(प्रवित्ति ) कहानी 2री क़िश्त *
पोटली सही सलामत उसके गले पर स्थित पट्टे के सहारे लटकी थी । तुरंत ही वो अपने ही खेत के मेढ़ पर मौजूद आम के पेड़ पर चढ़ गया और पेड़ की सबसे ऊपर की डाली में जाकर चुपचाप बैठ गया । मनोहर जानता था अब दो या तीन दिन इसी पेड़ की पनाह में रहना है । बैठे - बैठे ही उसने पोटली खोली तो उसे ये देखकर संतोष हुआ कि उसमें चार रोटियाँ , थोड़ा सा अचार और एक छोटे से डब्बे में थोड़ा सा दूध भी रखा है । उसे भूख तो बेहद लग रही थी । परिस्थिति को समझकर उसने कम से कम खाने का फैसला किया ताकि ये संकट कुछ लम्बा खींचा तो शरीर को गतिमान रखने खाद्य पदार्थ भी लम्बे समय तक साथ रहेगा । एक रोटी उठाकर धीरे - धीरे अचार के साथ वो खाने लगा और अंत में प्यास बुझाने चार चम्मच दूध पी गया । उसके बाद दो डालियों के बीच लेटने का या यूँ कहों पैर लम्बा करने का तरीका भी ढूँढ़ लिया । फिर आँख मूँदकर वो घर के बारे में सोचने लगा कि वहाँ का क्या हाल होगा ? क्या वहाँ भी बाढ़ का खतरा ऐसा ही होगा ? क्या मेरे घरवाले सब सुरक्षित है या नहीं ? सोचते सोचते वो कब नींद के आगोश में चला गया उसे पता ही नहीं चला । वो अचानक हड़बड़ा कर उठ गया । उसे सोते सोते ही अपने कानों में सरसराहट की आवाज़ सुनाई दी । अंधेरा घना था । कुछ देर तो उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया । अपने नैसर्गिक ज्ञान से उसे आभास हुआ कि पहट के चार बज चुके हैं । अब जागने का फैसला कर वो आँखे खोले लेटा रहा । सरसराहट की आवाज़ अब आनी बंद हो गई थी । जैसे - तैसे दो घंटे बीते । भोर की हल्की हल्की रौशनी फैलने लगी थी , हालाँकि सूर्य देव अब भी बादलों के ओट में छिपा बैठा था । कुछ देर में उसकी आँखें देखने को अभ्यस्त हुई तो देखता है । उससे बस दो फीट की दूरी पर एक सर्प फन उठाये बैठा है देखते ही वो पहचान गया वो एक ज़हरीला नाग साँप था । अब उसकी स्थिति बेहद अजीब थी । हिलना डुलना भी मुनासिब नहीं था ।
पेड़ से उतरना भी मौत को दावत देना था । बिल्कुल शांत मन से वह हनुमान चालीसा का पाठ करने लगा । उधर साँप भी बिना हिले - डुले शांत भाव से बैठा रहा । सांप खुद भी डरा - डरा सा लग रहा था । संभवतः बाढ़ की ऐसी विभीषिका उसने कभी देखा नहीं था । अचानक मनोहर को ऐसा लगा मानो साँप उससे कुछ कहना चाह रहा हो । मनोहर के कानों में ये आवाज गूंजी कि तुम्हारा नाम क्या है ?
मनोहर- मेरा नाम मनोहर है । मैं ग्राम देवकर में रहता हूँ । तुम कौन हो ?
नाग - मेरा नाम तक्षत है । यहाँ से दो कोस दूर ग्राम राखी के खेतों में मेरा मुकाम है । मनोहर- तुम यहाँ कैसे पहुँच गये ? तक्षत मैं भोजन की तलाश में गाँव से थोड़ा बाहर निकला था कि एक ज़बरदस्त पानी का रेला आया और मैंने पाया चारों तरफ केवल पानी ही पानी है । फिर किस तरह यहाँ पहुॅचा मुझे खुद भी मालूम नहीं ।
मनोहर- तुम तो पानी में रह भी सकते हो और तैर भी सकते हो फिर क्यूँ पेड़ के सहारे अपना वक़्त जाया कर रहे हो । अपने वतन की ओर प्रस्थान क्यूँ नहीं करते ? तुम्हारे घर वाले तुम्हारे लिये चिंतित होंगे ।
तक्षत- हमें पानी में जिन्दा रहने का आशीर्वाद तो ऊपर वाले ने दिया है पर पानी के इस बहाव में अपने मन माफिक तैरने का वरदान हमें नहीं मिला है । बेवजह की गर कोशिश करूँगा तो अपने वतन पहुँचने की जगह में धमधा या दुर्ग पहुँच जाऊँगा और उन स्थानों पर मेरे दुश्मनों का राज है ।
मनोहर- मुझे भूख लग रही है । मेरे पास रोटियाँ है । उनमें से एक रोटी खाकर अपना क्षुधा शान्त करने जा रहा हूँ । मेरे पास दूध भी है । तुम्हें भी भूख लगी होगी पी लो । तक्षत बड़ी मेहरबानी होगी । मनोहर ने पेड़ के चार पत्तों से एक कटोरा सा बनाया और उसमें थोड़ा सा दूध डालकर तक्षत के आगे रख दिया । तक्षत दो मिनट में ही सारा दूध पा गया । उसे भी शायद बेहद भूख लगी । फिर मित्रता भाव से मनोहर को देखते - देखते सो गया । कुछ देर बाद मनोहर भी नींद की गोद में समा गया । लगभग चार घंटों बाद दोनों की आँखें खुली । थोड़ी धूप निकल आई थी और उजाला भी थोड़ा बढ़ गया था । इतने में उन्हें दो चिड़ियों की लड़ने -झगड़ने की आवाजें सुनाई दी । उनमें से एक चिड़िया दूसरे से कह रही थी कि मैंने तुमसे कहा था कि इतनी दूर नहीं जाना चाहिए पर तुम्हारे ज़िद के कारण जबरन यहाँ आना । पड़ा । अब हम समस्या से घिर चुके हैं । इतनी तेज बारिश हो रही है कि दस फुट आगे का रास्ता भी नज़र नहीं आता और उड़ने में इतनी ताकत लग रही है कि हर पाँच मिनट बाद हमें आराम करना पड़ रहा है । ऐसे में हम घर वापस कब तक और कैसे पहुँचेंगे ? उपर बच्चे परेशान होकर रो रहे होंगे । उन्हें भूख भी लगी होंगी । दूसरा चिड़िया जो उसका पति था चुपचाप पहली चिड़िया की डॉट सुन रहा था । उसे कोई जवाब देते नहीं बना । मौन रहकर उसने मानो अपनी गलती को स्वीकृति दे दी । इसी बीच मनोहर से रहा नहीं गया उसने दोनो से पूछा हे , तुम लोग कौन हो ?
( क्रमशः)