16 मई 2022
ये सच कहते मेरी जुबां नहीं थकती,हम हैं जंगल के वासी पर ,ना जाने सरकार हमसे क्या है चाहती ।ना हम हैं नक्सल और ना कोई उग्र जाति,ना जानें क्यों पिस्ते हैं हम भगदड़ में मासूम आदीवासी ।कोयले की अब जो खदाने