स्नेह मन का प्रतीक्षा रत, तुम प्रतीक्षा के ये पल ले लो!
मैं सागर प्रीत का एकांत स्नेह भरा,
सिहरता पल-पल प्रतीक्षा की नेह से भरा,
प्रतीक्षा की इल पल को स्नेहित कर दो,
नेह का तुम मुझसे इक अटूट आलिंगन ले लो।
गीत मन की प्रतीक्षारत, तुम गीत मेरे मन के ले लो!
सुन ऐ मेरे मन के चिर प्रतीक्षित मीत,
कहता है कोई, प्रतीक्षा तो स्वयं भी है एक गीत,
बार बार जिसको जग कर ये मन गाता है,
तुम मेरी प्रतीक्षा का चिर स्नेहित गीत ले लो।
युगों से मन प्रतीक्षारत, तुम प्रतीक्षा के ये युग ले लो!
प्रतीक्षा इस सागर की गहराती हर पल,
गीत वही इक धुन की चिर युगों से प्रतीक्षारत,
प्रतीक्षा के गीतों मे मैं जब-जब जागा हूँ,
कहता उस पल ये मन, हृदय तुम मेरा ले लो।
जागा हूँ मैं प्रतीक्षारत, नींद के पल मेरे मुझको दे दो!