शहर और कस्बे की सूरत चमकाने के लिए गाँव को बदसूरत बनाया जा रहा है।शहरों से कूड़ा लाकर गाँव की सड़क के किनारे या तालाब में डाल पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाया जा रहा है।ठोस कूड़ा निपटान की वैज्ञानिक प्रक्रिया न अपनाकर सतही तौर पर पल्ला झाड़ स्वच्छता अभियान में भागीदारी का ढ़ोग किया जा रहा है।ऐसा नगरपालिकाओं और टाउनएरिया प्रशासन के उदासीन रवैये के कारण है।कूड़ा एकत्र करने के लिए ट्रन्चिग ग्राउन्ड का चयन प्राथमिकता के आधार पर नहीं हो पाता और यहां वहाँ चुपके से कूड़ा फेकने का काम बदस्तूर जारी है।शहर से नर्सिग होम और अस्पतालों से निकलने वाले कचरे को भी बड़ी लापरवाही से गाँव के किनारे या तालाब में डालकर जाने अनजाने एक अपराध किया जा रहा है।कूड़े के ढेर से उड़कर पालीथीन खेतों में जाकर उसकी मिट्टी को बीमार बनाने में अहम भूमिका निभा किसानों को आर्थिक रूप से क्षति पहुंचा रही है।साथ ही प्राकृतिक जल स्रोतों को भी दूषित होने का खतरा बना रहता है।ग्रामीण जनता के इर्द गिर्द अस्वस्थ एवं प्रदूषित वातावरण के चलते बीमारियों का खतरा बना रहता है।अब इस स्वच्छ भारत अभियान की सफलता शहर और गाँव दोनों को समान रूप से स्वच्छ रखने पर ही निर्भर है।