काश! मिल पाता मुझे मेरी ही तमन्नाओं का शहर!
चल पड़े थे कदम उन हसरतों के डगर,
बस फासले थे जहाँ, न थी मंजिल की खबर,
गुम अंधेरों में कहीं, था वो चाहतों का सफर,
बस ढूंढता ही रहा, मैं मेरी तमन्नाओं का शहर!
बरबस खींचती रहीं जिन्दगी मुझे कहीं,
हाथ बस दो पल मिले, दिल कभी मिले नहीं,
शख्स कई मिले, पर वो बंदगी मिली नही,
बस ढूंढता ही रहा, मैं मेरी तमन्नाओं का शहर!
साहिल था सामने, बस पावों में थे भँवर,
बहती हुई इस धार में, बहते रहे हम बेखबर,
बांध टूटते रहे, टूटता रहा मेरा सबर,
बस ढूंढता ही रहा, मैं मेरी तमन्नाओं का शहर!
हसरतें तमाम यूँ ही लेती रही अंगड़ाई,
कट गए उम्र तमाम, साथ आई है ये तन्हाई,
तन्हा है चाहत मेरी, तन्हा है अब ये सफर,
बस ढूंढता ही रहा, मैं मेरी तमन्नाओं का शहर!
काश! मिल पाता मुझे मेरी ही तमन्नाओं का शहर!