अपने अपने फ़लसफ़े
ये कहानी बताती है कि एक दुर्घटना कैसे ना सिर्फ परिवार को बर्बाद करती है बल्कि व्यक्ति का चरित्र हनन भी करती है, और रिश्तों की परिभाषा पर भी हजार सवाल खड़े करती है। लेकिन ये भी सच है कि कोई भी दुर्घटना उसी को कमजोर करती है जो कम्फर्ट ज़ोन से बाहर नही आना चाहते। जिन्हें विलासितापूर्ण जीवन जीने की और दूसरों के ऊपर निर्भर रहने की आदत हो चुकी हो वो व्यक्ति ही मुसीबत के समय अक्सर कमजोर पड़ जाते है और उसे मजबूरी का नाम देते है। इस कहानी मे भी कुछ ऐसे ही चरित्र् है। वो कितने सही है? कितने गलत है? और कितने मजबूर है? ये फैसला आप पाठको को करना है।
तीन चरित्र् और खुद को सही साबित करने के तीनो के अपने अपने फलसफे……
ललित
कुछ महीनों पहले तक सब कुछ कितना अच्छा था। किसी चीज की कमी नहीं थी हमारे घर मे। मां पिताजी ने जीते जी हम दोनों भाइयों में संपत्ति का बंटवारा कर दिया था। उनका मानना था कि लड़ झगड़ कर बटवारा करने से अच्छा है कि यह प्रक्रिया प्रेम पूर्वक हो जाए। मुझे रचित भैया से कभी कोई शिकायत नहीं रही। सिया भाभी के साथ ही मेरा दोस्ताना संबंध है। मेरी पत्नी को भी अपनी जेठानी से कभी कोई शिकायत नहीं। शहर के नामी गिरामी व्यापारियों में हम दोनों भाइयों की गिनती होती थी। हम अपने पुश्तैनी कारोबार को आगे बढ़ाने में पूर्ण रूप से समर्पित थे। मगर इसी बीच एक ऐसी घटना हो गई कि सब कुछ बदल गया।
एक सड़क दुर्घटना में रचित भैया की मृत्यु हो गई। सिया भाभी को भी गंभीर चोट आई थी मगर वह जीवित थी। रचित भैया के बारे में जानकर वह बिल्कुल टूट गई। 10 वर्षीय सौरभ और 8 वर्षीय सुरभि भी हतप्रभ थे। उनके बाल मन ने कभी ऐसी कल्पना नहीं की थी। मैंने और शैली ने तय किया कि भाभी और बच्चों को कुछ दिनों के लिए यहीं बुला लेते हैं। क्योंकि उनको भी को उपचार एवं देखभाल की आवश्यकता थी। मैंने सोचा कि सौरभ और सुरभि को भी सहारा मिल जाएगा।
शैली सहर्ष तैयार हो गई। मैंने सोचा था कि सौरभ और सुरभि को इतना प्यार दूंगा कि उन्हें पिता की कमी ना महसूस हो। सिया भाभी को भी इतनी खुशियां दूंगा कि वह अपने सारे गम भूल जाएंगी।
और यही हुआ। शैली भी अपने संतान होने का दुख बुलाकर बच्चों पर ममता लुटाने लगी थी। मेरी और शैली की मेहनत रंग लाई। सिया भाभी स्वस्थ होने लगी थी। लेकिन एक दिन उन्होंने ऐसी बात कही जो मुझे बिल्कुल भी अच्छा नही लगा।
वह रचित भैया का व्यापार संभालना चाहती थी।
लेकिन मेरे मन में लालच आ गया, इसीलिए मैने कहा, " भाभी आप क्यों परेशान हो रहीं हैं। मै हूं न ये सब करने के लिए। जब तक सौरभ बड़ा नही हो जाता तब तक मै सब देखभाल कर लूंगा।
मेरे मन में लालच ने घर बना लिया था। भैया की दौलत के साथ साथ सिया भाभी के शरीर पर भी मेरी नजर रहने लगी थी। और फिर मैने हर वो हथकंडा अपनाया जिससे एक औरत भावनात्मक रूप से कमजोर पड़ जाए। और वही हुआ जैसा मैने चाहा था। सिया भाभी कटी पतंग की तरह निर्विरोध मेरी बाहों में आ गई। आखिर रचित मेरा सगा भाई था। उसकी हर चीज उसके बाद मेरी ही तो है भले ही उसकी संपत्ति हो या उसकी बीवी बच्चे। मैंने सोच लिया था कि सिर्फ सौरभ के बड़े होने तक ही नहीं बल्कि आजीवन में रचित भैया की सारी संपत्ति की देखभाल करूंगा। मगर इसके लिए मुझे हर कदम सोच-समझकर उठाना होगा। सिया भाभी और सौरभ सुरभि को मेरी इस कारगुजारी का पता नहीं चलना चाहिए। वह जीवन भर हमारे एहसानों के बोझ तले दबे रहे तभी हमारे लिए अच्छा है। मगर ऐसा कैसे हो सकता है?
