आज इस कहानी का अंतिम भाग हैं।अगर आप "रहस्य तस्वीर का" आज पहली बार पढ़ रहे हैं तो मेरी आपसे गुजारिश हैं इसे अच्छे से समझने के लिए पहले पिछले भागों को पढ़े
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निशा काफी देर तक यूंही खड़ी रही। चित्रा के साथ बिताया हुआ हर पल उसके आगे एक फ़िल्म की तरह चलने लगा,पहली बार जब निशा ने उसकी तस्वीर देखी थी तब से लेकर अब तक जब अभी-अभी जीती-जागती चित्रा तस्वीर बन चुकी थी। ये ख्याल आते ही निशा खुद ही चीख उठी "नहीं ये नहीं हो सकता"
निशा की चीख सुनकर उसके चाचा और शकुंतला दौड़ते हुए आए।
"क्या हुआ तुम चीखी क्यों" चाचा बोले
"कुछ नहीं वो बस ऐसे ही आप जाइए आराम कीजिए" निशा गीली हुई पलकों को छुपाते हुए बोली
चाचा चलें गए शकुंतला वही खड़ी रही वो गौर से बिखरें हुए कमरें को देखने लगी ।
"तुम क्या घूर रही हो जाओ रात के खाने का इंतजाम करों" निशा आवाज में जबरन कर्कशता लाते हुए बोली
"जी दीदी " शकुंतला ने इतना ही कहा और चली गई
निशा भीगी पलकों से काफी देर तक मैगजीन की उस तस्वीर को देखती रही जिस में अब चित्रा कैद हो चुकी थी। निशा उन दो आंखों से भी बेखबर थी जो खिड़की से छुप कर इस कमरे में घटी हुई पूरी घटना की गवाह थी उन आंखों में भी बैचेनी झलक रही थी।
"नहीं मैं तुम्हें तस्वीर नहीं बनने दूंगी, मैं अपनी बेस्ट फ्रेंड को तस्वीर बन कर कैसे रहने दूँ" निशा खुद से ही बोली और उस मैगजीन के पास जाकर घुटनों के बल बैठ गई फिर ..... फिर उसने मैगजीन की ओर अपना हाथ बढ़ाया चित्रा की तस्वीर को छुआ और .... और एक झटके में चित्रा का हाथ पकड़कर उसे बाहर निकाल लिया। चित्रा एक बार फिर जीती-जागती उसके सामने खड़ी थी ,चित्रा ने तस्वीर से बाहर आते ही खुद को टटोला और फिर निशा के गले लग गई। दोनों सहेलियों की आंखों से आंसुओ की धारा बह निकली ।
काफी देर तक दोनों एक-दूसरे से ऐसे ही लिपटी रही फिर चित्रा निशा को खुद से अलग करते हुए बोली "तूने मुझसे इतनी बड़ी बात छुपाई, क्यूँ ? चल छुपाई कोई बात नहीं पर तु अपनी इस शक्ति का गलत इस्तेमाल क्यूँ कर रही हैं, सच बता शिखा की ड्रेस भी तूने ही मैगजीन से निकाली थी न और अब शिखा को भी शायद तूने किसी मैगजीन का हिस्सा बना दिया हैं?" चित्रा निशा की दोनों बांहे पकड़ कर बोली।
निशा ने आंखे उठाकर चित्रा की ओर देखा और कुछ सेकेण्ड तक अपलक देखती रही जैसे सोच रही हो कि कहाँ से शुरुआत करें फिर अपनी बांहे छुड़ा कर बेड पर धम्म से बैठ गई ।कुछ देर दोनों के बीच खामोशी पसरी रही चित्रा वही पर खड़ी थी और निशा को देखे जा रही थी, चित्रा को लगा निशा शायद अब भी कुछ नहीं बताएगी ।लेकिन निशा बोलने लगी
"जब तू उस तस्वीर से बाहर आई थी तब मुझे लगा था कि वो एक चमत्कार था जो भगवान ने मेरी प्रार्थना सुनकर किया था,फिर एक दिन चाची भी उसी तस्वीर में समा गई तब मुझे लगा वो तस्वीर ही जादुई थी पर मैं गलत थी वो तस्वीर जादुई नहीं थी" निशा बोले जा रही थी और चित्रा चुपचाप उसकी बातें सुन रही थी साथ ही वो दो आंखे अब भी कमरें के अंदर देख रही थी।निशा ने बोलना जारी रखा
