" मना है "
__- सुशांत राज मुखी______
मंजिल पाए बिना राह में
रुकना मना है.
मुसीबतों के आगे हारकर
झुकना मना है.
लहू निकल जाती है निकलने दो
साँसे उखड़ जाती है उखड़ने दो
मगर हौसले का टूटना मना है.
खुद को शेर समझ आगे निकल
ये ज़िन्दगी एक दौड़ है
इस दौड़ में पीछे छूटना मना है.
लोग कुछ कहेंगे कहने दो
उन्हें कहते ही रहने दो
बेफिसुली बातो को सुनना मना है.
कोई गलत समझे समझने दो
कोई तुमसे रूठे रूठने दो
तेरा खुद से रूठना मना है.
ये ज़िन्दगी यूँही नही बनती है
इसको बनाना पड़ता है
उठो चलो संघर्ष करो
जब तक मंजिल हासिल न कर लो
जश्न में झूमना मना है.
प्यार मोहब्बत रिश्ते नाते
कभी हँसाते कभी रुलाते
दिल और दिमाग को काबू कर चलना है
बेकार की चीज़ों में उलझना मना है.
एक ध्यान कर अपनी राह पकड़
चल बेफिकर बढ़ाते कदम
बीच रास्ते से मुड़ना मना है.
ज़िन्दगी एक बार मिली है
इसको खुल कर जीना है
मगर पहले कुछ बड़ा कर
खुद को मजबूती से खड़ा कर
फिर लेना लुफ्त हर मौसम हर बहार का
देखना हर नज़ारा इस संसार का
इस ज़िन्दगी का मज़ा भी भरपूर लेना है
क्योंकि जीने से पहले मरना मना है.
******************//////*************