तुम्हारी बातें
सुनती हूं तुम्हारी मै सारी बातें
सपनों सी सच्ची और प्यारी बातें
होठोँ तक आ आ के रुक जाती हैं
कैसे कह दूं मै वो सारी बातें
मेरी तस्वीरों को तुमनें छूआ था न
और जो दिया था तुमने मुझे
सुकून भरे लमहें....कुछ एहसास की बातें
और भी सुना था मैने
जिदंगी के फलसफे और सावन के बारिश की बातें
होठोँ तक आ आ के रुक जाती हैं
कैसे कह दूं मै वो सारी बातें
तुम्हारी याद मे बीती जो कुछ रातें
और गले लगाने वाली वो सारी गीतें
मंदिर बन गया है मन....सुनने लगी हूं जबसे मै तुम्हारी बाते
शिलाखंड सा अतीत मेरा था बर्फ की मानिंद
पिघलने लगा है शायद...अब
सुनकर तुम्हारी बातें ....
ना ...ना.. इश्क ना समझना इसे तू
ना समझना कोई जरूरी बातें
बस आँसुओं के कुछ मोती
जिन्हें शब्दों मे पिरो दिया था....
माला बन गई है आज वो सु नकर तुम्हारी बातें
✍ आरती प्रियदर्शिनी