दुरूह सा क्युँ हुआ है ये मौसम की कसक?
सिर्फ नेह ही तो .....
बरसाए थे उमरते गगन ने!
स्नेह के....
अनुकूल थे कितने ही ये मौसम!
क्युँ तंज कसने लगी है अब ये उमस?
दुरूह सा क्युँ हुआ....
ये बदली का असह्य मौसम?
प्रतिकूल क्युँ है... ये भादो की चिलमिलाती सी कसक?
कहीं तंज कस रहे...
ये प्रतिकूल से होते ये मौसम!
कही बाढ की भीषण विभीषिका!
कई चीखें ....
कही हो चली है इनमें दफन!
क्युँ भर चली है....
इस मौसम में ये अगन सी तमस?
क्युँ व्यंग भर रहे... ये भादो की चिपचिपाती सी उमस?
कई साँसें लील गई...
आपदा प्रकृति की कुछ ऐसे बढी?
मुरझा गई बेलें कई....
खिलकर मुस्कुरा भी न ये सकी!
ये कैसी है घुटन...
क्युँ है ये मौसम की तपन?
क्युँ बिताए न बिते...ये भादो की तिलमिलाती सी उमस!
दुरूह सा क्युँ हुआ है ये मौसम की कसक?