राम सिर्फ नाम नहीं मंत्र है , चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि तो भगवन विष्णु ने इस वसुंधरा पर रामावतार लिया था | राम का जन्म अयोध्या में हुआ था अयोध्या का अर्थ है जहाँ कोई युद्ध नहीं हो सकता युद्ध अर्थात विवाद, संघर्ष , जो की काम, क्रोध , मोह, मद , ईर्ष्या और द्वेष के कारण होते है | जहाँ कोई विकार ही नहीं होगा तो राम आएंगे ही |
हालाँकि जो सब में रमा हो वो राम है , परन्तु उसको जानना बड़ा कठिन है , काम, क्रोध , मोह, मद अदि विकारों से हमारा मन भरा हुआ है जब तक इन आवरणों को नहीं हटाएंगे तब तक राम को कैसे जान पाएंगे ?
रामावतार दशरथ और कौशल्या के यहाँ हुआ था, दशरथ का अर्थ है पांच ज्ञानेन्द्रियों और पांच कर्मेन्द्रियों का रथ और कौशल्या का अर्थ है कौशल | जब इस दस रथों वाले शरीर को कुशलता पूर्वक साधोगे तभी राम प्रगट होंगे |
रामावतार का लक्ष्य सिर्फ रावण को मारना नहीं था , रावण काम, क्रोध , मोह, मद अदि विकारों का प्रतीक है, इस धरती पर बोझ इंसानो से से नहीं बढ़ता बोझ तब बढ़ता है जब ये विकार बढ़ने लगते है और इनके वशीभूत हो कर इंसान अनीति करने लगता है |
राम को जानना है तो इस मन को साधना बहुत जरुरी है |
श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं, नवकंज लोचन, कंजमुख कर, कंज पद कंजारुणं. कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरज सुन्दरम, पट पीत मानहु तडित रूचि-शुची नौमी, जनक सुतावरं. भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंष निकन्दनं, रघुनंद आनंद कंद कोशल चन्द्र दशरथ नंदनम. सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभुशनम, आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम-जित-खर दूषणं. इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि-मन-रंजनं, मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनं. एही भांति गोरी असीस सुनी सिय सहित हिं हरषीं अली, तुलसी भावानिः पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली. जानी गौरी अनूकोल, सिया हिय हिं हरषीं अली, मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे. बोल सीता राम दरबार की जय. बोल सिया वर राम चन्द्र की जय. पवन सुत हनुमान की जय।।