दोनों ने आँखो में ही इशारा किया और जैसे आँखो में ही सारी बातें तय हो गई हो
"ये मेरी दोस्त ही हैं ,इसके भी मम्मी पापा कोई नहीं हैं इसलिए मैं इसे यहाँ अपनें साथ ले आई" निशा ने फिर से बात बनाई
"अच्छा तुम्हारें चाचा-चाची को पता हैं "रचित ने पूछा
"नहीं मैंने उन्हें नहीं बताया कही उन्होंने इसे यहाँ से भगा दिया तो ये कहाँ जाएगी" निशा ने कहा
"तो तुम ऐसा करो मेरे साथ मेरे घर चलो मैं अपनें पापा से कहूंगा वो तुम्हें हमारे घर में रख ले,फिर तुम्हें छुप कर भी नहीं रहना पड़ेगा और वो तुम्हें स्कूल भी भेजेंगे ताकि तुम पढ़ सको नए दोस्त बना सको" रचित ने कहा
"नहीं ये सिर्फ मेरी दोस्त हैं" निशा तपाक से बोली
"अच्छा बाबा दोस्त तो सिर्फ तुम्हारी ही हैं, पर मेरे घर पर रह तो सकती हैं न इस तरह तुम कब तक इसे छुपा पाओगी" रचित ने फिर से अपनी बात दोहराई
निशा कुछ नहीं बोली वो शायद सोच रही थी की क्या करें तभी चित्रा बोली,"निशा ये ठीक कह रहा हैं मैं भला कब तक छुप कर रह सकती हुँ, इसके घर रहकर मैं सबके सामने तुम से मिल सकूँगी तुम्हारें साथ खेलूंगी और तुम्हारी मदद भी कर पाऊंगी कोई कुछ कहेगा भी नहीं"
"बात तो तुम्हारी सही हैं पर दीपक तुम्हारें मम्मी पापा इसे अपनें पास रख लेंगे कुछ कहेंगे नहीं" निशा ने अपनी शंका जाहिर की
"मैं उन्हें सब सच बता दूंगा की ये तुम्हारी दोस्त हैं और छुप कर तुम्हारें साथ रह रही थी ,वो मान जाएंगे बहुत अच्छे हैं मेरे मम्मी-पापा" रचित ने निशा को तस्सली दी
"फिर ठीक हैं ,तुम इसे अभी ले जाओ"निशा सहमत होते हुए बोली
निशा को चित्रा के जाने से दुख तो हो रहा था पर रचित की बातें उसे सही भी लगी थी इसलिए उसने चित्रा को वहाँ जाने की सहमति दे दी।रचित के माता-पिता वाकई बहुत अच्छे थे उन्होंने सहजता से चित्रा को वहाँ पर रहने की अनुमति दे दी ,दूसरे रोज एक स्कूल में चित्रा का एडमिशन भी करवा दिया गया। चित्रा नया घर और परिवार पाकर खुश थी खासतौर पर आजादी से वो खुश थी निशा के साथ उसे छुप कर रहना पड़ता था जोर से बोलना नहीं हँसना नहीं पर यहाँ किसी बात पर पाबन्दी नहीं हँसना, बोलना ,खेलना सब कुछ अपनें मन से करती थी और खाने को भी भरपेट मिलता था ,वहाँ तो निशा और उसे एक ही थाली से मिल बांट कर खाना पड़ता तब।
दूसरें दिन शाम को स्कूल से मिले हुए काम को कर के चित्रा ने रचित से निशा के पास चलने को कहा ,रचित फट से तैयार हो गया । चित्रा को देख कर निशा बहुत खुश हुई।
वक्त बीतता गया चित्रा का निशा के घर आना पहले के मुकाबले अब बहुत कम हो गया था पढ़ाई के साथ साथ वो रचित की मम्मी के साथ मिलकर उनकी मदद कर दिया करती थी , अब वो सातवीं कक्षा में थी इसलिए पढ़ाई का भी बोझ ज्यादा था फिर भी हफ्ते में एक बार वो निशा से मिल कर जरूर आती।
इधर निशा फिर से उदास रहने लगी थी बारह साल की निशा भी सातवीं कक्षा में थी पर वो कोई नया दोस्त नहीं बना पाई थी उसकी दोस्ती तो बस चित्रा तक ही थी,चित्रा का कम आना ही उसकी उदासी का कारण था ।चित्रा के आने पर निशा का चेहरा खिल जाता था ,उस दिन निशा चित्रा से खूब बातें करती उसे अपनें स्कूल के बारे में बताती ,चित्रा भी निशा को अपनी पढ़ाई के बारें में बताती।
दिन इसी तरह बीत रहे थे दोनो का मिलना जुलना पहले से कम था पर दोस्ती बहुत गहरी थी। और एक दिन अचानक निशा की चाची न जानें कहा लापता हो गई सब ने बहुत खोजा पर कंही नही मिली ,सब हैरान थे कि इस तरह वो अचानक कहा चली गई,पुलिस में रिपोर्ट भी लिखवा दी थी पर कोई फायदा नहीं उनका पता नहीं लगा।
आगे की कहानी अगले भाग में