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प्रेम,की भाषा!

14 अक्टूबर 2024

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निदान! 
आलिंगन में,
सर्वथा! 
मौजूद रहा है।
अनुवाद! 
चाहतों का, 
स्पर्श!
सदैव करता रहा।
आलिंगन हो,
या स्पर्श! 
दोनों प्रेम को,
परिभाषित करते हैं।
यही तो-
भाषा है प्रेम की।
© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।
                   (चित्र: साभार)article-image

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रचनाएँ
बस यूं ही कुछ
5.0
बस यूं ही कुछ! --------------------- "बस यूं ही कुछ" मेरी 'शब्द इन' पर आने लाईन प्रकाशित होने वाली सत्रहवीं किताब तथा पंद्रहवीं कविता संग्रह है।जैसा शिक्षक है उसी के अनुरूप ही इस संग्रह में ऐसी रचनाएं, संग्रहित हैं जो मन में आये चृते फिरते विचारों को शब्दों से सजाकर बस यूं ही कविता के रूप में परोसने का एक प्रयास है।इन रचनाओं में कोई भी रचना ऐसी नहीं है जो पूर्व नियोजित विचारों पर आधारित हो।इसमें संग्रहित विचार नितांत तात्कालिक हैं। आशा है पाठक जन को ये रचनाएं पसंद आयें। पाठकों के विचार, प्रतिक्रियाएं तथा आलोचनाएं मेरा उत्साहवर्धन करेंगी तथा मुझे प्रोत्साहित करने का कार्य करेंगी। © ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर।
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हे कृष्ण!

6 सितम्बर 2024
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तुम!हंसते रहे हो, सदा ही,अपशब्द पर भी,जबकि- सामर्थ्य में,कोई कमी,नहीं रही तेरे।संहार की,असीमित शक्ति! सुदर्शन के बावजूद,मुरली के,प्रेम धुन से,मोह लिया सबको।वैभवशाली! राजमहल में,दीन

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शब्द!

6 सितम्बर 2024
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एक,शब्द वह है,जिससे लोग- खुद ब खुद,खिंचे चले आते हैं,इसकी सुगंध को,ढ़ुढ़ते हुए, भौंरों की तरह।लेकिन- जब यही शब्द! बहकते हैं,तब जीवन में,तूफान! और आंखों में,आंसुओ का सैलाब!!&nb

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प्रतिफल

7 सितम्बर 2024
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मेरी-आजादी! या यूं कहें कि-स्वाधीनता!! उन्होंने छीन ली,जिनकी- आजादी के लिए, मैंने-अपना सर्वस्व! न्योछावर किया।घर हो या बाहर,परिवार हो या समाज,सभी जगहों पर, अपनत्व की भावन

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शातिराना चालें !

8 सितम्बर 2024
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रिश्तों में,जब से,चली जाने लगीं, उनके द्वारा, शतरंज की,शातिराना चालें।तभी से,मैं भी,शतरंज का,शौकीन हो गया। अब घाव! सहने और देने, दोनों में,मैं माहिर हो गया।© ओंकार नाथ त्रिपाठ

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अपनी साया!

9 सितम्बर 2024
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पूरी-जिंदगी मेरी,धीरे-धीरे- खुश फहमी में,एक-एक दिन करके,गुजरती रही।आंख तो तब,खुली की खुली रह गयी,जब पीछे!मुड़कर देखा,सिर्फ मेरा साया ही,मेरे साथ चलते पाया।जवानी पूरी,जुनून से भरी रही,फुर्सत कहां

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अकेला कभी भी, नहीं रहा

13 सितम्बर 2024
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दिन की,शुरुआत से लेकर, शाम!ढलने तक,कभी तुम रही,और कभी-तेरी! यादें रहीं।अकेला!कभी भी, मैं नहीं रहा,तेरे बगैर।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbs

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कितनी बेवकूफ हो

14 सितम्बर 2024
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तुम!कितनी,बेवकूफ हो,कि तेरा- झूठ! पकड़ लेता हूं मैं।और- मैं भी!कोई कम, मूर्ख नहीं, जो हर बार! तुझ पर,यकीन! कर लेता हूं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर

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अधूरी पड़ी किताब!

25 सितम्बर 2024
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मैं!रबर से,हमेशा ही,मिटाता रहा,लोगों की उन-गलतियों को,जो सामाजिक! नहीं रही।और-अपनी,सच्चाइयों को,लिखने से,बचाता रहा, पेंसिल को।इसका!अमिट छाप, छुटता गया,जीवन के,काल खण्ड पर।लोगों को,दिया

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शून्य!

