ना मैं उसका रहा और ना मैं तुम्हारा रहा,
तेरे इश्क़ में ऐ सखी सारी उम्र कुंवारा रहा
कभी मेरे दिन तो कभी मेरी रातें,
दे दी सब तुम्हे न कुछ हमारा रहा
तेरी यादों के सहारे जिन्दा हूँ अब तक,
वर्ना हमको जीना भी कहाँ गंवारा रहा
है गर वक़्त तुमको तो सुनों मेरी धड़कन,
इन साँसों में है बस नाम तुम्हारा रहा
मिले गर खुदा तो माँगूँगा तुझको,
मगर गर्दिशों में हमेशा मेरा सितारा रहा
गिने कितने तारे तेरी चाह में अब,
इश्क़ की कश्ती का ना कोई किनारा रहा