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'समग्र सामान्य हिन्दी' : देश के प्रत्येक प्रतियोगी विद्यार्थी के लिए उपयोगी और महत्त्वपूर्ण

8 अक्टूबर 2021

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'समग्र सामान्य हिन्दी' : देश के प्रत्येक प्रतियोगी विद्यार्थी के लिए उपयोगी और महत्त्वपूर्ण

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  ★ समीक्षक-- डॉ० राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी 'राघव'

       आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की अब तक की प्रकाशित सभी सामान्य हिन्दी की पुस्तकों :-- 'नालन्दा सामान्य हिन्दी', 'मानक सामान्य हिन्दी', 'बृहद् सामान्य हिन्दी', 'प्रामाणिक सामान्य हिन्दी', 'संजीवनी वस्तुनिष्ठ सामान्य हिन्दी', 'यूनीक सामान्य हिन्दी' एन्साइक्लोपीडिया' आदिक में से उत्कृष्ट पुस्तक 'समग्र सामान्य हिन्दी' है, जिसका प्रकाशन 'युक्ति पब्लिकेशंस', हॉस्पिटल रोड, आगरा से किया गया है, जिसके स्वामी श्री मयंक अग्रवाल हैं। इतना ही नहीं, वर्तमान में, देश के समस्त पुस्तक-विक्रेताओं के यहाँ 'सामान्य हिन्दी' की जितनी भी पुस्तकें हैं, उनमें शीर्ष पर 'समग्र सामान्य हिन्दी' रहेगी; क्योंकि उपर्युक्त पुस्तक में जितनी विविधता के साथ दुर्लभ परीक्षोपयोगी सामग्री है, वह अन्य किसी भी पुस्तक में लक्षित नहीं होगी। 

     'समग्र सामान्य हिन्दी' के प्रकाशक श्री मयंक अग्रवाल की प्रकाशन के प्रति अभिरुचि, सजगता, जागरूकता तथा परिश्रमशीलता देखते ही बनती है। इसके आरम्भिक पृष्ठ बहुवर्णीय हैं और शेष पृष्ठ दो वर्णों में। यह भाषिक और साहित्यिक कृति मानक (बड़े) आकार-प्रकार में बहुवर्णीय आवरणपृष्ठ और आकर्षक अन्त: साज-सज्जा के साथ प्रतियोगिता-जगत् में अपना 'अनन्य' स्थान बना लेगी, कोई संशय नहीं; क्योंकि यह 'प्रतियोगिता-साहित्य' है, जिसका हेतु 'कल्याणदर्शन' है, न कि 'वणिक् वृत्ति' का पोषण। यह पुस्तक अपने नाम के अनुरूप विषय-सामग्री के स्तर पर प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं में सफलता अर्जित करनेवाले विद्यार्थियों को भा जायेगी और रास भी आयेगी। 

    जो विद्यार्थी हाईस्कूल-इण्टरमीडिएट के स्तर पर 'हिन्दी-विषय' का अध्ययन कर रहे होते हैं, उनके लिए भी 'समग्र सामान्य हिन्दी' अपरिहार्य सिद्ध होगी। जो अध्यापक-अध्यापिकाएँ किसी भी स्तर (माध्यमिक से विश्वविद्यालयीय) के विद्यार्थियों को 'हिन्दी' विषय पढ़ा रही हों और जो हिन्दी-माध्यम में किसी भी विषय का अध्यापन कर रही हों, उनके लिए भी यह पुस्तक अति महत्त्व की है। हिन्दी-माध्यम में देश के जितने भी शोध-विद्यार्थी हैं; कनिष्ठ-वरिष्ठ, नामी-गिरामी, स्वनामधन्य साहित्यकार, कवि-कवयित्रियाँ, लेखक, समीक्षक आदिक हैं; पत्रकार-सम्पादक हैं; शैक्षिक-साहित्यिक संस्थान हैं; पुस्तकालय हैं, उन सभी के लिए 'समग्र सामान्य हिन्दी' एक 'विशेषज्ञ शिक्षक' के रूप में उद्देश्यपरक भूमिका का निर्वहण करेगी। इतना ही नहीं, जो भी जन शुद्ध हिन्दी-शिक्षण के प्रति सजग और जागरूक हैं तथा अपने हिन्दीभाषा-प्रयोग को उच्च स्तर पर लाने के लिए व्यग्र हैं; आग्रहशील हैं, उनके लिए भी 'समग्र सामान्य हिन्दी' की अति उपयोगिता और महत्ता है।

    'समग्र सामान्य हिन्दी' के 'विषय-क्रम' और 'अध्ययन-सामग्री', परीक्षोपयोगी तालिकाएँ-बॉक्स-सामग्री, 'उत्तरसहित पिछले दस वर्षों के  प्रश्न (वर्ष २०२१ की विभिन्न परीक्षाओं के वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तरसहित) को देखते-पढ़ते-समझते प्रत्येक विद्यार्थी और अन्य जन बोल पड़ेंगे-- तुझ-सा नहीं देखा पहले कभी।