27 सितम्बर 2024
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हम!शून्य होकर भी,सीखते रहे,शून्य के, आकार से,शून्य का महत्व।देते रहे,विश्व को,इसके- महत्व का ज्ञान। तभी तो,आज!दुनिया को,गिनती आयी।तब!क्यों न?हम!एक दुसरे के,पीछे का,शून्य बनकर, एक द

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आज जो तुम हो!

28 सितम्बर 2024
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आज!जो तुम हो,वो कल वाली,नहीं लगती।आज जो हो,कल पता नहीं, वो रहोगी,या नहीं रहोगी।लेकिन! कम से कम,इसी तरह,कल भी रहो,यही फिर,कह रहा हूं मैं,जैसे कल! कहा करता था।फिर भी,तुम समझोगी, मुझे

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स्त्री!

28 सितम्बर 2024
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आखिर!स्त्री ही,क्यों? जिम्मेदार होती है,वंश बेला!बढ़ाने के लिए?उसे बांझ!कहा जाता रहा है,आज तक!मां ने बनने के लिए।लेकिन!अभी तक,नहीं ढ़ूंढ़ा जा सका,बांझ का पुलिंग शब्द।जिससे- लिखा जा सके,जिंदग

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कहोगे, बतायें नहीं!

29 सितम्बर 2024
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अरे!इतनी,बेरुखी भी,अच्छी नहीं। जरा! नजदीकी, बनाये रखो,मुझसे तो सही।जिंदगी! मेहमान है, चार दिन की,जब चली जायेगी,तो कहोगे कि-बताये नहीं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गो

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मुस्कुराएं!

1 अक्टूबर 2024
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चलो,अगर सच!बोल, नहीं सकते,तो- कम से कम,सच!! सुनने की,आदत तो डालें।क्या हुआ? वक्त कठीन है,मुस्कुराएं!और प्रतिक्रिया दें।तेरी-खामोशी ही,हर ग़लत प्रश्न का,सही उत्तर होगी।मत भागो!&nbsp

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आखिर कब तक?

4 अक्टूबर 2024
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कभी-कभी, तुम!अपनी भी शिकायतें!सुन लिया करो।केवल!ज़माने में उलझकर, अपने आपको,कब तक?करते रहोगे, बेगाना?आखिर! कब तक?सहते रहोगे,प्रेम के बटवारे का दंश!तुमने,जो प्रेम!मुहब्बत, फ़िक्र!&n

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हक़!

8 अक्टूबर 2024
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इस!ग़लत फहमी में,मत रहना, कि- जो तुम! अर्जित किये होवह सब,तेरा है।जब!हवा के,झोंके आते हैं, तब-अपने ही पत्तों पर,पेड़ों का भी,हक़!नहीं रह जाता।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बश

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एक दिन!

10 अक्टूबर 2024
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एक दिन! जब वह-खाक में,मिल गया! तब उसके,दौलत का,हिसाब! लगाया गया।जोड़ घटाकर, कुछ भी, नहीं मिला,उसको।वह तो,खाली हाथ ही,सब छोड़कर! चला गया।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशार

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टा!...टा!!...रतन!!!

12 अक्टूबर 2024
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हे!दानवीर!!कलियुग में,दान के, हे महान!कर्ण!!यूं तो,सारा जन,न तो,आपकी,संस्थाओं से,कभी! जुड़ा रहा, न ही आप से।फिर भी, आपकी, सहृदयता! उदारता,और-मानवता वादी, सोच ने,कायल

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प्रेम,की भाषा!

14 अक्टूबर 2024
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निदान! आलिंगन में,सर्वथा! मौजूद रहा है।अनुवाद! चाहतों का, स्पर्श!सदैव करता रहा।आलिंगन हो,या स्पर्श! दोनों प्रेम को,परिभाषित करते हैं।यही तो-भाषा है प्रेम की।© ओंकार नाथ त्रिपा

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कुछ देर, सुस्ता लें!

18 अक्टूबर 2024
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चलो!कुछ देर,सुस्ता ले,एकांत की छांव में,फकीर बनी,ऐ जिन्दगी! तूं थक गयी होगीभागते-भागते।मुझे!पता है,तेरे चेहरे में,छिपा बैठा,मानव!सहम उठा है,सच्चाई का,कत्ल देख कर।यही तो,दुनिया है!इसे जैसे-जैसे,&n

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भूजा!

21 अक्टूबर 2024
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वह!यही कोई,पैंतालीस या-पचास वर्ष की रही होंगी।सुन्दर! कद काठी पर,सलीकेदार! जंचता हुआ,कीमती, सलवार सूट!उसकी सुन्दरता में,चार चांद लगा रहा था।वह! आकर, मेरे बगल में,खड़ी हो गयी,&

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दर्द!

25 अक्टूबर 2024
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चलो!बांट लें,दर्द!एक दुसरे का,मिलकर,हम तुम!न जाने कब!जिंदगी की,शाम!ढल जाये।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। (चित

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