माना की वहाॅं खनिज है तो क्या हुआ हर किसी का जीवन है जंगल,
तुम ठहरे पैसे के भूखे कहाॅं जानोगे प्रकृति का आने वाला कल ।
सोचो कितने नादान और चालाक हैं लोग, मौत सामने बार-बार आ रही,
और जंगल में बने घरों को उजाड़ने के लिए बैठे हैं कितनों समय से ।
महामारी आईं,लोग मरे, शहर बंद हुआ तब तो कुछ समझ आता इन्हें,
अब साॅंस लेने में दिक्कत होने लगी है ,पैसों के चक्कर में मौत बेच रहे ।
कितने मतलबी हैं कुछ लोग ,लालच में हर किसी का घर खाने वाले हैं,
विस्थापन का डर दिखा कर सब कुछ हमारा धीरे-धीरे हथियाने लगे हैं ।
कहते हैं बिजली से रौशनी देंगे ,अच्छा बताओ कितने पैसे मिलने लगे हैं,
जंगल खाने वाले हो तुम,कहते फ़िर रहे हो इंसानियत का भला कर रहे हैं ।
बड़ी अजीब है ये अमीरी, पैसे कमा तो रहे मगर लालची पन नहीं जा रहा,
कितनों बेघर हो जाएंगे पता है, तुम को तो बस एक पुरुस्कार ही मिलेगा ।
सोचो आने वाले पीढ़ी को क्या बताओगे तुम ,यहीं की जंगल हमने काटे,
हमारे बच्चे उसी बिजली की रोशनी में पढ़ेंगे वनोन्मूलन के दुष्परिणाम सारे।
माना की वहाॅं खनिज है तो क्या हुआ हर किसी का जीवन है जंगल,
तुम ठहरे पैसे के भूखे कहाॅं जानोगे प्रकृति का आने वाला कल....
- डेनिरो सलाम