"हां हो सकता है। अगर हम सौरभ एवं सुरभि को गोद ले लेंगे।"---- शैली ने जब मुझे यह सुझाव दिया तो मैं समझ गया कि उसके ममता रूपी तालाब में भी लालच का जहर घुलने लगा है।
शैली
"हां, माना कि मेरे अंदर लालच पनपने लगी थी। मगर वह लालची मन एक मां का था। मैं मां बनना चाहती थी। सौरभ और सुरभि जैसे बच्चों के धन संपत्ति के प्रति लालच तो मेरे मन में कतई नहीं था। मगर तुम तुम तो बड़े घाघ निकले। तुमने तो सब कुछ पाना चाहा। संपत्ति के साथ साथ सिया भाभी पर भी अपनी लोलुप दृष्टि डालने से बाज नहीं आए। मैं चुप रहती हूं तो यह मत समझो कि मुझे कुछ नहीं पता चलता। सौरभ और सुरभि में मुझे उलझा कर हमदर्दी के नाम पर तुमने सिया भाभी के साथ कितनी ही रातें रंगीन की है। जी चाहता है कि सिया भाभी से भी चीख चीख कर पूछूं कि पति से इतना प्यार करने वाली को अचानक से अपने देवर में ऐसा क्या दिखा कि वह सब कुछ भूल कर समर्पित हो गई। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि वह ललित को अपना सहारा बनाकर आजीवन ऐशो आराम से रहना चाहती है। मैं तो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती। क्योंकि किसी भी प्रकार का विरोध करने से ललित तो सुधरने वाला है नहीं और अगर सिया भाभी यह घर मेरी वजह से छोड़ कर चली गई तो या किसी और से शादी कर लिया तो उनके साथ साथ ही सारी संपत्ति से भी हाथ धोना पड़ जाएगा। ऐसे में बौखलाया हुआ ललित मुझे तलाक देने में एक पल भी नहीं लगाएगा। वैसे भी 7 वर्ष हो गए शादी को और मैं मां नहीं बन सकी। मुझ बांझ को छोड़ने में तो कानून भी उनकी मदद करेगा। अच्छा तो यही होगा कि मैं चुपचाप सब कुछ भगवान पर छोड़ दूं और उन दोनों के अवैध संबंधों की तरफ से आंखें बंद कर लूं। आज कम से कम ललित नाम की छत तो मेरे सर पर है। यहां से जाने के बाद तो मेरे मध्यमवर्गीय भाई भाभी मुझे कभी नहीं अपनाएंगे। पति पत्नी के रिश्ते के बीच में सिया भाभी नाम का यह जहर मुझे शायद जीवन भर पीना ही पड़ेगा। इसके सिवा कोई और चारा नहीं है मेरे पास। मैंने तो सोच लिया है कि सौरभ और सुरभि को ही मैं इतना प्यार दूंगी कि वह अपनी सगी मां से ज्यादा मुझे प्यार करेंगे। वैसे भी बड़े घरानों में इस प्रकार के अवैध संबंध कोई नई बात नहीं है। मर्द सिर्फ अपनी पत्नी से संतुष्ट कहां होते हैं।
सिया
