आओ किस्सा एक रेल यात्रा का सुनाए,
भीड़ बड़ी भारी रेल में चढ़ने का करने लगे प्रयास।
धक्का मुक्की इतनी की ले ना पाए सांस ,
बताए क्या अपना हाल भीड़ ने कर दिया फिर कमाल ।रेल में चढ़े नही चढ़ा दिए गए,
जबरन जैसे सरका दिया गए।
सीट मिली न मिला आराम,
भीड़ इतनी कि जपते रहे हम तो राम नाम।
कौन जाने कौन किस पर पड़ा,
सीट के लिए हर कोई लड़ा।
कैसा ये गड़बड़ घोटाला ,
धीमी है रफ्तार समय से न कोई पहुंचने वाला।
एक यात्री से जब ना हुआ बर्दास्त
निवेदन लेकर पहुंचा चालक के पास।
भैया नई नई हुई है शादी
यू ना करो हमारे समय की बर्बादी ।
जरा दया दिखाओ
समय पर मंजिल पर पहुंचा ।
एक शख्स ने और हिम्मत दिखाई ,
देखा देखी अर्जी अपनी भी लगाई ।
भाई बड़ी कोशिशों बाद ये नौकरी हमने पाई ,
समय जो और बर्बाद ,
बॉस ना सुनेगा हमारी फरियाद।
रहम करो हम पर भाई,
यू ना करो रुसवाई।
चालक को सब पर दया आई ,
रफ्तार उसने बढ़ाई।
जैसे तैसे वक्त हमने गुजारा,
ऐसा सफर था रेल यात्रा का हमारा।