रोज़ आधी नींद लिये हर रात हमेशा की तरह जाग जाता हूॅं, कुछ मेरे ही सवाल होते हैं जिनके जवाब मैं ख़ुद ही ढूंढने लगता हूॅं और फिर, मन ही मन ये सोचता हूॅं, अब भी कोई ज़िंदगी का हिस्सा मुझसे वाक़िफ है क्या? जिसके सवाल मैं ख़ुद ही बनता जा रहा हूॅं और जवाब मेरे लेखन की अभिलाषा में कहीं ख़ुद को छिपाएं मुझ में ही कहीं छिपी है । ऑंखें जब बंद करता हूॅं, लगता है कि मेरे ही अनगिनत सवाल मुझसे ही अब जवाब मांग रहे हैं। रोशनी के आड़ में अंधेरे को बेवजह ही टटोलने लगता हूॅं और ख़ुद से ही बातें करने लगता हूॅं । समझने की कोशिश में नींद को भुलाना चाहता हूॅं और जब भी मन होता है ,मैं अपने ही सवालों को और कुछ बताना चाहता हूॅं । करवटों का भी हिसाब लगाता हूॅं और सोचता हूॅं भीड़ का एक हिस्सा होकर भीड़ के सामने से निकलना चाहता हूॅं ,उस बीते हुए बचपन के दौर में फ़िर से एक बार लौटना चाहता हूॅं । जहाॅं ज़िंदगी की शुरुआत की बहुत सारे हिस्से बहुत खूबसूरत थे, जहाॅं कोई सवाल नहीं था दुख नहीं था, ईर्ष्या की भावना नहीं थी और कोई लालसा नहीं था । इन सारे के सारे लम्हों को समेटकर सारी खुशियां अपने स्कूल के बस्ते में लेकर अपने इस दौर में आना चाहता हूॅं । ज़िंदगी की इस यात्रा में उस खूबसूरत लम्हों को जीना चाहता हूॅं और मेरे ही सवालों को ये बताना चाहता हूॅं कि ज़िंदगी की यात्रा कितनी अनोखी और कितनी खुशनुमा और खूबसूरत है ,हर एक लम्हा एक-एक टुकड़ा कितना अनोखा और ख़ूबसूरत है जिसे जानकर हम अंजान भी हैं और परेशान भी मगर जवाब ढूंढने अगर निकलें तो ज़िंदगी की यात्रा का आयाम बहुत अनोखा होगा और बेहद ख़ूबसूरत भी ।
हम सब ने ज़िंदगी में बहुत से उतार-चढ़ाव देखे हैं और आज भी देख रहे हैं पर मुश्किलों से भरा खूबसूरत सफ़र निरंतर चल रहा है और रोचक दृश्य और गंभीर भावना के "रस" की हर अंदाज़ से भरा हुआ है इसकी पहली
"तस्वीर" है जो हम सबकी ज़िंदगी का ऐसा आईना है जो निरंतर हमें वह दिखा रहा है जो हम देखना चाहते हैं, उस गहरे-काले अंधेरे में ।
हर एक अंश जुड़ा है हर एक इंसान की गहरी भावनाओं से बिलखते,मुस्कुराते,डरते,सोते,जागते चेहरों से और शायद हर दृश्य एक-एक कर के पुनः हमारे मस्तिष्क में घर कर जाएं और ज़िंदगी के आईने के सामने हम सब खड़े होकर ख़ुद को बार-बार देखने लगें और पूछने लगें कि सफ़र मुश्किलों से भरा रहा पर कितना खूबसूरत है, हर एक कविता का ज़िंदगी में कहानी बन जाना....