अब तक आपने पड़ा निशा एक अनाथ लड़की हैं अपनें दूर के किसी चाचा-चाची के साथ रहती है एक दिन उसके एक तस्वीर पर हाथ फेरते ही तस्वीर वाली लड़की बाहर आ जाती हैं जिसका नाम निशा चित्रा रखती है चित्रा छुप कर निशा के साथ ही रहने लगती है एक दिन रचित को चित्रा को देख लेता हैं तब निशा उसे बताती हैं कि चित्रा भी अनाथ हैं । निशा को समझा कर रचित चित्रा को अपनें घर ले जाता हैं फिर एक दिन निशा की चाची गायब हो जाती हैं। चित्रा जब निशा से मिलने आती हैं तो निशा बताती हैं कि चाची जब उसे डांट रही थी तब उसने चाची को धक्का दिया चाची उसी तस्वीर पर गिर कर उसमें ही चली गई है जिसमें से चित्रा बाहर आई थी। चित्रा के पूछने पर उसने बताया कि उस तस्वीर को उसने कूड़ेदान में डाल दिया हैं । अब दोनो मिलकर उस तस्वीर को कूड़ेदान में तलाश रहे हैं
अब आगे
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"यार वो पोस्टर तो मिला ही नहीं लगता हैं उस दिन का सारा कचरा कूड़े वाली गाड़ी ले गई" कूड़ेदान को टटोलने के बाद निशा बोली
"हाँ लगता तो ऐसा ही हैं, अब वो पोस्टर हमें मिलने से रहा" चित्रा सहमति जताते हुए बोली
"अब हम क्या करेंगे" निशा ने पूछा
"क्या करेंगे कुछ भी नहीं, जैसे अब तक चुप थे अब भी चुप ही रहेंगे क्योंकि हमारी बात का तो वैसे भी कोई विश्वास नहीं करेगा , हमारी बातों का सबूत और गवाह एकमात्र वही तस्वीर थी जो न जानें अब कहाँ हैं" चित्रा ने हाथ साफ करते हुए कहा
"चल अब घर चलते हैं चाचा का भी ऑफिस से आने का समय हो गया हैं" निशा भी हार मानते हुए बोली
"हाँ चल, वैसे मुझे भी तुझे एक बात बतानी थी" चित्रा चलते चलते बोली
"क्या?" निशा ने उसी के साथ चलते हुए पूछा
"रचित के एक अंकल है , उसके पापा के दोस्त हैं वो " चित्रा निशा की तरफ देखने लगी
"हाँ तो" निशा भी चित्रा को सवालिया निगाह से देखते हुए बोली
"उन्होंने मुझे गोद ले लिया हैं और अब वो मुझे अपनें घर ले जाएंगे कल ही " चित्रा बड़ी मुश्किल से बोल पाई
" तो तुम उनके साथ जाओगी , घर कहाँ हैं उनका" निशा चलते चलते रुक गई थी
"दूसरें शहर में हैं" चित्रा ने निशा से नजरें नही मिलाई उसकी आँखे भर आई थी
"मतलब तुम मुझे छोड़कर चली जाओगी" निशा आँखो में मोटे मोटे आंसू भरकर बोली
चित्रा कुछ न बोल सकी वो निशा से लिपट गई और फूट-फूट कर रोने लगी। दोनों बहुत देर तक ऐसे ही लिपट कर रोती रही । बारह साल की छोटी -सी उम्र में बहुत तरह के दर्द झेल चुकी थी निशा पर इस तरह फूट-फूट कर कभी नहीं रोई । जब से चित्रा उसकी जिंदगी में आई थी ,उसकी हर सुख-दुख की साथी बन गई थी और अब वो भी उससे बहुत दूर हो रही थी । काफी देर रोने के बाद रुंधे हुए गले से ही निशा ने पूछा "तुम मना नहीं कर सकती"
