प्रिय प्यासी मैं मर ना जाऊँ
कब तक दूं अपनों को दिलासा,
मुझ पर निर्भर है सबकी अभिलाषा।
प्रिय प्यासी मैं मर ना जाऊँ
मुरझा रही है मेरी काया जैसे इस बार सावन न आया,
तू गरजे मेरी नींद उड़ाये, मेरी तपन मुझको ही जलाये।
प्रिय प्यासी मैं मर ना जाऊ
भूखे पथराई आँखो वाले प्राणी मुझसे ना देखा जाये,
एक हाथ हल दूजा तुझे ढूंढे, देखूँ रोज मैं शरमाऊँ
प्रिय प्यासी मैं मर ना जाऊँ
जो राजा वह यग कराये, बाकी सब नांचे गायें मिनन्ते फरमायें,
देखूँ जब इन नादानो को सब करते हैं कुछ पाने को, मैं भी डर जाऊँ।
प्रिय प्यासी मैं मर ना जाऊँ
अपने जब मुझे छोड़ जाने लगे, चला यहां नहीं तो कहीं और हल चलाने लगे,
यह वियोग मुझे सहा ना जाए रोऊँ इतना खुद को भिगोऊँ।
प्रिय प्यासी मैं मर ना जाऊँ
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✤फिरोज आलम✤