एक छोटी सी चिड़िया थी। उसकी अभी अभी आंखें खुली थी। जब भी उसकी मां दाना लेकर आती वह चोंच खोलती और उसकी मां चोंच में दाना डाल देती। तब उसे सिर्फ अपनी मां दिखाई देती और ऊपर पेड़ की पत्तियों से झांकता नीला आसमान।
एक दिन उसने अपनी मां से पूछा-
" मां ...मां... वह नीला नीला क्या दिखाई दे रहा है ?"
मां बोली, " यह आसमान है बेटा। अभी जब तुम्हारे पंख मजबूत हो जाएंगे फिर मैं तुम्हें आसमान में ले चलूंगी। छोटी चिड़िया बहुत खुश हो गई और वह अपने पंख के बड़े होने का इंतजार करने लगी। अब वह रोज अपनी मां से आसमान के बारे में पूछती थी।
" मां....मां....आसमान हमें क्या क्या देता है?"
" यह में बारिश देता है, धूप देता है, हवा देता है।"
" अच्छा !यानी कि आसमान हमारी सारी ख्वाहिशें पूरी करता है?"
" हां ! और हमें उड़ने के लिए अपने आंचल में खुली हुई जगह देता है ।"
"अरे वाह! फिर तो जब मैं बड़ी हो जाऊंगी तो मैं आसमान से मिलने जरूर जाऊंगी और उसकी भी सारी ख्वाहिशें पूरी करूंगी।" मां ने हंसकर छोटी चिड़िया की बात टाल दी।
आखिर वह दिन आ ही गया जब छोटी चिड़िया के पंख मजबूत हो गए और मां उसे उड़ना सिखाने के लिए घोंसले से बाहर ले गई। घोंसले से बाहर की दुनिया छोटी चिड़ियाँ को बहुत अच्छा लग रहा था।
वह भी अपनी मां की तरह उड़ना चाहती थी। खुले आसमान में पंख फैलाकर ऊंचा.... और ऊंचा..... मगर यह क्या…... जैसे ही उसने अपने पंख फैलाए वह नीचे की ओर गिरने लगी तब उसकी मां ने उसे अपने पंखों का सहारा दिया और रोक लिया।
वह रोने लगी। रोते-रोते बोली, " मां....मां..... देखो आसमान ने तेज हवा चला कर मुझे गिरा दिया।"
" नहीं ...नहीं बेटा, अभी तुम्हारे पंख मजबूत नहीं हुए हैं। तुम्हें अभ्यास की आवश्यकता है। आसमान ने तुम्हें नहीं गिराया।"
छोटी चिड़िया अगले दिन फिर उड़ने का अभ्यास करने गई। आज वह पहले दिन की अपेक्षा थोड़ा ज्यादा उड़ी। उसके अंदर का विश्वास जगा और वह उड़ने लगी।
..... और ऊंचा..... और ऊंचा.... वह आसमान को छू लेना चाहती थी। आसमान की नीले पन में खो जाना चाहती थी। मगर एक दिन मां ने उसे रोका और कहा, तुम ज्यादा मत उड़ो, क्योंकि यह खुला आसमान आजादी लेता है तो कभी-कभी उसकी कीमत भी ले लेता है। आसमान के पास सूरज की तेज रोशनी है तुम्हारे पंखों को जला डालेगा"
"आसमान हमसे क्या कीमत लेगा? वह आसमान तो बहुत अच्छा है। वह तो हमेशा हमें देता है।"
नहीं ....नहीं छोटी चिड़ियाँ, तुम अभी नहीं जानती ....वह बहुत बड़ा है... विशाल है, और तुम नन्ही सी चिड़िया हो उसके खुले आसमान में, हवा के संग ,बारिश का आनंद लो मगर उस आसमान से मिलने की कोशिश ना करो। उस के नीले पन के भूल भुलावे में मत आओ। तुम्हारा अस्तित्व वहां हमेशा के लिए खो जाएगा।"
मगर छोटी चिड़िया हमेशा उस आसमान के नीले पन को ललचाई निगाहों से देखती थी। उसे लगता था कि जिस तरह उसकी ख्वाहिश है आसमान के नीलेपन में खो जाना उसी तरह शायद आसमान की भी ख्वाहिश होगी , छोटी चिड़िया को अपने आगोश में ले लेना......
.... और एक दिन फिर सबसे छुपते छुपाते छोटी चिड़िया उड़ गई.... दूर आकाश में....
और ऊपर..... और ऊपर..... और ऊपर..... और फिर उसे आज तक किसी ने नहीं देखा।
आरती प्रियदर्शिनी, गोरखपुर