स्कूली प्रार्थना का महत्व
स्कूलों में होने वाली प्रार्थना का महत्व हमें तब समझ में आता है जब हम अधेड़ावस्था में पहुंचते हैं और जिम्मेदारियों के बोझ तले अपने बचपन के दिनों को याद कर सुकून के कुछ पलों को महसूस करना चाहते हैं। उसी वक्त हमें यह एहसास होता है कि हमारे जीवन में स्कूली शिक्षा एवं प्रार्थना विशेष स्थान रखती है। महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में होने वाली प्रार्थना -----
"वैष्णव जन तेते कहिए , पीर पराई जाने रे ....." आज भी हमारे तन मन को भिगोकर इश्वरीय आवरण में समाहित कर देती है। महात्मा गांधी प्रातः कालीन प्रार्थना को ही अपनी सर्वश्रेष्ठ शक्ति मानते थे । वैज्ञानिक एवं मनोविश्लेषक भी यह मानते हैं कि प्रार्थना हमें तनाव से दूर करता है तथा यह मानसिक ऊर्जा का सबसे सशक्त रूप है।
यूं तो हर व्यक्ति अपने जीवन काल में प्रतिदिन सैकड़ों बार ईश्वर से प्रार्थना करता हीं है , परंतु स्कूली प्रार्थना कई मायनों में खास होती है। स्कूलों में होने वाली प्रार्थना सभा में सभी वर्ग के छात्र छात्राएं उपस्थित होते हैं । इससे उन में जाति धर्म और अमीरी गरीबी जैसी भावनाओं से परे एकता एवं सद्भावना का भी विकास होता है। साथ साथ हैं सामाजिकता , सामुदायिकता ,अनुशासन जैसी भावनाएं भी इंसान ही यहीं सीखता है। कई स्कूलों में तो प्रार्थना सभा में ही बच्चों के विचार एवं परेशानियां सुनी जाती हैं। तथा शिक्षकों द्वारा उनका निदान भी किया जाता है। इस से बच्चों में आत्मविश्वास आता है मंच पर बोलने की कला विकसित होती है। यहां यह कहना उचित होगा कि, प्रार्थना सभा के माध्यम से छात्रों को कुछ देर के लिए पुस्तकीय ज्ञान को छोड़कर व्यक्तित्व विकास पर ध्यान दिया जाता है।
स्कूली जीवन से निकलने के बाद हम कदम कदम पर झूठ, बेईमानी एवं भ्रष्टाचार से रूबरू होते हैं, जिससे हर पल हमारा व्यक्तित्व प्रभावित होता रहता है। जिस प्रकार जल तथा अग्नि का उचित प्रयोग जीवन देता है तथा अनुचित प्रयोग जीवन ले सकता है उसी प्रकार स्कूली जीवन में भी मिलने वाली शिक्षा का प्रयोग यदि हम उचित एवं अनुचित का ध्यान रखते हुए करें तो हमारा जीवन सुचारु रुप से चल सकता है।
कुछ दिनों पहले वोट बैंक की राजनीति से धार्मिक उन्माद फैलाने वाले कुछ लोगों ने स्कूली प्रार्थनाओं को बंद कराने का भी प्रयास किया था। सुप्रीम कोर्ट में एक पिटीशन भी दायर किया गया था जिसमें कहां गया था कि केंद्रीय विद्यालयों में होने वाली प्रार्थना हिंदुत्व , अंधविश्वास एवं अकर्मण्यता को बढ़ावा देती है, अतः इन स्कूलों में होने वाली प्रार्थना को बंद कर देना चाहिए क्योंकि यह स्कूल सरकार की ओर से चलाए जाते हैं। जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस नवीन सिन्हा की बेंच ने सरकार को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा था। जबकि सच्चाई यह है कि ज्यादातर प्रार्थनाओं में तो माता पिता का आदर करना , गुरुजनों का सम्मान , सब की खुशी मांगना ही मुख्य होता है। इसके अतिरिक्त सेवा , धैर्य , कर्मठता , जीवों पर दया करना , स्वयं पर विश्वास करना , महापुरुषों के पदचिन्हों पर चलना इत्यादि भी प्रार्थना के शब्दों में समाहित होता है। रही बात अंधविश्वास फैलाने की तो इसके लिए स्कूली प्रार्थनाओं को दोष देना सर्वथा गलत है। एक व्यक्ति अपनी जिंदगी के 10- 12 वर्ष तक स्कूल में व्यतीत करता है। 365 दिन में से लगभग 150- 200 दिन स्कूल जाता है, और उसके भी 5- 6 घंटे के स्कूल पीरियड में 30- 35 मिनट प्रार्थना सभा में व्यतीत करता है। तो क्या है यह कुछ घंटे दोषी हैं उसके अंधविश्वासी अस्तित्व के लिए? क्या स्कूल इस प्रार्थनाओं को बंद कर देने मात्र से अंधविश्वास समाप्त हो जाएगा?
जिस प्रकार एक अभिभावक के अभाव में परिवार अनुशासनहीन हो जाता है राजा के अभाव में राज्य सुचारु रुप से नहीं चल पाता इसीलिए संभवत है सृष्टि को भी सुचारु रुप से चलाने के लिए ईश्वर की परिकल्पना की गई होगी मगर कुछ सत्तालोलुप लोगों ने भगवान एवं धर्म का डर समाज में फैला कर अंधविश्वास को बढ़ावा दिया है। प्रार्थना , तपस्या एवं साधना का मुख्य अर्थ होता है किसी भी कार्य को संपन्न करने के लिए दृढ़ निश्चयी एवं एकाग्रचित होकर किया गया प्रयास। सिर्फ भगवान का नाम लेकर बैठे रहना एवं सदैव अर्थ प्राप्ति की कामना तपस्या नहीं अकर्मण्यता है। यदि कोई स्त्री अपने बीमार पति की सेवा सुश्रुषा करके उसे मृत्यु के मुख से निकाल आती है तो यह तपस्या है। एक अच्छी नौकरी पाने के लिए 5 वर्षों से 20 वर्षों तक की गई पढ़ाई का अर्थ साधना है। कालिदास के मूर्ख से विद्वान बनने के लिए किया गया उनका प्रयास साधना है। यह प्रेरणा देता हैं कि आत्मविश्वास और परिश्रम के बल पर एक मूर्ख भी विद्वान बन सकता है।
शोध के द्वारा भी यह सच सामने आया है कि प्रार्थना मनुष्य और ईश्वर के बीच संवाद का माध्यम है, अतः यह मनुष्य के मन का अकेलापन एवं नकारात्मकता को दूर करता है। साथ ही ऊर्जा, मनोबल एवं सकारात्मकता को बढ़ावा देता है ।अतः हमें सदैव प्रार्थना करना चाहिए। शांत चित्त होकर अपनी अंतरात्मा में उतर कर संपूर्ण सृष्टि के उत्थान के लिए सदैव प्रार्थना करें। क्योंकि प्रार्थना है हमें यह एहसास दिलाती है कि जीवन के किसी भी मोड़ पर हम अकेले नहीं हैं। कहीं कोई है जो हमें और संपूर्ण चराचर को संचालित कर रहा है।
आरती प्रियदर्शिनी , गोरखपुर