"किया था पर सब समझाने लगे कि ये तुम्हारी भलाई के लिए हैं , उनका बच्चा नहीं है वो मुझे अपनी बेटी बनाकर रखेंगे ,मुझे माता-पिता मिल जाएंगे" चित्रा रोते-रोते ही बोली
"तुम्हें माता-पिता मिल जाएंगे पर मैं तो अकेली ही रह जाऊँगी न" निशा चित्रा से अलग होते हुए बोली
"मैं ऐसा करती हुँ आज रात को रचित के घर से भाग कर तुम्हारें पास आ जाती हुँ, तुम्हारें साथ पहले की तरह छुप कर रहूंगी" चित्रा, निशा का हाथ पकड़ते हुए बोली
"नहीं तुम जाओ उनके साथ, तुम्हें माता-पिता का प्यार तो मिलेगा ,यहाँ क्या मिलेगा किसी रोज किसी को पता चल गया तो और मुसीबत" निशा अनमने मन से बोली
"पर मुझे तुम्हारी बहुत याद आयेगी वहाँ और तुम ,तुम कैसे रहोगी" चित्रा बोली
" जैसे अब तक रहती आई हुँ, तुम्हें माता-पिता मिल रहे है ये तो बहुत खुशी की बात हैं और मेरा क्या मैं तो यही हुँ तुम्हें जब भी मौका मिले मुझसे मिलने चली आना" निशा चित्रा को समझाते हुए बोली
"अरे तुम यहाँ हो औऱ मैं तुम्हे कब से उधर ढूंढ रहा था" रचित उन दोनों के पास आते हुए बोला
"वो हम कूड़ा फेंकने आये थे" निशा ने झट से बोला और अपनें आंसू साफ कर लिए
"तुम दोनों रो क्यूँ रही थी"रचित ने उनकी भीगी पलकें देख ली थी
"कल मैं यहाँ से जा रही हुँ न तो..... निशा ने बात अधूरी ही छोड़ दी
"मुझे भी बता देते की यहाँ विदाई पार्टी चल रही हैं मैं भी तुम्हारा साथ दे देता रोने में, मैं रोने में एक्सपर्ट हुँ ,धीरे रोना जोर से रोना ,दहाड़े मार के रोना,सुबक सुबक कर रोना, कुत्ते की तरह रोना, बिल्ली की तरह रोना कुल मिलाकर 25-30 तरह की वैराइटी तो होगी ही मेरे पास रोने की" इतना बोल कर रचित दोनों को देखने लगा , निशा ने चित्रा को देखा, चित्रा ने निशा को देखा और फिर दोनों खिलखिलाकर कर हंस पड़ी।
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चित्रा जा चुकी थी निशा उदास रहने लगी थी ,घर के काम की वजह से अक्सर वो स्कूल नहीं जा पाती।रचित आता जाता रहता था उसके आने से निशा की उदासी कुछ देर के लिए सैर पर निकल जाती थी। चाची के न होने से निशा के लिए काम तो बढ़ गया था पर रोज की डांट-फटकार और भूख से उसे छुटकारा मिल गया था । चाचा ज्यादा कुछ नहीं बोलते थे आखिर घर की देख रेख तो निशा ही करती थी बेशक वो दीपक की हमउम्र थी पर चाचा की गैरमौजूदगी में घर की बड़ी वही थी । कुछ समय तक तो निशा को डर लगा रहता कि कही चाची उस तस्वीर से निकल कर आ गई और उसे घर से बाहर निकाल दिया तो पर धीरे धीरे ये डर भी उसके मन से निकल गया
उधर चित्रा अब वकालत कर रही थी दो-तीन बार निशा से मिलने आई थी वो भी जब उसके पापा को रचित के पापा से मिलना होता था तब चित्रा भी उनके साथ आ जाती और एक दो दिन में वो लोग वापस चले जाते।