      यह पुस्तक इसी अक्तूबर-माह के मध्य तक देश के प्रमुख पुस्तक-विक्रेताओं को उपलब्ध करा दी जायेगी।

     जिसे भी उपर्युक्त पुस्तक को क्रय कर अध्ययन करने में रुचि हो, वे सम्पर्क कर सकते हैं :-- ७५०००२९८८५, ९८३७२५९९३३।

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रचनाएँ
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शब्द-शब्द फूल बन कविता की बेल में गुँथा लहरा रहा द्रुम डाल पर उन्मुक्त और मुक्त इस अनुपम सृजन की सराहना कर ।। राघवेन्द्र कुमार "राघव"
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औरत (ग़ज़ल)

16 सितम्बर 2015
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तपिश ज़ज़्बातों की मन में,न जाने क्यों बढ़ी जाती ?मैं औरत हूँ तो औरत हूँ,मग़र अबला कही जाती ।उजाला घर मे जो करती,उजालों से ही डरती है ।वह घर के ही उजालों से,न जाने क्यों डरी जाती ?जो नदिया है परम् पावन,बुझाती प्यास तन मन की ।समन्दर में मग़र प्यासी,वही नदिया मरी जाती ।इज़्ज़त है जो घर-घर की,वही बेइज़

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अपने ही सितमगर...

18 सितम्बर 2015
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उस आग की लपटें अभी महसूस होती हैं ,जल रहे गुलशन की आहें नज़्म होती हैं ।दर-ओ-दीवार रोती है सिसककर याद कर जिसको ,वतन की आत्मा फिर आज वो मंज़र देख रोती है ।वतन पर जो हुए क़ुर्बान ये हालत देख रोते हैं ,अपने ही सितमग़र हैं सितम चहुँ ओर होते हैं ।क्या चाहा था क्या मिला कुछ समझ आता नहीं,शहादत पर हमारी ही यह

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बुढ़ापा

22 सितम्बर 2015
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अंगों में भरी शिथिलतानज़र कमज़ोर हो गयी ।देह को कसा झुर्रियों नेबालों की स्याह गयी ।ख़ून भी पानी बनकरदूर तक बहने लगा ।जीवन का यह छोरआज अब डसने लगा ।चलते चलते भूल गयाकितनी देर हो गयी ।अंगों में भरी शिथिलतानज़र कमज़ोर हो गयी ।।जिनके लिए दिन रातउम्र भर व्यय किए ।आज उन्होंने ही देखोकितने ज़ुल्मोसितम किए

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धन लोलुपता

27 सितम्बर 2015
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हरे नोटों के सामने,पतिव्रत धर्म बिकता है ।नारी की इस्मत बिकती है,पायल का रागबिकता है ।।खुल जाते हैं बन्द दरवाजे, चन्द सिक्कों की खनकार से।बिक जाते ईमान यहाँ, कुछ सिक्कों की बौछार से ।कैसे करें आस-ए-वफ़ा, ऐतबार यहाँ बिकता है ।हरे नोटों के सामने,पतिव्रत धर्म बिकता है ।थोड़े से पैसे की खातिर, बहन बेंच

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निरीहों की चिन्ता

11 अक्टूबर 2015
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एक दिन मैं टहलने,गया नदी के पास ।दो भेड़ें हमें मिलीं,करते हुए बकवास ।हम इन्सानों के प्रति,उनमें भरा रोष था ।मानव मीमांसा में उनकी,नर नहीं पिशाच था ।उनके शब्दों में उनकी पीड़ा,स्पष्ट नज़र आ रही थी ।शायद इसलिए ही भेड़ें,कुछ इस तरह विचार कर रही थीं ।पहले तो हम सभी को,शेर चीते ही खाते थे ।अक्सर हम उनसे

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आधुनिक लव

22 अक्टूबर 2015
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कैसा लव था तब ?कैसा हो गया है अब ?पूज्य होता था कभी,हेय हो गया है अब ।राधा कृष्ण का प्रेम,अखण्ड प्रेम की पहचान है ।नल और दमयन्ती का प्रेम,आज भी एक मिशाल है ।लैला और मजनू की मोहब्बत,पाकीज़गी के रंग रंगी है ।शीरी फ़रहाद के इश्क में ,सारी क़ायनात रंगी है ।आखिर क्या था इनके प्यार में

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जिनकी बदौलत हम सब दीपावली मनाते रहें हैं आज उनके घरों में अंधेरा है...

29 अक्टूबर 2016
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<p>कुरुक्षेत्र के लाड़ले शहीद मनदीप (जिनका सिर पाकिस्तान काट ले गया और हम... ), शहीद नितिन सुभाष और

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विकृतियाँ समाज की

18 नवम्बर 2016
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<p>मित्रों आप सब के आशीर्वाद से हमारी पहली कृति विकृतियाँ समाज की छप कर आ गयी है... यह पुस्तक amazon

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