बस इतना ही संग था....
कनाडा की रहने वाली सेल्विया घूमने की बहुत शौकीन थी। जगह-जगह की सभ्यता संस्कृति के बारे में जानने की उसकी विशेष इच्छा होती थी। जनवरी के महीने में जब वह नेपाल यात्रा पर थी तो उसके गाइड ने उसे भारत के गोरखनाथ मंदिर में मकर संक्रांति के अवसर पर लगने वाले खिचड़ी मेला के बारे में बताया। 1 महीने तक चलने वाले इस मेले और गोरखनाथ मंदिर की महिमा सुनकर वह गोरखपुर आ गई। यहां मंदिर की सुंदरता एवं मेले की चमक दमक ने उसका मन मोह लिया। इसी मेले में उसकी मुलाकात रौनक से हुई। रौनक गोरखपुर के एक प्रसिद्ध सर्राफ का बेटा था उसने भी मेले में गोल्ड प्लेटेड ज्वेलरी की दुकान लगा रखी थी। उसने पिछले साल ही MBA किया था और अब वह अपने पुश्तैनी काम को आगे बढ़ा रहा था।
सेल्विया जब उसके दुकान पर आकर तरह-तरह के जेवरों के साथ सेल्फी लेती थी तो वह उसकी मनमोहक अदाओं को देखता ही रह जाता था। रौनक भी खूबसूरत एवं आकर्षक शरीर सौष्ठव का मालिक था साथ ही फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने के कारण उसने सेल्विया से जल्द ही अच्छी दोस्ती कर ली। सेल्विया भी घंटो दुकान में बैठी रौनक की लच्छेदार बातों को सुनती रहती । मेले की समाप्ति तक दोनों एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जान चुके थे। और यह भी जान चुके थे कि वे एक दूसरे के बगैर नहीं रह सकते । रौनक ने जब सेल्विया को शादी के लिए प्रपोज किया तो सेल्विया इनकार नहीं कर सकी। उसने कनाडा स्थित अपने माता-पिता को भी सूचना दे दी । उन्होंने तो थोड़ी ना- नुकर के बाद हामी भर दी , रौनक का संस्कारी एवं परंपरावादी परिवार सेल्विया को बहू बनाने के लिए कतई तैयार नहीं था, लेकिन इकलौते बेटे के विधर्मी हो जाने के डर से उन्होंने भी इस रिश्ते के लिए हामी भर दी।
3 महीने बाद ही दोनों परिवारों की उपस्थिति में हिंदू रीति रिवाज से सेल्विया रौनक की दुल्हन बन गई। शादी के बाद हनीमून मनाने दोनों कनाडा गए। वहां जाकर रौनक को एहसास हुआ कि सेल्विया और उसके भारतीय परिवार के बीच कितनी असमानताएं हैं। ना सिर्फ रहन-सहन बल्कि दोनों परिवारों की विचारधाराएं भी जमीन आसमान की तरह अलग अलग थी।
फिर भी सेल्विया ने रौनक के परिवार की परंपरा एवं रीति रिवाजों को दिल से अपनाया था। वह रौनक से भी बेइंतहा मोहब्बत करती थी। मगर घरवालों के व्यवहार से कभी कभी वह बहुत आहत हो जाया करती थी। घर के नियमों के अनुसार वह चारदीवारी में बंधने को तो तैयार थी परंतु विचारों की परतंत्रता उसे स्वीकार नहीं हो पा रही थी। रौनक के परिवार वाले अक्सर उसके धर्म एवं देश के बारे में उल जलूल बातें करते रहते थे। स्थानीय भाषा में दिए गए उनके तानों को वह अक्षरशः तो नहीं समझ पाती थी परंतु उनके हाव भाव से कथन का औचित्य भली-भांति समझ लेती थी। इसी बीच वह एक खूबसूरत सी बेटी की मां बन गई। फिर तो परिवार वालों की प्रताड़ना और भी बढ़ने लगे। रौनक की माँ अब उसकी बेटी निकिता को अक्सर उससे दूर रखने का प्रयास करती थी। और कहती थी कि वह निकिता को सेल्विया के तौर-तरीके नहीं सीखने देंगी। कोमल स्वभाव की सेल्विया प्रतिरोध ना कर पाने के कारण अंदर ही अंदर अवसादग्रस्त होती जा रही थी। उसने अपनी परेशानी रौनक को बतलाते हुए अलग रहने की गुहार की तो रौनक ने सिरे से नकार दिया। कारण स्पष्ट था ; परिवार से अलग उसकी कोई पहचान नहीं थी और पुश्तैनी कार्य के अलावा और कोई काम वह करना नहीं चाहता था। इसलिए वह भी परिवार वालों के साथ एडजस्ट करने के लिए सेल्विया पर ही दबाव डालने लगा।
शादी के 2 साल बीत चुके थे परंतु परिस्थितियां संभलने के बजाए और भी बिगड़ती जा रही थी और वही हुआ जिसकी उम्मीद रौनक एवं उसके परिवार वालों को शायद नहीं थी। एक दिन अचानक ही सेल्विया बिना किसी को बताए घर छोड़ कर चली गई और पीछे छोड़ गई अपनी बेटी निकिता , रौनक का अकेलापन और आँसूओं के शब्दों से लिखा एक पत्र जिसमें उसने अपने दिल की घुटन एवं रौनक के परिवार वालों के साथ एडजस्ट ना कर पाने की असमर्थता जाहिर की थी। साथ ही यह भी लिखा था कि
---" कभी मेरे प्रति अपने प्यार को महसूस करना तो कनाडा आ जाना । मैं तुम्हारा और हमारी बेटी का हमेशा इंतजार करूंगी...."।
आरती प्रियदर्शिनी , गोरखपुर