कुछ ही महीनों में मेरी जिंदगी में कितने मोड़ आ गए। रचित का जाना ही मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी दुर्घटना है। वह तो भला हो ललित और शैली का जिसने सब कुछ संभाल लिया। ललित ने कारोबार और शैली ने बच्चे। ललित ने तो मेरी देह को भी संभाल लिया है। और मैं क्या करूं मेरे पास कोई दूसरा चारा भी तो नहीं है। कम उम्र में ही शादी हो गई और फिर बच्चे….. मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी भी तो नहीं हूं कि रचित का कारोबार संभाल सकूं। रचित के जीते जी मैंने कभी कारोबार को समझने की कोशिश भी नहीं की। विलासिता पूर्ण जीवन शैली की आदत हो चुकी है पिछले 12 वर्षों से। अब सामान्य जीवन बिताना इतना आसान कहां है। बच्चों को भी पढ़ा लिखा कर उनका भविष्य बनाना है। समाज में एक विधवा की क्या स्थिति है यह मैं अच्छी तरह जानती हूं। घर से बाहर कदम रखते ही भूखे भेड़िए टूट पड़ते हैं और अगर विधवा पैसे वाली हो तो फिर इन भेड़ियों की भूख और भी बढ़ जाती है। मै जानती हूं कि ललित ने भी तो मेरा इस्तेमाल ही किया है। हमारी देखभाल के एवज में उसने मेरी देह से खेला है। बाहर भेड़िए हैं तो घर में भी शिकारी कुत्ते की नजर है। बाहर के भेड़ियों से तो घर के कुत्ते हैं। कम से कम वह वफादारी तो निभाएंगे।
शैली मेरे बारे में पता नहीं क्या सोचती होगी क्या सचमुच उसे मेरे और ललित के रिश्ते के बारे में कुछ नहीं पता? मगर ऐसा कैसे हो सकता है? क्या वह नहीं देखती की ललित जितनी देर घर में रहता है किसी ना किसी बहाने से वह मेरे कमरे में आता जाता रहता है। रात को भी जब वह सौरभ और सुरभि के कमरे में होती है तब ललित मुझे दवा खिलाने के बहाने से आधी रात तक मेरे कमरे में ही रहते हैं। यह सब कुछ भला एक पत्नी की नजर से कैसे छूट सकता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि ललित और शैली दोनों मिलकर मेरी जायदाद एवं बच्चों को हड़पने की चाल चल रहे हो? आजकल बच्चे भी मुझसे ज्यादा शैली के पास ही रह रहे हैं। ललित ने भी दोनों बच्चों को गोद लेने की बात उठाई थी। कहीं ऐसा ना हो कि मेरे दोनों बच्चों को गोद लेकर वे मेरी संपत्ति हड़प लें और मुझे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेकें। मगर मैं ऐसा हरगिज़ नहीं होने दूंगी। अगर ललित ने मेरे बच्चों को गोद लेना चाहा तो उसे कानूनन मुझे अपनाना ही होगा। इसके लिए भले ही उसे शैली को तलाक क्यों ना देना पड़े, मगर मैं खुद का मुफ्त में इस्तेमाल नहीं होने दूंगी।
समाप्त
नोट:-- मेरी हर कहानी की तरह इस कहानी का भी कोई सुखांत या दुखांत नही है। पाठकगण ऐसे चरित्र नित्यप्रति अपने आस पास जरूर देखते होंगे। इसिलिय आप स्वयं ऐसी कहानी का भविष्य सोच सकते हैं क्योकि ऐसी कहानियों का अंत तो होता ही नहीं…..