और अपनें भोले भालें अपनें पति की ओर देखनें लगीं।
भाई मैं खुद नहीं समझ पा रहा हूँ कि तुम अपनीं भावी से क्या पूँछना चाहतें हो।
अमरप्रताप मेरी ओर देखता हुआ बोला।
तुम नहीं समझोगें, दोश्त, और भावीजी हमें वास्तविकता बताना नहीं चाहतीं हैं, पर भावीजी आप इतना जरूर समझ लीजियेगा कि अपराधी एक दिन जरूर पकड़ने में आ ही जाएगा ,और उस समय आपका ममतामयी आँचल भी छोटा पड़ जायेगा।
हे ! भगवान ,मैं क्या करूँ।
आकांक्षा सिंह अंत में अपनें सभी झूण्ठ के हथियार डालतीं हुई बोलीं।
भावीजी अभी पुलिस आपके कमरें तक आई है, और आगे क्या करेंगी आप खुद सोचियेगा ?
मैनें उन्हें सत्य बोलनें के लिय मजबूर किया तो वह कुछ पलों तक अपनें को सत्य बोलनें को तैयार करतीं रहीं ,और फिर फुशफुसाते अंदाज में बोलीं।
देखों किसी से कुछ कहना नहीं, यह अपना लल्लू है ना यही तो भाग कर के आया था, और चुप चाप मेरें पास आकर दूध पीने लग गया।
क्या बकती हो......।
अमरप्रताप अपनी पत्नी आकांक्षा सिंह पर नाराज़ हो कर बोला।
भावीजी सच कह रहीं हैं दोश्त।
मैनें अमरप्रताप के कंधे पर हाथ रखतें हुए कहा।
वह मेरा मित्र आश्चर्य से मुहँ खोलें मुझें देख रहा था, आप आगे बताइए भावीजी।
मैंने आकांक्षा सिंह से कहा।
आकांक्षा सिंह पुनः बोली।
और तभी दो पुलिस कांस्टेबल मेरे कमरें में आ धमके, और मुझ सें पूँछ तांछ में किसी तीन साल के बालक के बारे में पूँछनें लगे।
लेकिन हमारा नौनिहाल तो अभी तीन वर्ष का नहीं है,और साथ ही वह अभी कैसे दौड़ सकता है।
अमरप्रताप नें मुझें दलील दी।
भावीजी अब तक का जो सत्य आपनें अपनीं आँखों देखा है बस वही सच सच अपनें पति को भी बता दो।
मैंने आकांक्षा सिंह को देखतें हुए बोला।
जी ,हमारा लल्लू खूब भगानें दौड़नें में माहिर है, जब जब जितनीं भी घटनाएँ इस नर्सिंग होम में अब तक घटी हैं , वह सभी घटनाएं इसके ही कारण हुई हैं।
हे ! भगवान यह बालक क्या भूत है,वह हॉस्पिटल की बड़ी डॉक्टर मारियाएंटनी के हाथ में पैदा होतें ही काट लिया था इस नें।
मेरा मित्र अपना सिर पकड़कर बैठ चुका था।
आकांक्षा सिंह अपनें नन्हें शिशु की लीला हम दोनों को सुनाती जारहीं थी,उसनें कहा।
इस लल्लू नें फौजी की बीबी ,और और उसकेबच्चे को मेरीं आँखो के सामनें मारा था।
हे भागवान ! अब बस कर, इतना ही बहुत है तेरे बेटे का गुणगान ।
अमरप्रताप नें अपनीं पत्नी को डाँटते हुए कहा।
अमर हक़ीक़त पर तुम कब तक पर्दा डालोगें।
मैने अपनें मित्र को समझाया।
अब क्या करें दोश्त ?
अमरप्रताप मेरीं ओर देखता हुआ बोला।
बेहतरी है कि हमसब को अबिलम्ब नर्सिंग होम को छोड़ दें, मारियाएंटनी को आप जाकर सारा पेमेण्ट कर दें।
ठीक है दोश्त ,बैसे मेरीं इच्छा यह थी कि।
अब आप अपनीं इच्छाओं को मत देखों ,फिलहाल आप अपनें सुपुत्र की करतूतें देखों।
मैंने दो टूक बात कही, और उसके कमरे से वाहर निकल आया, और धीरे धीरे टहलता हुआ रिशेप्सन की ओर बड़ा ही था कि मेरा दोश्त अमर नें मुझें पुकारा।
सुनो भाई ग़जब हो गया।
वह लगभग हाँफ नें लगा था,मेरे नजदीक आते आते।
क्या बात है यार, सब ठीक तो है ?
मैंने अमरप्रताप को देखा, उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड रहीं थीं।
क्यों दोश्त सब ख़ैरियत तो है।
मैंने अपने मित्र से पुनः पूँछा।
यह देखो।
उसनें अपनें दोनों हाथों के पंजों को मुझें दिखाया, उसके दोनों हाथों के पंजों पर किसी के काटने के स्पस्ट दाँतों के निशान दिखाई दे रहे थे जिनमें से हलकीं सी ख़ून की बून्दें छलक ती दिखरहीं थीं।
यह सब कैसे हुआ।
मैंने उस से पूँछा।
यह सब उसी शैतान की हरकत है।
वह संक्षेप में बोला।
प्लीज़ डिटेल बताओ।
मैंने अमरप्रताप से आग्रह किया।
तुम्हारे जाने के बाद मैनें अपनीं पत्नी को बोला कि तुम अब अपना सामान वांधो और में छुट्टी के लिए जाता हूँ, वस, फिर क्या था वह भूत नाथ तुरन्त विस्तर से उठकर फुर्ती से मेरे हाथों पर चिपट गया बाकी सब आप देख ही रहे हो।
वह कहतें कहतें चुप हो गया, उसके चेहरे पर अब भी भय और कौतूहल के मिश्रित भाव स्पस्ट दिखाई दे रहे थे।
तुमनें उसे कैसे छुटाया ?
अरे यार वह तो किसी बंदर की तरह मुझसे चिपट गया और अपनें नुकीले दाँतों को मेरे हाथों में गडा चुका था, अगर मैं उसे जोर से झटका नहीं देता तो वह मुझें छोड़ता नहीं,पर इतने पर भी वह बला की
फुर्ती के साथ जमीन से उठकर मेरी ओर लपका, तभी मैंने उसे एक जबर्दस्त ठोकर मारी ,जिसके कारण वह दूर गिरा और तुरंत पलट कर वह मेरीं ओर भागा,हुआ यहाँ आगया।
ठीक है चलो हम बड़ी डॉक्टर मारियाएंटनी से बात करतें है।
और अगलें पल हम दोनों मारियाएंटनी की केविन में बैठें थे,उनके आदेशानुसार हमनें बिल कैस काउण्टर पर जमा किया और लगभग दो घण्टें में हम उस नर्सिंग होम को वाय वाय कर स्टेशन पर आचुके थे,शेषांश आगे..........।
Written By H. K. Joshi. P. T. O.