चित्रा कानून की पढ़ाई कर रही थी लेकिन अपना अस्तित्व वो तस्वीर उसके दिल-दिमाग से निकल नहीं पाई थी ,वो अक्सर सोचती कहाँ होगी वो तस्वीर क्या निशा की चाची अब भी उसी में होगी , वो तस्वीर अब होगी भी या नहीं ,कही किसी दिन उसे वापस उसी तस्वीर में जाना पड़ा तो। तरह-तरह के ख्याल चित्रा के मन में आते और अगले ही पल उन विचारों से वो ये सोचकर बाहर निकल जाती कि जो होगा सो होगा और अपना ध्यान अपनी पढ़ाई पर लगा देती ।
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रचित इंस्पेक्टर बन चुका था वो
पुलिस स्टेशन में अपनें केबिन में बैठा कोई केस फाइल पढ़ रहा था तभी उसके कानों में एक मीठी सी आवाज पड़ी
"क्या मैं अंदर आ सकती हुँ इंस्पेक्टर साहब"
रचित ने सर उठा कर देखा तो सामने एक सुन्दर सी लड़की खुले बाल, पीले रंग की शॉर्ट कुर्ती के साथ जीन्स पहनें हुए, होंठो पर मुस्कान लिए खड़ी थी
"तुम अंदर आ चुकी हो " रचित बोला
" वैसे पुलिस यूनिफॉर्म में ठीक ठाक ही लगते हो,मूंछ भी रख लेते तो मुजरिमों पर रौब पड़ता" वो लड़की चेयर पर बैठते हुए बोली
"सलाह के लिए शुक्रिया, चित्रा जी पर हम ऐसे ही अच्छे है" रचित बोला
"एडवोकेट निशा कहिए इंस्पेक्टर साहब" चित्रा बोली
"ओह मैं तो भूल ही गया था कि आप वकील बन गई है" रचित मजाकिया लहजे में बोला
"कोई बात नहीं जाओ माफ किया" चित्रा भी मुस्कराते हुए बोली
"वैसे मिस एडवोकेट अपने दोस्त रचित से मिलने आई हैं या इंस्पेक्टर रचित कानूनी दांव पेंच खेलने" रचित ने पूछा
"अगर इंस्पेक्टर रचित की इजाजत हो तो मेरे दोस्त रचित को अब छूट दे दीजिए" चित्रा भी उसी अंदाज में बोली
"जाओ दी" रचित बोल कर मुस्करा दिया
रचित और निशा पुलिस स्टेशन से बाहर आ गए
"कॉफी" रचित ने पूछा
"ओके" चित्रा बोली
दोनों पास ही एक कॉफी शॉप में चले गए, रचित ने दो कॉफी का ऑडर दे दिया
"बताओ फिर यहाँ दिल्ली कैसे आना हुआ" रचित ने पूछा
"बस यूँही निशा से मिलने चली आई और अब मैं भी यही शिफ्ट करने की सोच रही हुँ" चित्रा बोली
" ये तो गुड न्यूज है, तो कब कर रही हो शिफ्ट" रचित ने पूछा
"जल्द ही " चित्रा ने जवाब दिया
तब तक वेटर कॉफी भी ले आया
"निशा से मिल ली या अब जाओगी" रचित ने कॉफी का सिप लेते हुए कहा
"उसी से मिल कर आ रही हुँ, दिल्ली पहुँचते ही सबसे पहले उसी के पास गई थी आखिर उसी की वजह से मैं इस दुनियाँ में हुँ" निशा कॉफी का घूँट भरते हुए बेख्याली में बोली
"मतलब" रचित ने थोड़ा हैरानी से पूछा
"मतलब, उस दिन वो मुझे अपनें साथ नहीं लाती तो पता नहीं मैं कहाँ होती" चित्रा ने बात संभालते हुए कहा
"अच्छा, तो कैसा लगा उससे मिल कर" रचित ने पूछा
"थोड़ा अजीब, मतलब उसका व्यवहार थोड़ा अजीब लगा बदला बदला सा" कॉफी का कप नीचे रखते हुए चित्रा बोली