"तू भी यहाँ से जा चुकी थी मैं एक बार फिर अकेली पड़ गई थी एक दिन मैं स्कूल की एक किताब पढ़ रही थी तभी मेरे दिल में यूँही ख्याल आया और मैंने उसके एक चित्र को छुआ और उसे बाहर निकालने की सोची और उस चित्र में बना हुआ पेन सच में मेरे हाथ में था,मैं आश्चर्य से भर गई फिर मैंने दो तीन और छोटी-छोटी चीजे चित्र से निकाली, मुझे एक टाइम पास गेम मिल गया था मैं अक्सर तस्वीरों से सामान निकालती कभी पेन कभी कोई किताब या नोटबुक ये वो जरूरी चीजें थी जो चाचा मुझे नहीं दिलाते थे ।अब मेरी ये पॉवर मेरा टाइम-पास और मेरी जरूरत दोनों थी। मैं अब पहले से ज्यादा खुश रहने लगी थी । लेकिन मेरी खुशी ज्यादा देर तक टिकी न रह सकी एक बार मैंने एक तस्वीर में बहुत सुंदर टॉप्स देखे ,मैंने उन्हें निकाल लिया और कानों में पहन लिए ।मैं बहुत खुश थी शाम के वक्त चाचा को चाय देने लगी तो चाचा ने मेरे कानों में नए सोने के टॉप्स देख लिए उन्होंने तुरंत पूछा "ये कहाँ से आए " मुझसे कुछ कहते न बना ,मैंने बहाना बनाया मेरी एक सहेली ने दिए हैं। चाचा को गुस्सा आ गया वो चिल्ला पड़े " ऐसी कौन सी रईस सहेली हैं तुम्हारी जो तुम्हें सोने का सामान दे रही हैं"
मैं बहुत डर गई मुझे तो खुद नहीं पता था कि वो टॉप्स सोने के हैं मैंने अपनी बात रखने के लिए कह दिया कि मैं सच कह रही हुँ उस दिन पहली बार चाचा ने मुझ पर हाथ उठाया न सिर्फ हाथ उठाया बल्कि तब तक पीटते रहे जब तक वो थक नहीं गए, उन्हें लगा था मैं ने कही चोरी की हैं
निशा की पलकें भीग गई थी आवाज में भारीपन आ गया था शायद पिटाई का वो मंजर उसकी आँखों के आगे जीवन्त हो उठा था। चित्रा उसके करीब आई उसकी पलकें पोंछी और उसे गले से लगा लिया। थोड़ी देर के लिए कमरें में फिर से मौन छा गया । तभी शकुंतला की आवाज आई "दीदी चाय लाई हुँ "
निशा खुद को चित्रा से अलग करते हुए बोली "यहाँ टेबल पर रख दो" शकुंतला ने चाय टेबल पर रख दी कमरे की शांति को उसने भी भांप लिया था लेकिन पूछने की हिम्मत न हुई और वो कमरें से बाहर चली गई ।शकुंतला के जाते ही चित्रा ने चाय का कप उठाया और निशा को पकड़ा दिया फिर खुद भी एक कप उठा लिया चाय का एक घूंट भरते हुए चित्रा निशा की ओर देखने लगी
निशा भी चाय का घूंट भरते हुए बोलने लगी" उस दिन चाची के गायब होने के बाद पहली बार मुझे मार पड़ी थी वो भी तब जब मैं उम्र के सत्रहवें पड़ाव पर थी बचपन में मार सिर्फ शरीर पर पड़ती थी और अब ये मार दिल और मन पर पड़ी थी ।घर का सारा काम करते हुए ,खाना बनाते हुए भी मुझे ही दो दिन तक खाना नहीं दिया गया ,स्कूल जाना भी बंद कर दिया । काफी दिनों तक जब मैं स्कूल नहीं गई तो एक मैडम मुझे देखने घर ही चली आई ,चाचा भी तब घर पर ही थे ,उन्होंने बहाना बना दिया कि मेरी तबियत खराब हैं इसलिए मैं स्कूल नहीं जा पा रही हुँ, अब ठीक हो गई हुँ तो कल से स्कूल जाऊंगी।झूठ ही सही लेकिन उसके दूसरे दिन से मैं फिर स्कूल जाने लगी । चाचा ने साफ साफ कह दिया था बारहवीं के एग्जाम होते ही मुझे कही नौकरी करनी होगी रिजल्ट चाहे जो हो अब वो मेरा खर्च नहीं उठा सकते। मैं तो कभी बाहर गई ही नहीं थी इस घर से स्कूल तक का ही रास्ता पता था मुझे। घर और स्कूल बस यही मेरी पूरी दुनिया थी, मैं सोच कर ही कांप जाती कि मैं कैसे और कहाँ नौकरी ढूंढूंगी। खैर मरता क्या न करता मैंने भी एक मॉल के एक शोरूम में अपनें लिए काम ढूंढ ही लिया लेकिन वहाँ इतने पैसे नहीं मिलते थे कि मैं चाचा को खुश कर सकू और अपना जेब खर्च भी निकाल सकू। मैं फिर से परेशान रहने लगी ,दिन भर शोरूम में भागा-दौड़ी सुबह-शाम घर के काम मैं बहुत थक जाती थी। फिर एक दिन मैंने फिर से अपनी इस शक्ति को आजमाया। धीरे-धीरे मैं जरूरत की हर चीज तस्वीर से निकालने लगी।