हो न हो! भ्रम के इस शहर में कोई भ्रम मुझे भी हो?
भ्रमित कर रही हो जब हवाएँ शहर की!
दिग्गभ्रमित कर गई हों जब हवाएँ वहम की!
निस्तेज हो चुकी जब ईश्वरीय आभाएँ!
निश्छल सा ये मन फिर कैसे न भरमाए?
हो न हो! भ्रम के इस शहर में कोई भ्रम मुझे भी हो ?
प्रहर प्रशस्त हो रही हो जब निस्तेज की!
कुंठित हुई हो जब किरण आभा के सेज की!
भ्रमित हो जब विश्वास की हर दिशाएँ!
सुकोमल सा ये मन फिर कैसे न भरमाए?
हो न हो! भ्रम के इस शहर में कोई भ्रम मुझे भी हो
अभिमान हो जब ईश्वरीय सीमा लांघने की!
समक्ष ईश के अधिष्ठाता लोक के बन जाने की!
स्वयं को ही कोई ईश्वर का बिंब बताए!
विश्वास करके ये मन फिर कैसे न भरमाए?
हो न हो! भ्रम के इस शहर में कोई भ्रम मुझे भी हो?