सरकारी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करने वाले अधिकांश बच्चे गरीब तबक़े से आते हैं क्योंकि उनके पास प्राइवेट स्कूलों की भारी भरकम फीस और किताबों के लिए पर्याप्त पैसा नहीं होता।सरकार भी योग्य शिक्षकों को प्रशिक्षित करने में रुचि नहीं लेती।मात्र वोटों की खातिर समर्पित व योग्य शिक्षकों के स्थान पर कामचलाऊ मानदेय पर स्थानीय लोगों को पढ़ाने की जिम्मेदारी दे दी जाती है।बैठने के लिए कुर्सी मेज के स्थान पर टाट पट्टी और पढ़ाई के नाम पर गपशप,बच्चों के भविष्य के साथ खिलबाड़ नहीं तो और क्या है।अब तो स्कूली ड्रेस के साथ किताबें भी सरकार मुहैया करा रही है परन्तु शिक्षा के स्तर में कोई खास सुधार नज़र नहीं आता।माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुपालन में यदि सभी सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी स्कूल में पढ़ाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि उनके साथ गरीब लोगों के बच्चों के भविष्य का निर्माण भी हो सके।यदि ऐसा होता है तो सरकारी स्कूल में साफ़ सुथरा शौचालय,स्वच्छ जल हेतु आर ओ ,कम्प्यूटर,कुर्सी,मेज,बिजली,और अव्वल दरजे की पढ़ाई सर्वसुलभ होगी।