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जीवन की महिमा

2 मार्च 2016

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जीवन में मरना भला, जो मरि जानै कोय

मरना पहिले जो मरै, अजय अमर सो होय



जीते जी ही मरना अच्छा है, यदि कोई मरना जाने तो। मरने के पहले ही जो मर लेता है, वह अजर - अमर हो जाता है। शरीर रहते रहते जिसके समस्त अहंकार समाप्त हो गए, वे वासना - विजयी ही जीवनमुक्त होते हैं।



मैं जानूँ मन मरि गया, मरि के हुआ भूत

मूये पीछे उठि लगा, ऐसा मेरा पूत



भूलवश मैंने जाना था कि मेरा मन भर गया, परन्तु वह तो मरकर प्रेत हुआ। मरने के पश्चात भी उठकर मेरे पीछे लग पड़ा, ऐसा यह मेरा मन बालक की तरह है।



भक्त मरे क्या रोइये, जो अपने घर जाय

रोइये साकट बपुरे, हाटों हाट बिकाय



जिसने अपने कल्याणरुपी अविनाशी घर को प्राप्त कर लिया, ऐसे सन्त भक्त के शरीर छोड़ने पर क्यों रोते हैं? बेचारे अभक्त - अज्ञानियों के मरने पर रोओ, जो मरकर चौरासी के बाज़ार मैं बिकने जा रहे हैं।


मैं मेरा घर जालिया, लिया पलीता हाथ

जो घर जारो आपना, चलो हमारे साथ



संसार - शरीर में जो मैं - मेरापन की अहंता - ममता हो रही है - ज्ञान की आग बत्ती हाथ में लेकर इस घर को जला डालो। अपने अहंकार - घर को जला डालता है।



शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल

काम क्रोध व्यापै नहीं, कबूँ न ग्रासै काल



गुरुमुख शब्दों का विचार कर जो आचरण करता है, वह कृतार्थ हो जाता है। उसको काम क्रोध नहीं सताते और वह कभी मन कल्पनाओं के मुख में नहीं पड़ता।



जब लग आश शरीर की, मिरतक हुआ न जाय

काया माया मन तजै, चौड़े रहा बजाय



जब तक शरीर की आशा और आसक्ति है, तब तक कोई मन को मिटा नहीं सकता। अतएव शरीर का मोह और मन की वासना को मिटाकर, सत्संग रुपी मैदान में विराजना चहिये।



मन को मिरतक देखि के, मति माने विश्वाश
साधु तहाँ लौं भय करे, जौ लौं पिंजर साँस



मन को मृतक (शांत) देखकर यह विश्वास न करो कि वह अब दोखा नहीं देगा। असावधान होने पर वह पुनः चंचल हों सकता है इसलिए विवेकी सन्त मन में तब तक भय रखते हैं, जब तक शरीर में श्वास चलता है।



कबीर मिरतक देखकर, मति धरो विश्वास

कबहुँ जागै भूत है करे पिड़का नाश



ऐ साधक! मन को शांत देखकर निडर मत हो। अन्यथा वह तुम्हारे परमार्थ में मिलकर जाग्रत होगा और तुम्हें प्रपंच में डालकर पतित करेगा।



अजहुँ तेरा सब मिटै, जो जग मानै हार

घर में झजरा होत है, सो घर डारो जार



आज भी तेरा संकट मिट सकता है यदि संसार से हार मानकर निरभिमानी हो जाये। तुम्हारे अंधकाररुपी घर में को काम, क्रोधादि का झगड़ा हो रहा है, उसे ज्ञानाग्नि से जला डालो।



सत्संगति है सूप ज्यों, त्यागै फटकि असार

कहैं कबीर गुरु नाम ले, परसै नहीँ विकार



सत्संग सूप के ही तुल्य है, वह फटक कर असार का त्याग कर देता है। तुम भी गुरु ज्ञान लो, बुराइयों को छुओ तक नहीं।



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रे दिल गाफिल गफलत मत कर

2 मार्च 2016
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रे दिल गाफिल गफलत मत करएक दिना जम आवेगा॥ टेक॥सौदा करने या जग आयापूजी लाया मूल गँवायाप्रेमनगर का अन्त न पायाज्यों आया त्यों जावेगा॥ १॥सुन मेरे साजन सुन मेरे मीताया जीवन में क्या क्या कीतासिर पाहन का बोझा लीताआगे कौन छुड़ावेगा॥ २॥परलि पार तेरा मीता खडियाउस मिलने का ध्यान न धरियाटूटी नाव उपर जा बैठागाफ

