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प्रवित्ति ( कहानी प्रथम क़िश्त)

26 फरवरी 2022

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*प्रवित्ती*     ( कहानी--प्रथम क़िश्त )

मनोहर देशमुख एक मंझोला किसान था । उनके पिता ने अपनी मेहनत से लगभग 15 एकड़ जमीन अर्जित की थी । मनोहर अपने परिवार का तीसरा सुपुत्र था । उसके दो बड़े भाईयों का नाम नोहर और गजो धर था । अभी वे सभी एक संयुक्त परिवार के तौर से रहते थे । बड़ा भाई नोहर 35 वर्ष का था और मंझले की उम्र 33 वर्ष थी । मनोहर खुद 30 साल का हो गया था । उसने कुल जमा आठवीं तक पढ़ाई की थी । उसके बाद भाईयों के साथ खेती करने में जुट गया था । स्वभाव से मनोहर बड़ा संकोची था लेकिन वो बजरंगबली का बड़ा भक्त था । शरीर से बेहद पुष्ट । मंगलवार और शनिवार को बिना नागा वह हनुमान जी के मंदिर जाता था व दिन भर उपवास भी रखता था । उसने अपनी माता व भाइयों से कह दिया था कि वह विवाह नहीं करेगा । मनोहर की भाभियाँ मनोहर का बेहद ख्याल रखती थी । उसके खाने पीने से लेकर सोने तक । कुल मिलाकर ग्राम देवकर का यह देशमुख परिवार बेहद खुशहाल था । तीनो भाई बेहद मेहनती थे और आपस में बेहद प्यार करते थे । किसी एक को तकलीफ हुई तो बाकी दोनो उसके साथ साये की तरह खड़े हो जाते थे । उनके खेत का बड़ा हिस्सा सोरही नदी के किनारों से लगा था और खेत के उस पार एक छोटा सा जंगल था । जहाँ से मनोहर सप्ताह- प्रति सप्ताह लकड़ियाँ काटकर लाया करता था । कद काठी से बुलंद मनोहर बेहद निडर था । संकट के समय हौसला न खोना व विवेक से काम लेना उसे बड़े अच्छे से आता था।
मनोहर वैसे तो बेहद हिम्मती था पर सौंपों से उसे बेहद डर लगता था । हल्की सी भी कहीं सरसराहट हुई तो वो वहाँ से हट जाता था या फिर किसी पेड़ पर चढ़ जाता था । और जब तक सरसराहट की आवाज खत्म नहीं हो जाती वो पेड़ से उतरने की जहमत नहीं उठाता था । 
दो साल पहले की बात होगी । सुबह 6 बजे से ही मनोहर खेत में काम करने चला गया था । साथ में उसकी बड़ी भाभी ने एक पोटली भी दे दी थी जिसमें कुछ रोटियाँ , अचार और थोड़ा सा दूध था । बाधो  का महीना था। काम करते - करते हल्की - हल्की बारिश होने लगी । मनोहर अपने काम में इतना मस्त था कि बारिश से उसे कोई फर्क पड़ता नज़र नहीं आ रहा था । बारिश की फुहारें धीरे धीरे तेज होती गई पर मनोहर अपने काम में मसरूफ रहा । शाम छः बज चुके थे । मनोहर अभी तक घर नहीं आया था । उसके दोनों भाईयों को चिन्ता होने लगी कि इतनी देरी तो वह कभी नहीं करता आखिर माजरा क्या है ? वे दोनो मनोहर का हाल पता जानने खेत की ओर निकल पड़े । बस्ती से लगभग एक फर्लांग आगे जाने के बाद उन्होंने देखा कि सोरही नदी में बाढ़ आ गयी है और नदी अपना किनारा छोड़कर दूर - दूर तक फैल गयी है । साथ ही नदी की धार इतनी तेज थी कि उसे पार कर उस तरफ जाना बेवकूफी के सिवाय कुछ नहीं था । वहाँ पर गाँव वालों का जमघट लगा था । उनके बीच गाँव का सरपंच भी था जो सबको यह बताते हुवे ताकीद कर रहा था कि इस नदी ने आज कम से कम दो आदमियों की और दस जानवरों को बहा कर ले गई है । नदी से दूर रहने में ही हम सबकी भलाई है । नोहर और गजोधर समझ गये कि उनका भाई मनोहर बाढ़ के कारण नदी के उस पार ही फंस गया है । कोई अनहोनी की आशंका उन्हें कम थी क्योंकि वे जानते थे कि मनोहर एक अच्छा तैराक भी था ।
 उधर जिला मुख्यालय से बचाव दल भी आ गया । जिनके पास एक मोटरबोट , रस्सियों का बंडल और बहुत सारी चीजे थी । आने के बाद बचाव दल के जाबाजों ने कम से कम 6 लोगों की जान बचायी थी । शाम होते होते जब अंधेरा थोड़ा गहरा होने लगा तो दल ने न चाहते हुए भी काम रोक दिया । नदी का पानी धीरे धीरे बस्ती के बहुत नजदीक पहुँच चुका था । शायद बाढ़ की ऐसी विभीषिका देवकर वालों ने इससे पूर्व कभी नहीं देखी थी  । सबने सोच लिया था  कि बाढ़ का पानी अगर और बढ़ा तो हम सबको गाँव के मालगुजार शंभू गुप्ता के पक्के मकान की दूसरी मंज़िल में जाकर रहना होगा ।
 उधर शाम होते तक मनोहर को किसी खतरे का आभास नहीं हुआ पर जाने की जैसे ही वो तैयारी करने लगा उसे आभास हुआ कि पानी का स्तर उसके कमर तक आ पहुँचा है । नज़र उठाकर उसने देखा तो चारों तरफ सिर्फ़ पानी ही पानी दिखा । किसी इंसान और जानवर का कहीं नामो निशान नहीं था । वो पानी के इस समंदर में अकेला ही खड़ा था । उसे लग गया कि वो बाढ़ में फंस चुका है । अब यहां से कहीं जाना मतलब जान का खतरा उठाना होगा । हिम्मती तो वो था ही उसने बिना घबराये फैसला कर लिया कि अब किसी पेड़ पर चढ़कर तब तक रहा जाय जब तक कि पानी उतर न जाय । उसने अपनी पोटली को देखा जो बिल्कुल सही सलामत थी।

(  क्रमश: )
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