"तुम्हें भी लगा न ,मुझे भी ऐसा ही लगता हैं ,ध्यान भी न जानें कहाँ रहता हैं उसका, मैं पिछली बार जब उससे मिलने गया था तो उसका ध्यान जानें कहाँ था ,ठीक से बात भी नहीं की उसने" रचित बिल टेबल पर रखते हुए बोला।
दोनों कॉफी शॉप से बाहर निकल आए और रचित के घर की तरफ चल दिए । घर पहुँचकर
"अच्छा तुम्हारा क्या चल रहा हैं आजकल" चित्रा ने पूछा
"कुछ खास नहीं पर हाँ एक अजीब सा केस आया हैं आज" रचित ने कहा
"कैसा केस" चित्रा ने पूछा
"लो एक पुलिस वाला और दूसरी वकील बस यही सारे केस लड़ लो तुम लोग ,मेरा घर न हुआ कोर्ट रूम हो गया" रचित की माँ बोली
" अरे माँ तुम भी न " रचित माँ के गले में बाँहे डालते हुए बोला
"बस बस तुम दोनो चेंज कर लो ,तब तक मैं चाय चढ़ा देती हुँ और गर्म -गर्म कचौरी भी तैयार हैं" माँ बोली
"वाह कचौरी " चित्रा और रचित एक साथ बोले
"हाँ कचौरी पर मिलेगी तब जब तुम दोनों की कानूनी बातें इस घर से बाहर होंगी" माँ ने मुँह बनाते हुए कहा
"बस इतना ,आज के बाद कानून की बातें घर के बाहर ओके चित्रा" रचित चित्रा को देखते हुए बोला
"ओके ओके" चित्रा सिर हिलाते हुए मुस्करा कर बोली
"हाँ-हाँ जानती हुँ सब, जाओ अब चेंज कर के आओ" माँ हल्का सा डांटते हुए बोली
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निशा अब खुश रहने लगी थी ,उसे उसके मनपसन्द कपड़े मनपसन्द खाना सब कुछ मिल रहा था अपनें कमरें में शीशे के आगे वो घण्टों खुद को निहारती बाल सँवारती उसके पास सजने संवरने के लिए हर सामान उपलब्ध था, अब घर के काम भी वो नहीं करती थी, एक बड़ी सी मॉल में वो जॉब करती थी पर क्या जॉब थी ये किसी को नहीं पता था घर के काम के लिए एक नौकरानी को जानें कहाँ से पकड़ कर लाई थी। सुमन को शक था कि कोई अमीर बॉयफ्रेंड है निशा का तो वहीं दीपक कई बार उसका पीछा करके पता करने की कोशिश करता लेकिन उसके हाथ भी कुछ नहीं लगा ।
चाचा सब देखते पर निशा को कुछ कहते नहीं थे उनकी खुद की नौकरी तो अब थी नहीं , दीपक भी अब तक बेरोजगार ही था सुमन भी कुछ खास नहीं कर रही थी ऐसे में सिर्फ निशा थी जो घर की जरूरत को पूरा कर रही थी और हर महीने एक नियमित रकम चाचा के हाथ पर रखती थी।
सिर्फ बाहरवीं पास निशा को ऐसी कौन सी नौकरी मिली थी जिससे इतना सब कुछ वो खरीद लाती थी ये सिर्फ निशा ही जानती थी। इसलिए इस बार चित्रा से बात करने से भी वो कतरा रही थी यही वजह थी कि उसने चित्रा से ठीक से बात भी नहीं की ,उसका रवैया देख कर चित्रा भी वहाँ ज्यादा रुकी नहीं, रचित को भी कब से इग्नोर करने लगी थी आखिर रचित पुलिस वाला था वो भी एक घाघ पुलिस वाला जो सामने वाले को देखते ही ताड़ जाता कि कुछ गड़बड़ तो जरूर है,इसलिए निशा उससे भी ठीक से बात नहीं करती थी
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