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दिवाने मन

2 मार्च 2016
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दिवाने मन भजन बिना दुख पैहौ ॥ टेक॥पहिला जनम भूत का पै हौ सात जनम पछिताहौ।काँटा पर का पानी पैहौ प्यासन ही मरि जैहौ॥ १॥दूजा जनम सुवा का पैहौ बाग बसेरा लैहौ।टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ॥ २॥बाजीगर के बानर हो हौ लकडिन नाच नचैहौ।ऊॅंच नीच से हाय पसरि हौ माँगे भीख न पैहौ॥ ३॥तेली के घर बैला होहौ आँखि

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तूने रात गँवायी सोय के

2 मार्च 2016
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तूने रात गँवायी सोय के, दिवस गँवाया खाय के।हीरा जनम अमोल था, कौड़ी बदले जाय॥सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल रे।बाहर का पट बंद कर ले अंतर का पट खोल रे।माला फेरत जुग हुआ, गया ना मन का फेर रे।गया ना मन का फेर रे।हाथ का मनका छाँड़ि दे, मन का मनका फेर॥दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय रे।जो

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नैया पड़ी मंझधार

2 मार्च 2016
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नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार ॥साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये ।हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं ।अंतरयामी एक तुम आतम के आधार ।जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार ॥गुरु बिन कैसे लागे पार ॥मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार ।तुम दाता दुख भंजन मेरी करो सम्हार ।अवगुन दास कबीर के

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साधो ये मुरदों का गांव

2 मार्च 2016
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साधो ये मुरदों का गांवपीर मरे पैगम्बर मरिहैंमरि हैं जिन्दा जोगीराजा मरिहैं परजा मरिहैमरिहैं बैद और रोगीचंदा मरिहै सूरज मरिहैमरिहैं धरणि आकासाचौदां भुवन के चौधरी मरिहैंइन्हूं की का आसानौहूं मरिहैं दसहूं मरिहैंमरि हैं सहज अठ्ठासीतैंतीस कोट देवता मरि हैंबड़ी काल की बाजीनाम अनाम अनंत रहत हैदूजा तत्व न ह

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मेरी चुनरी में परि गयो दाग पिया

2 मार्च 2016
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मेरी चुनरी में परि गयो दाग पिया।पांच तत की बनी चुनरियासोरह सौ बैद लाग किया।यह चुनरी मेरे मैके ते आयीससुरे में मनवा खोय दिया।मल मल धोये दाग न छूटेग्यान का साबुन लाये पिया।कहत कबीर दाग तब छुटि हैजब साहब अपनाय लिया। संत कबीर

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ऋतु फागुन नियरानी हो

2 मार्च 2016
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ऋतु फागुन नियरानी हो,कोई पिया से मिलावे।सोई सुदंर जाकों पिया को ध्यान है, सोई पिया की मनमानी,खेलत फाग अंग नहिं मोड़े,सतगुरु से लिपटानी।इक इक सखियाँ खेल घर पहुँची,इक इक कुल अरुझानी।इक इक नाम बिना बहकानी,हो रही ऐंचातानी।।पिय को रूप कहाँ लगि बरनौं,रूपहि माहिं समानी।जौ रँगे रँगे सकल छवि छाके,तन-मन सबहि

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माया महा ठगनी हम जानी

2 मार्च 2016
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माया महा ठगनी हम जानी।।तिरगुन फांस लिए कर डोलेबोले मधुरे बानी।।केसव के कमला वे बैठीशिव के भवन भवानी।।पंडा के मूरत वे बैठींतीरथ में भई पानी।। योगी के योगन वे बैठीराजा के घर रानी।।काहू के हीरा वे बैठीकाहू के कौड़ी कानी।। भगतन की भगतिन वे बैठीबृह्मा के बृह्माणी।।कहे कबीर सुनो भई साधोयह सब अकथ कहानी।।सं

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जीवन की महिमा

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जीवन में मरना भला, जो मरि जानै कोय ।मरना पहिले जो मरै, अजय अमर सो होय॥जीते जी ही मरना अच्छा है, यदि कोई मरना जाने तो। मरने के पहले ही जो मर लेता है, वह अजर - अमर हो जाता है। शरीर रहते रहते जिसके समस्त अहंकार समाप्त हो गए, वे वासना - विजयी ही जीवनमुक्त होते हैं।मैं जानूँ मन मरि गया, मरि के हुआ भूत।मू

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झीनी झीनी बीनी चदरिया

3 मार्च 2016
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झीनी झीनी बीनी चदरिया ॥काहे कै ताना काहे कै भरनी, कौन तार से बीनी चदरिया ॥ १॥इडा पिङ्गला ताना भरनी, सुखमन तार से बीनी चदरिया ॥ २॥आठ कँवल दल चरखा डोलै,पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया ॥ ३॥साँ को सियत मास दस लागे, ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया ॥ ४॥सो चादर सुर नर मुनि ओढी,ओढि कै मैली कीनी चदरिया ॥ ५॥दास कबीर जतन

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