प्रेम शब्द सुनकर या पढ़कर अलग ही अहसास होता है
प्रेम शब्द जितना सरल होता है है, उतना ही कठिन होता है उसे निभाना।
प्यार का अर्थ समझना मतलब समुद्र तल पर पहुँचना।
प्यार के बारे में ज्यादा तो नही पता
लेकिन...
इतना जरूर जानती है हुं कि
जब मां ने पहली बार अपने सीने से लगाया,
वो अहसास प्यार ही था,
बाबा ने पहली बार उंगली थामी थी,
वो स्पर्श प्यार ही तो था।
भाई-बहन के साथ वो छोटी-मोटी लड़ाई ,
वो प्यारी सी नोकझोंक भी तो प्यार ही थी।
बुढ़ी अम्मा की वो मुस्कान जो हाथ थाम के रास्ता पार कराते समय आयी,
वो आंखो की चमक भी तो प्यार ही थी।
नन्हा सा पिल्ला, जिसे बड़े प्यार से बिस्किट खिलाया,
वो उसका सिर सहलाना प्यार ही तो था।
प्यार के ऐसे ही बहुत से उदाहरण हैं।
सच ही कहा है-
"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय"
"बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके. कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी हैं"
प्यार होना/करना कोई भावना नही बल्कि एक खुबसुरत अहसास है।
प्रेम पर न जाने कितनी कविता, ग़ज़ल कहानियां बनी है,
मगर सच तो यह है कि प्रेम पर जितना लिखा जाये, हमेशा कम ही होता है।