एकबार कलाम के विज्ञान के शिक्षक ने उन्हें अपने घर खाने पर बुलाया । इस बात से उन शिक्षक की पत्नी परेशान हो उठीं कि उनकी पवित्र रसोई में एक मुसलमान युवक को भोजन पर आमंत्रित किया गया है । उन्होंने कलाम को अपनी रसोई के भीतर खाना खिलाने से इंकार कर दिया । इस बात पर कलाम के शिक्षक विचलित और क्रोधित नहीं हुए , उन्होंने खुद अपने हाथों से खाना परोसा और कलाम के पास ही बैठकर खाने लगे । जब कलाम खाना खाकर लौटने लगे तो शिक्षक ने फिर से अगले सप्ताह खाने पर आने का न्यौता दिया । कलाम की हिचकिचाहट को देखकर वे बोले ' परेशान होने की जरूरत नहीं है , एकबार जब तुम व्यवस्था बदल डालने का फैसला कर लेते हो तो ऐसी समस्याएँ सामने आती ही हैं । ' अगले सप्ताह जब कलाम उन शिक्षक के यहाँ रात्रिभोज पर गए तो शिक्षक की पत्नी ही उन्हें रसोई में ले गईं और खुद अपने हाथों से खाना परोसा ।