अब तक आपने पढ़ा निशा एक अनाथ लड़की हैं जिसे एक परिवार ने अब तक पाला हैं उन्हें वो चाचा-चाची कहती हैं उनके दो बच्चें हैं दीपक और सुमन। एक दिन निशा एक तस्वीर को निहारते हुए हाथ लगाती है तभी अचानक उस तस्वीर से लड़की निकल कर निशा के सामने आ जाती हैं । उस लड़की के कहने पर निशा उसका नाम चित्रा रख देती हैं, दोनों में गहरी दोस्ती हो जाती है। कुछ दिन चित्रा निशा के साथ उसी घर में छुप कर रहती है लेकिन एक दिन दीपक का दोस्त रचित उसे देख लेता हैं तब निशा चित्रा को अपना दोस्त बताकर रचित से उसका परिचय कराती हैं और अपनी ही तरह चित्रा को भी अनाथ बताती हैं। रचित निशा से कहता हैं की चित्रा को उसके घर भेज दे वहाँ वो पढ़ाई भी करेगी और छुप कर भी नहीं रहना पड़ेगा। पहले तो निशा मना करती हैं लेकिन फिर मान जाती है और एक दिन अचानक निशा की चाची गायब हो जाती है । चित्रा निशा से मिलने आती तो निशा चित्रा को बताती है कि चाची अब उसी तस्वीर में हैं जिसमें से निकल कर चित्रा आई थी
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अब आगे
चित्रा की नजरें निशा के चेहरे पर ही टिकी थी ,चित्रा हैरान थी कि आखिर चाची उस तस्वीर में कैसे चली गई
"मैं रोज की तरह शाम को सारे काम निपटा कर अपनें कमरें में गई ,मुझे स्कूल का काम करना था वैसे भी तुम्हारें और रचित के सिवा मैं किसके साथ खेलती इसलिए काम खत्म करके मैं सीधे कमरें में चली गई ,मैं स्कूल की कॉपी खोल कर बैठी ही थी तभी चाची दनदनाते हुए कमरें में आ गई ,मैं डर गई क्योंकि चाची अब हाथ भी उठाने लगी थी और कभी कभी खाना-पीना देना भी बन्द कर देती थी इसलिए मैं तुरन्त कॉपी बन्द करके खड़ी हो गई शायद कोई काम रह गया हो ,बड़ी हिम्मत करके मैंने चाची से पूछा 'चाची कुछ काम रह गया क्या आप बता दीजिए मैं अभी कर देती हुँ' पर न जाने क्यूँ चाची का गुस्सा सातवें आसमान पर था चाची ने मेरी बात सुनी अनसुनी कर दी और बड़बड़ाते हुए इधर उधर देखने लगी। मैं समझ गई चाची मुझे मारने के लिए डंडा ढूंढ़ रही है मैं बहुत ज्यादा डर गईं अचानक चाची ने मेरे बाल पकड़ लिए मैं दर्द से बिलबिला उठी ,मैंने चाची के हाथ को झटका दिया जिससे चाची पीछे की तरफ उस पोस्टर पर गिर गई और उस पोस्टर पर गिरते ही उसी पोस्टर में समा गई। बस इतना हुआ रात तक जब चाची नहीं दिखी तो सब चाची को ढूंढने लगे मैं किसी को बता भी नहीं सकती थी ये सब," निशा इतना कह कर चुप हो गई
"अब वो पोस्टर कहाँ हैं" चित्रा ने पूछा
"वो.. वो मैंने पीछे वाली गली के कूड़ेदान में फेंक दिया" निशा ने बताया
"कूड़ेदान में , पर क्यूँ" चित्रा ने पूछा
"मैं बहुत घबरा गई थी कुछ समझ नहीं आया फिर सोचा अगर किसी ने चाची को उस तस्वीर में देख लिया तो, इसलिए मैं उस मुसीबत की जड़ को उस पोस्टर को फेंक कर आ गई।" निशा फिर खामोश हो गई
"चलो अभी जाकर उस तस्वीर को लेकर आते हैं" चित्रा निशा का हाथ पकड़ते हुए बोली
"पर क्यों उस पोस्टर को हम वापस क्यों लेकर आएंगे" निशा ने चित्रा को हैरानी से देखते हुए कहा
"क्योंकि हो सकता हैं हम उसमे से चाची को बाहर निकाल सकें" चित्रा ने अपनी बात बताई
"पर तस्वीर से चाची बाहर कैसे आ सकती है" निशा बोली
"जैसे मैं आई, पहले तुम मेरी पूरी बात सुनो, वो तस्वीर रहस्मयी हैं ये तुम भी जानती हो और मैं तो खुद उस तस्वीर से आई हुँ, मतलब तुमनें मुझे निकाला हैं। हो सकता हैं कभी चाची की ही तरह किसी ने मुझे उस तस्वीर में डाल दिया हो फिर तुम्हारें हाथ लगाते ही मैं उस तस्वीर से बाहर आ गई। इसी तरह क्या पता उस तस्वीर पर तुम्हारें हाथ पड़ते ही चाची भी बाहर निकल आए।
निशा अब भी असजंमस में थी कि क्या किया जाए
"क्या सोचने लगी चलो न" चित्रा निशा को हिलाते हुए बोली
"मैं सोच रही हुँ अगर सच में चाची बाहर आ गई तो" निशा ने अपनें मन की बात बोली
"तो?? चित्रा सवालिया निगाहों से देखते हुए बोली
"तो चाची सब को बता देगी कि मैंने उन्हें धक्का दिया था" निशा ने अपना डर जाहिर करते हुए बोला
"तो तस्वीर से बाहर भी तो तुम ही लाओगी न, इन सब के बारें में बाद में सोचेंगे फिलहाल हमें वो पोस्टर लाना हैं , चलों" चित्रा निशा का हाथ खींचते हुए ले गई।
"इसी में फेंका था न" कूड़ेदान के पास पहुँचकर चित्रा ने पूछा
"हाँ इसी में फेंका था" निशा ने जवाब दिया
"चलो ढूंढते हैं" चित्रा ने कहा और कूड़े के ढेर को टटोलने लगी
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