उस दिन भी शिखा की वो ड्रेस मुझे बहुत पसंद आई तो मैंने निकाल ली पर मुझे नहीं पता था इतना बड़ा तमाशा हो जाएगा। इससे पहले कभी ऐसा हुआ भी नही था । मुझे तो पता भी नहीं था कि एक तस्वीर से कुछ निकालने पर वो सामान सारी तस्वीरों से गायब हो जाता हैं।बल्कि मैंने तो इस बात पर भी बहुत बाद में ध्यान दिया कि ये वही मॉडल हैं जिसकी ड्रेस उस मैगजीन से मैंने निकाल ली थी ,मैं घबरा गई कुछ समझ नहीं आया , फिर सोचा शिखा से ही बात कर लू शायद वो कुछ हल निकाल ले ।मुझे डर था कही पुलिस मुझे पकड़ न ले। मैंने शिखा का नम्बर भी ढूंढ लिया था लेकिन क्या बात करूं कुछ समझ नहीं आ रहा था शोरूम में काम पर भी मेरा ध्यान नहीं था तभी मेरी नजर सुंदर के मोबाईल पर पड़ी मैंने चुपचाप उसका मोबाईल उठा लिया और अपना वही रख दिया । हम दोनों के मोबाईल एक जैसे ही थे और शोरूम पर हम मोबाईल ज्यादा यूज करते नहीं थे तो इसकी उम्मीद बहुत कम थी कि वो ध्यान दे पाता कि वो उसका नहीं हैं और अगर पता चल भी जाता तो मैं कह देती मैंने गलती से उसका मोबाईल ले लिया। बस फिर मैं बहाना बना कर शोरूम से निकली और शिखा को कॉल करके बोला कि मैं उस ड्रेस और मैगजीन के सच जानती हुँ और अगर उसे जानना हैं तो तुरंत मुझसे मिले।मेरा इरादा गलत नहीं था पर एक गलती जो मुझसे हो गई थी उसे छुपाने के लिए मुझे दूसरी गलती भी करनी पड़ी।शिखा मुझसे मिलने को तैयार हो गई"
"और फिर वो तुम्हें मिलने साउथ एक्सटेंशन मेट्रो स्टेशन आई जहाँ पहुँच कर तुमनें उसे फिर कॉल लगाई और लेडीज टॉयलेट में बुलाया फिर वहाँ से उसे शायद किसी मैगजीन में बंद कर दिया" चित्रा ने बात पूरी की
"हाँ पर तुम्हें कैसे पता साउथ एक्सटेंशन के बारे में ",निशा हैरानी से बोली
"मेरी प्यारी सहेली तुम भूल रही हो मैं एक वकील हुँ और इस केस पर रचित के साथ ही हुँ" चित्रा बोली
"अब शकुंतला का राज भी खोल दो" चित्रा ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा
"शकुंतला तो खुद मेरे लिए राज हैं" निशा बोली
"मतलब" चित्रा गहरी हैरानी से बोली
"मतलब शकुंतला जिंदा इंसान हैं ही नहीं" निशा ने बताया
"वो तो मैं भी जानती हुँ मैं अभी-अभी उसी के घर से उसकी फोटो पर हार देख कर आ रही हुँ" चित्रा ने बताया
"ओह मैं तो भूल ही गई थी कि उसके घर मैं ही तो ले गई थी तुझे उस दिन " शकुंतला के बच्चों को मैं पहले से ही जानती थी हम अनाथ आश्रम में मिले थे ,न जाने कैसे उसकी तस्वीर मेरे बैग में आ गई। मैंने यूँही इसे बाहर खींच लिया और ये जीती जागती मेरे सामने थी तब मुझे पता नहीं था कि शकुंतला गोलू और गुड़िया की माँ हैं । ये दूसरी बार हुआ था जब एक इंसान को मैंने चित्र से बाहर खींच लिया था । मैंने कई बार कोशिश की लेकिन किसी भी तस्वीर से मैं इंसान को बाहर नहीं निकाल पाई ये जाने कैसे बाहर आ गई तेरी तरह ये भी हर चीज से अनजान थी मैंने घरवालों से झूठ बोलकर इसे घर के कामों के लिए रख लिया । एक जब मैं गोलू के घर गई तब मैंने वहाँ शकुंतला की तस्वीर देखी तब पता चला कि शकुंतला ही गोलू की माँ हैं और जिस रोज मैंने शकुंतला को तस्वीर से निकाला था उसी रोज शकुन्तला का देहांत हो चुका था।"
