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" कुछ ज़ख्म "

28 अक्टूबर 2021

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हैं कुछ ज़ख्म दिल के जो मैं दिखाना नही चाहता,
हैं कुछ तक़लीफ़ें मेरी जो मैं बताना नही चाहता..

क्यो पूछते हो हाल मेरा मुझसे,
झूठ कहकर मैं कुछ छिपाना नही चाहता…

हैं कुछ ज़ख्म दिल के जो मै दिखाना नही चाहता,
हैं कुछ तक़लीफ़ें मेरी जो मै बताना नही चाहता..

कोई खुश है अपनी गलियों में,
कोई डूबा है रंग-रलियो में,
कोई नाचता गाता जशन मनाता,
कोई बोतलो संग शोक मनाता,

परदो से ढ़की है जो दुनिया मेरी खामोशी की,
वो परदा मैं उठाना नही चाहता,
दर्द है दिल मे मगर मै जताना नही चाहता…

हैं कुछ ज़ख्म दिल के जो मैं दिखाना नही चाहता,
हैं कुछ तक़लीफ़ें मेरी जो मैं बताना नही चाहता…

कल तक यहां खुशियो का मेला था,
दिल कभी भी ना ऐसा अकेला था,
जब तन्हा कर दिया मुझे किसी अपने ने,
आँसू ला दिए अधूरे सपने ने,

ये सच नही कि मैं कुछ भुलाना नही चाहता,
मगर बात ये है कि मैं कुछ भुला नही पाता,

हैं कुछ ज़ख्म दिल के जो मैं दिखाना नही चाहता,
हैं कुछ तक़लीफ़ें मेरी जो मैं बताना नही चाहता…

वक्त वो भी अच्छा था,
प्यार मेरा भी सच्चा था,
मगर मुकम्मल नही होती हसरत सबकी,
एक जैसी नही होती किस्मत सबकी,

याद कर किस्मत पे आँसू बहाना नही चाहता,
रो कर मैं किसी को रुलाना नही चाहता,

हैं कुछ ज़ख्म दिल के जो मैं दिखाना नही चाहता,
हैं कुछ तक़लीफ़ें मेरी जो मैं बताना नही चाहता…

टूटता तारा दिखा ना कभी,
शायद मुराद मेरी भी पूरी होती,
इश्क के पन्नो पर
कहानी मेरी न यूं अधूरी होती,

एक दरिया है दिल मे दर्द का जो ठहरा सा लगता है,
मातम मनाने दिल मे गमो का सेज सजता है,
मगर ओरो की मेहफ़िल मे गम अपना मैं सजाना नही चाहता,
जाम पी कर आँसूओ का मै चीखना चिल्लाना नही चाहता,

हैं कुछ ज़ख्म दिल के जो मैं दिखाना नही चाहता,
हैं कुछ तक़लीफ़ें मेरी जो मैं बताना नही चाहता…

कुछ पाकर खोना खो कर पाना जीवन का नियम अजीब सा,
मिलकर बिछड़ना बिछड़कर मिलना सारा खेल नसीब का,
कोई है जो गूम हो गया है यहीं कहीं मगर गुमशुदा खुद को मानता हूँ,
ढूढने कोई न आएगा मुझे कम्बख़्त इतना तो मै जानता हूँ,

लुटी सल्तनत की दास्ताँ मैं सुनाना नही चाहता,
झुकी डाली को ओर मैं झुकाना नही चाहता,

हैं कुछ ज़ख्म दिल के जो मैं दिखाना नही चाहता,
हैं कुछ तक़लीफ़ें मेरी जो मैं बताना नही चाहता…

क्या सुनाऊ कथा हार की डंका तो जीत का बजता है,
याद कर बेवफ़ाई यार की खंज़र कोई दिल मे उतरता है,
माना मेरी ख़ता इतनी सी थी कि हम प्यार मे पागल से हो गए,
मगर ख़ता तो उनकी भी थी जो हमे यूँ पागल कर गए,
भीगे अश्को के साथ हाल-ए-दिल यूँ बयां करना नही चाहता,
संग अपने किसी ओर का वक्त यूँ ज़ाया करना नही चाहता,

क्यो पूछते हो हाल मेरा मुझसे,
झूठ कहकर मैं कुछ छिपाना नही चाहता…

हैं कुछ ज़ख्म दिल के जो मैं दिखाना नही चाहता,
हैं कुछ तक़लीफ़ें मेरी जो मैं बताना नही चाहता…

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रचनाकार- सुशांत राज मुखी ।

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

बहुत ही बढिया शायरी

28 अक्टूबर 2021

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