"....यह कैसे कह दिया तुमने कि रूकने का कोई मतलब नहीं होता...?
रुकने का मतलब होता है डियर.... और बहुत ही गहरा मतलब होता है। यह मुझसे पूछो.... क्योंकि मैं भी तो रुकी थी ना पांच साल.... सिर्फ तुम्हारे कहने पर..... क्योंकि तुम नहीं रुक सकते थे, मर्द हो ना !! तुम्हारा अहम् भी तो आड़े आ जाता...
रुकने का मतलब होता है.... बहुत कुछ खोना और बहुत कुछ पाना....
मैंने भी खोया बहुत कुछ, और पाया भी ।
मैंने खो दिया अपना आत्मविश्वास.... अपनी ₹70000 / month वाली सैलरी.... अपना अस्तित्व... अपनी पहचान... सब कुछ खोया मैंने, और.....और तुम्हें भी तो खो दिया मैंने।
और पाया मातृत्व का सुख....
अपने बेटे की परवरिश का सुख ....
उसे बड़ा होते हुए पल-पल देखा मैंने....
उसकी हंसी किलकारी सबकुछ तो महसूस किया मैंने ....
उसका सोते सोते पलट जाना....
फिर घुटनों के बल चलना....
और दांत निकलने का दर्द भी सहा मैंने....
उसके मुंह से आती है मेरे दूध की खुशबू ....
और तेल पाउडर से सने उसके कपड़ों की खुशबू....
सिर्फ मैं ही आनंद उठा सकती थी उन सब का...
उंगली पकड़कर चली मैं उसके साथ....
अपने बचपन को भी जिया मैंने उसके साथ....
अपने उस नन्हे से फरिश्ते के साथ .....
वह फरिश्ता ही तो था मेरे लिए...
जिसने मुझे जीना सिखाया...
वरना मैं तो सिर्फ मशीन बनी हुई थी.....
पैसा कमाने की मशीन....ना जाने कब से
पांच वर्ष तक मैं रूकी रही, अपने बेटे के लिए...
और उस रुकने का एक मतलब था ,
एक परीक्षा थी मेरे धैर्य का ...... जिसमें मै अव्वल रही।
तुम मां होते, तो समझते ना ....
तुम तो अच्छे पिता भी नहीं बन पाए, और ना ही मेरे पति...
पर अब मेरे रुकने का मकसद पूरा हुआ....
आज मैं फिर निकल पड़ी हूं ,अपने सफर पर ...
मुझे वह आत्मविश्वास फिर से पाना है। स्वाबलंबी बनना है मुझे... और तुम्हें भी तो सही रास्ता दिखलाना है न....
तुम क्या सोचते थे, क्या मुझे पता नहीं चलेगा कि एक पॉश कॉलोनी में फ्लैट लेकर तुमने अपनी गर्लफ्रेंड को रखा है....
मैं उस समय रुकी थी.... अपनी भावनाओं को दबा कर रखा था मैने,
रोक कर रखा अपने गुस्से को ताकि मैं खुशी-खुशी अपने बच्चे की परवरिश कर सकूं ।
मगर अब नहीं.... अब नहीं रुकना है मुझे,
अब मैं ने कमर कस लिया है....
अब तैयार हूं मैं चलने के लिए....
क्योंकि अब और रुकने का कोई मतलब नहीं....
आरती प्रियदर्शिनी ,गोरखपुर