आखिर ठहर कर क्या देखते इस ज़माने में,
सब बेघर हुए थे अपने छोटे से आशियाने से ।
ऊंचे-ऊंचे दरख़्त देखे हर जगह हर तरफ़ मैने,
फिर उसे काटते इंसान के बहुत से प्यादे देखे ।
जा रही थी दरख़्त की जान ऐसे ज़माने देखे,
बना रहा कोई नाव,घर ऐसे ठिकाने देखे मैने ।
उसी दरख़्त से बनाई गई एक बड़ी नाव किनारे में,
कुछ लोग सवार हुए पार जाने को नए घर उजाड़ने ।
होश में कहॉं थे प्यादे बस अपनी बस्ती बनाने में,
कई बेघर हो चूके उसके बनाए हर इक ठिकाने से ।
जंगल बचा कहॉं जो चैन से काट लेटे इक-इक सांसे,
उजाड़ दिए घर चिड़ियाघर बनाकर कैद कर लिया हमे ।
लगता नहीं मुझे अब कोई बच पाएगा यहॉं कहीं,
खाल उतारे जाएंगे प्यादे सर्द से ढक लेंगे हम को ही ।
आख़िर ठहर कर क्या देखते इस ज़माने में,
सब बेघर हुए थे अपने छोटे से आशियाने से...
- डेनिरो सलाम