कब तक देखते आसमॉं में सितारे मुसलसल ,
अब सितारा सुबह होते कहॉं गुमनाम हो गया ।
अनजान से ही थे हम अपने ही शहर में ,
ना जाने किन-किन को हमसे काम आ गया ।
लिख रहे हर वक्त ख़त एक अनजान शख़्स को,
जाने कहॉं से हमारी ग़ज़ल में उसका नाम आ गया ।
पढ़ रही थी मुसलसल वो भी सारे के सारे ख़त को ,
जाने उसका दिल हम से कैसे राहों में टकरा गया ।
देख रही थी मासूम नजरें दीवार में टंगी तस्वीरों को ,
फ़िर जाने कहॉं से उसको फॉन पर बुलावा आ गया ।
हम जाग रहे थे आधी नींद लिए ख़्वाबों से ही कहीं ,
झट से ऑंखें खुली सारा ख़्वाब चकनाचूर हो गया ।
कब तक देखते आसमॉं में सितारे मुसलसल ,
अब सितारा सुबह होते कहॉं गुमनाम हो गया...
- डेनिरो सलाम