काफी खोजबीन के बाद भी जब चाची नहीं मिली तो चाचा ने उन्हें खोजना ही छोड़ दिया और सब ऊपरवाले के भरोसे छोड़ दिया।
अब घर के सारे काम की जिम्मेदारी निशा पर आ गई थी ।चाची थी, तो उसे खाना नहीं बनाना पड़ता था पर अब सब कुछ उस पर ही आ गया था।इसी कारण वो दो दिन से स्कूल भी नहीं जा पाई थी बहुत परेशान थी निशा लेकिन अपनी परेशानी बताए किसे। जबसे उसकी चाची गायब हुई थी तब से अभी तक चित्रा उससे मिलने नहीं आ पाई थी।एक चित्रा ही तो थी जिसे वो अपनी हर बात ,हर परेशानी बताती थी।
एक रोज निशा कपड़े धो रही थी तभी उसे रचित और चित्रा आते हुए दिखाई दिए ,चित्रा पर नजर पड़ते ही निशा की खुशी का ठिकाना न रहा ।
"दीपक कहाँ पर हैं" रचित ने पास आकर पूछा
"अपनें कमरें में हैं, वो पढ़ाई कर रहे हैं"निशा ने जवाब दिया
"तुम तो यहीं रहोगी निशा के पास"दीपक ने चित्रा से पूछा
"हाँ तुम दीपक से मिल आओ" चित्रा ने जवाब दिया
रचित के वहाँ से जाते ही निशा ने चित्रा का हाथ पकड़ा और तेजी से अपनें कमरें की तरफ ले गई।
"क्या बात है तुम मुझे वहाँ से इस तरह खींचकर क्यूँ ले आई" चित्रा ने कमरें में पहुँच कर पूछा।
"मुझे तुम से कुछ बात करनी हैं" निशा ने कहा
"हाँ पर उसके लिए यहाँ आने की क्या जरूरत हैं हम वहाँ पर काम करते हुए भी तो बात कर सकते थे न", चित्रा ने निशा को देखते हुए कहा
"हाँ लेकिन बात कुछ ऐसी है जो मैं वहाँ पर नही कर सकती थी " निशा ने जमीन में नजरें गड़ाते हुए कहा
"अच्छा वैसे मुझे भी तुम्हें कुछ बताना हैं, पहले तुम अपनी बात कर लो फिर मैं बताऊंगी" चित्रा ने निशा के कंधो पर अपनी बांहे रखते हुए कहा
"वो बात ये है कि... समझ नहीं आ रहा तुम्हें कैसे बताऊँ " निशा थोड़ा अटकते हुए बोली
"बता तो यार मैं तो तुम्हारी पक्की वाली दोस्त हुँ न" चित्रा ने निशा की ठोढी पकड़ते हुए कहा
"हाँ वो हैं पर...., ये समझ लो बात कुछ तुम से जुड़ी हुई हैं" निशा ने बड़ी मुश्किल से इतना कहा।
"मुझ से जुड़ी हुई" चित्रा थोड़ा जोर से हैरानी के साथ बोली। साथ ही उसके मन में तरह -तरह के ख्याल आने लगे। कही निशा उसे वापस पोस्टर में तो नहीं भेजने वाली या फिर अब उसकी चाची नहीं हैं तो उसे वापस यही बुलाने का सोच रही हो, कही घर के सारे काम अब निशा उससे करवाना चाहती हो,ऐसे तो वो स्कूल भी नहीं जा पाएगी लेकिन उसे तो पढ़ना बहुत पसन्द हैं ....... चित्रा इसी तरह के विचारों से घिरी हुई थी
"हाँ तुम से जुड़ी हुई ही हैं, तुम्हें याद हैं जिस पोस्टर से तुम आई थी" निशा ने चित्रा को देखते हुए कहा इधर चित्रा का दिल जोर जोर से धड़क रहा था न जाने निशा आगे क्या बोले
"हाँ.. याद हैं.. तो" चित्रा अटक अटक कर बोली
"उस पोस्टर में अब चाची चली गई है" निशा ने फट से ये वाक्य पूरा किया
"क्या" चित्रा की आँखे बड़ी हो गई और निशा के चेहरे पर जम गई
"हाँ यही सच हैं" निशा ने बेचारगी से कहा
"पर कैसे हुआ ये सब" चित्रा उसी हैरानी से बोली
"बताती हुँ,पर पहले तुम बैठ जाओ" निशा ने बेड की तरफ इशारा करते हुए कहा
चित्रा बेड पर निशा के पास ही बैठ गई
आगे की कहानी अगले भाग में