shabd-logo

शून्य!

27 सितम्बर 2024

0 बार देखा गया 0
हम!
शून्य होकर भी,
सीखते रहे,
शून्य के, 
आकार से,
शून्य का महत्व।
देते रहे,
विश्व को,
इसके- 
महत्व का ज्ञान। 
तभी तो,
आज!
दुनिया को,
गिनती आयी।
तब!
क्यों न?
हम!
एक दुसरे के,
पीछे का,
शून्य बनकर, 
एक दुसरे का,
मान बढ़ायें।
© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।
                   (चित्र:साभार)article-image
9
रचनाएँ
बस यूं ही कुछ
5.0
बस यूं ही कुछ! --------------------- "बस यूं ही कुछ" मेरी 'शब्द इन' पर आने लाईन प्रकाशित होने वाली सत्रहवीं किताब तथा पंद्रहवीं कविता संग्रह है।जैसा शिक्षक है उसी के अनुरूप ही इस संग्रह में ऐसी रचनाएं, संग्रहित हैं जो मन में आये चृते फिरते विचारों को शब्दों से सजाकर बस यूं ही कविता के रूप में परोसने का एक प्रयास है।इन रचनाओं में कोई भी रचना ऐसी नहीं है जो पूर्व नियोजित विचारों पर आधारित हो।इसमें संग्रहित विचार नितांत तात्कालिक हैं। आशा है पाठक जन को ये रचनाएं पसंद आयें। पाठकों के विचार, प्रतिक्रियाएं तथा आलोचनाएं मेरा उत्साहवर्धन करेंगी तथा मुझे प्रोत्साहित करने का कार्य करेंगी। © ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर।
1

हे कृष्ण!

6 सितम्बर 2024
2
1
2

तुम!हंसते रहे हो, सदा ही,अपशब्द पर भी,जबकि- सामर्थ्य में,कोई कमी,नहीं रही तेरे।संहार की,असीमित शक्ति! सुदर्शन के बावजूद,मुरली के,प्रेम धुन से,मोह लिया सबको।वैभवशाली! राजमहल में,दीन

2

शब्द!

6 सितम्बर 2024
2
1
2

एक,शब्द वह है,जिससे लोग- खुद ब खुद,खिंचे चले आते हैं,इसकी सुगंध को,ढ़ुढ़ते हुए, भौंरों की तरह।लेकिन- जब यही शब्द! बहकते हैं,तब जीवन में,तूफान! और आंखों में,आंसुओ का सैलाब!!&nb

3

प्रतिफल

7 सितम्बर 2024
2
1
2

मेरी-आजादी! या यूं कहें कि-स्वाधीनता!! उन्होंने छीन ली,जिनकी- आजादी के लिए, मैंने-अपना सर्वस्व! न्योछावर किया।घर हो या बाहर,परिवार हो या समाज,सभी जगहों पर, अपनत्व की भावन

4

शातिराना चालें !

8 सितम्बर 2024
0
0
0

रिश्तों में,जब से,चली जाने लगीं, उनके द्वारा, शतरंज की,शातिराना चालें।तभी से,मैं भी,शतरंज का,शौकीन हो गया। अब घाव! सहने और देने, दोनों में,मैं माहिर हो गया।© ओंकार नाथ त्रिपाठ

5

अपनी साया!

9 सितम्बर 2024
0
0
0

पूरी-जिंदगी मेरी,धीरे-धीरे- खुश फहमी में,एक-एक दिन करके,गुजरती रही।आंख तो तब,खुली की खुली रह गयी,जब पीछे!मुड़कर देखा,सिर्फ मेरा साया ही,मेरे साथ चलते पाया।जवानी पूरी,जुनून से भरी रही,फुर्सत कहां

6

अकेला कभी भी, नहीं रहा

13 सितम्बर 2024
0
0
0

दिन की,शुरुआत से लेकर, शाम!ढलने तक,कभी तुम रही,और कभी-तेरी! यादें रहीं।अकेला!कभी भी, मैं नहीं रहा,तेरे बगैर।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र। &nbs

7

कितनी बेवकूफ हो

14 सितम्बर 2024
0
0
0

तुम!कितनी,बेवकूफ हो,कि तेरा- झूठ! पकड़ लेता हूं मैं।और- मैं भी!कोई कम, मूर्ख नहीं, जो हर बार! तुझ पर,यकीन! कर लेता हूं।© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर

8

अधूरी पड़ी किताब!

25 सितम्बर 2024
0
0
0

मैं!रबर से,हमेशा ही,मिटाता रहा,लोगों की उन-गलतियों को,जो सामाजिक! नहीं रही।और-अपनी,सच्चाइयों को,लिखने से,बचाता रहा, पेंसिल को।इसका!अमिट छाप, छुटता गया,जीवन के,काल खण्ड पर।लोगों को,दिया

9

शून्य!

27 सितम्बर 2024
0
0
0

हम!शून्य होकर भी,सीखते रहे,शून्य के, आकार से,शून्य का महत्व।देते रहे,विश्व को,इसके- महत्व का ज्ञान। तभी तो,आज!दुनिया को,गिनती आयी।तब!क्यों न?हम!एक दुसरे के,पीछे का,शून्य बनकर, एक द

---

किताब पढ़िए