निशा बहुत डर गई थी,उसे कुछ समझ नहीं आया,उसने झटके से अपना हाथ उस तस्वीर वाली लड़की से छुड़ाया निशा सोचने लगी ये सपना हैं या सच ,तस्वीर से भला कोई बाहर कैसे आ सकता हैं उसने खुद को चिकोटी काटी
"आह, निशा खुद ही चिलाई फिर खुद से ही बोलने लगी अरे ये तो सच में तस्वीर से बाहर आ गई।
"तुम तस्वीर से कैसे बाहर आ गई," निशा ने तस्वीर वाली लड़की से पूछा
"भूल गई तुमने ही तो हाथ पकड़कर मुझे इस तस्वीर से बाहर निकाला" तस्वीर वाली लड़की ने तस्वीर की तरफ इशारा करते हुए निशा से कहा
"भला तस्वीर से भी कोई बाहर आता हैं," निशा भोलेपन से बोली
"अब ये तो तुम ही जानो मुझे तो बाहर तुम ने ही निकाला हैं," उसने भी उसी भोलेपन से जवाब दिया और मुस्करा दी
"तुम भूत हो क्या? निशा ने डरते हुए पूछा
"तुम्हें मैं भूत जैसी दिखती हुँ," उसने मुँह पर नाराजगी लाते हुए कहा
"नहीं तुम तो भूत जैसी नहीं दिखती ,भूत के तो लम्बे लम्बे गन्दे से दांत होते हैं,खूब लम्बे और अजीब से बाल होते हैं , नाखून भी लम्बे और गन्दे होते हैं," निशा ने बड़ी ही मासूमियत से कहा
"ये देखो(हाथ दिखाते हुए)मेरे तो नाखून बिल्कुल भी गन्दे नहीं हैं न ही बड़े है,इईईई देखो मेरे दांत भी छोटे हैं बिल्कुल तुम्हारे जैसे ,(बालों को पकड़ते हुए) देखो मेरे बाल बिल्कुल भी अजीब नहीं हैं, उल्टा तुम्हारें बाल थोड़े अजीब हैं" तस्वीर वाली लड़की निशा के बाल देखते हुए बोली
"तुम्हारा नाम क्या हैं" निशा ने पूछा
"मेरा नाम ,नाम, पता नही तुम ही मेरे लिए कोई नाम सोचो" लड़की बोली
"ठीक हैं मैं ही सोचती हुँ(सोचते हुए) तुम्हारा नाम ,तुम तस्वीर से हो तस्वीर को चित्र भी कहते हैं ,हाँ ये एकदम ठीक हैं तुम्हारा नाम चित्रा ,कैसा रहेगा" निशा ने पूछा
"चित्रा बहुत सुन्दर नाम हैं ,आज से मैं चित्रा हुई"
"तो चित्रा तुम मेरी दोस्त बनोगी,एकदम पक्की वाली" निशा ने हाथ बढ़ाते हुए पूछा
"बनूँगी क्या बन गई,एकदम पक्की वाली" चित्रा ने हाथ मिलाते हुए कहा
"लेकिन एक परेशानी हैं,तुम रहोगी कहाँ" निशा बोली
"तुम्हारें साथ और कहाँ" चित्रा ने कहा
"पर तुम्हें किसी ने देख लिया तो,चाचा-चाची मुझे भी निकाल देंगे फिर हम कहाँ जाएंगे" निशा परेशान होते हुए बोली
"अरे बाबा मैं छुप कर रह लूंगी" चित्रा ने निशा को तस्सली देते हुए कहा
"पर खाना वो कैसे खाओगी ,कहा से खाओगी" निशा ने अपनी परेशानी जाहिर की
",हाँ ये तो हैं,तो क्या मैं भूखी ही रहूंगी" चित्रा उदास होते हुए बोली
"भूखी क्यूँ रहोगी मैं चाची से एक दो रोटी ज्यादा मांग लूंगी ,डाँटेगी पर दे देगी और नहीं देगी तो हम मेरा खाना मिलकर खा लेंगे" निशा ने अपनी बात रखी
इस तरह दोनों ने रहने और खाने की समस्या सुलझा ली थी। चित्रा निशा के साथ छुप कर रहने लगी जब घर पर कोई नहीं होता तब चित्रा काम में निशा की मदद भी कर देती।खाली समय में दोनो खेलती बातें करती। इसी तरह दिन बीत रहे थे पर कब तक ये बात छुपी रहती आखिर कभी न कभी किसी न किसी को तो ये बात पता चलनी ही थी।
एक दिन शाम के वक्त निशा और चित्रा अपनें कमरें में खेल रही थी,तभी रचित वहाँ आ गया दरअसल वो निशा को खेलने के लिए बुलाने आया था चित्रा को देखकर उसने निशा से पूछा," ये लड़की कौन हैं पहले तो नहीं देखा"
निशा और चित्रा सोचने लगी अब रचित को क्या बताए और कैसे बताए
"ये मेरी दोस्त हैं"निशा ने बताया
"पहले तो कभी नहीं देखा इसे यहाँ"रचित बोला
"पहले कभी ये यहां आई ही नही" निशा जल्दी से बोली
"अच्छा वैसे रहती कहाँ हैं" रचित ने फिर पूछा
"मतलब"निशा को कुछ नही सुझा
"मतलब घर कहा हैं इसका" रचित ने फिर से पूछा
अब तो निशा को कोई जवाब ही नही सुझा
"तुम्हें इससे क्या मतलब" निशा ने बात बदलने की कोशिश की
"मत बताओं मैं दीपक से पूछ लूंगा"रचित धमकी वाले अंदाज में बोला उसे कुछ शक सा हो गया था
"नहीं दीपक से मत पूछना"निशा जल्दी से बोली
"तो बताओ फिर कौन हैं ये" रचित ने पूछा
निशा ने चित्रा की तरफ देखा जैसे पूछ रही हो बताना हैं या नहीं
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