"कही ऐसा तो नहीं कि इधर तूने इसे बाहर निकाला और उधर शकुन्तला मर गई" चित्रा ने आशंका जताई
"मुझे भी ऐसा ही लगा था ,पर ऐसा नहीं हुआ था शकुन्तला सुबह ही मर चुकी थी जबकि मैंने उसे शाम को तस्वीर से बाहर निकाला था" निशा ने बताया
"तब मैंने शकुन्तला को भी उसके परिवार के बारें में बताया था वो कई बार उनसे मिलने की जिद करती पर अगर उनसे मिल लेती तो मेरी शक्ति का सच भी खुल जाता इसलिए मैंने कभी मंजूरी नहीं दी"
"अच्छा और शिखा वो कहाँ हैं "चित्रा ने पूछा
"वो... अभी रुक" निशा कपड़ो की अलमारी से एक मैगजीन निकाल कर दिखाती हैं
"इसे भी बाहर निकाल दे"चित्रा निशा से बोली
"लेकिन" निशा घबराई हुई सी बोली
"तू डर मत मैं हुँ न " चित्रा निशा से बोली
निशा ने शिखा का हाथ पकड़कर उसे तस्वीर से बाहर निकाल दिया शिखा बेहोश थी। चित्रा पास आकर बोली इसे क्या हुआ
"कुछ नहीं बेहोश हैं बस, उस दिन थोड़ी धक्का-मुक्की में ये दीवार से जा टकराई और बेहोश हो गई । मैंने उसी हालत में इसे तस्वीर में कैद कर दिया" निशा ने बताया
"अच्छा ये तो अच्छी बात हैं बस इसे कोई परेशानी न हुई हो"चित्रा शिखा को देखकर बोली
"तुम अंदर आ सकते हो" चित्रा थोड़ा जोर से बोली
"तू.... तू किसे बुला रही हैं ।कहीं रचित तो नहीं....हाँ उसे ही लाई होगी तू साथ में.... मतलब मैं जेल जाऊँगी। मैं अब ऐसा नहीं करूंगी मुझे जेल मत भेज चित्रा" बोलते बोलते निशा पीछे खिसकने लगी
"तू घबरा मत ,हम सब इसका कुछ हल निकाल लेंगे " चित्रा निशा को घबराया हुआ देख कर उसे समझाने की कोशिश करने लगी
तभी रचित कमरें में आ गया रचित को देखते ही निशा विपरीत दिशा में पलटी और दौड़ने को हुई कि तभी उसका सिर दीवार से टकराया और वो गश खाकर गिर पड़ी।
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शिखा को होश आ गया था लेकिन उसे ठीक से याद नहीं था कि उसके साथ हुआ क्या था।रचित ने केस को अपनें तरीके सुलझा कर लोगों के आगे प्रिंटिंग में ही गड़बड़ी को जिम्मेदार ठहराया था। केस को उसने अपनें तरीके से हैंडल कर लिया था निशा का नाम भी नहीं था पूरे केस में आखिर उसने ये सब जानबूझ कर नहीं किया था हालातों की मारी थी वो उससे गलती हो गईं थी फिर चित्रा को पूरा विश्वास था कि ये गलती निशा दोबारा नहीं करेगी और फिर यकीन भी कौन करता इस बात पर इसलिए इस बात को बड़ी सफाई से छुपा दिया गया। फिलहाल निशा हॉस्पिटल में ICU में थी उसे काफी गहरी चोट आई थी उसे कब होश आएगा किसी को नहीं पता ।चित्रा उसके जल्द ठीक होने का इंतजार कर रही थी और भगवान से प्रार्थना भी।
इतना प्यार और अपना कीमती समय देने के लिए दिल से धन्यवाद कमेंट जरूर करें एक लेखक को उसके पाठक के कमेंट से जो खुशी मिलती हैं उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती साथ ही प्रोत्साहन भी मिलता हैं अच्छा और बेहतर लिखने के लिए। आपको बता दू चित्रा और रचित की जोड़ी आपको आगे की कहानियों में भी मिलेगी बल्कि इनकी जोड़ी को लेकर एक और कहानी लिखी भी हैं नाम हैं"कौन"। आगे किसी कहानी में निशा के होश में आने के बाद कि कहानी भी होगी एक नए रोमांच के साथ । फिलहाल देरी के लिए माफी चाहूंगी। इस कहानी को यही पर समाप्त करते हुए 🙏🙏