मैं नदिया के बाप के पीछे पीछे चलना लगा...
मेरे दिमाग़ में बहुत से सवाल चल रहे थे मगर मैंने नादिया के बाप को कुछ भी जाहिर नहीं होने दिया..
मैं नादिया के बाप के पीछे चलते चलते यही सोच रहा था कि नादिया की मां से मैं जरूर पूछूंगा कि आपने नादिया का इलाज इससे पहले और कहां-कहां करवाया है
थोड़ी ही देर पैदल चलने के बाद मेरा गुजर एक बस्ती की तरफ हुआ मैंने देखा कि वहां कुछ घरों में रोशनी जल रही थी क्योंकि यह गांव था और गांव के लोग अपने घरों में जल्दी ही चले जाते हैं
थोड़ी ही देर के बाद नादिया का बाप एक जगह के सामने रुक गया
मुझे यह देखकर हैरत का ठिकाना रहा वहां उस जगह पर एक बहुत बड़ी हवेली थी...
नदिया के बाप ने कुछ देर पहले मुझे ये बताया था कि वह एक मजदूर है मगर इस हवेली को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि यह हवेली एक मजदूर की हो सकती है
सामने एक बहुत बड़ा दरवाजा था दरवाजा बहुत पुराना मालूम होता था इस तरह के दरवाजे आज से 50 ता 60 साल पहले ही बना करते थे जिस पर एक बड़ी सी कुण्डी लटक रही थी
नदिया के बाप ने कुंडी बजाना शुरू कर दी
थोड़ी ही देर के बाद दरवाजा किसी ने खोला
मैंने पहचान लिया कि वह नादिया की मां थी
नादिया की मां ने मुझे देखा और मुझे अंदर की तरफ बुलाने लगी
आइए डॉक्टर साहब आइए हम आप ही का इंतजार कर रहे थे देखिए ना नादिया को क्या हुआ है वह किसी से कुछ बोल ही नहीं रही है
मैं नादिया की मां के पीछे पीछे अंदर की तरफ आ गया जैसे ही मैंने हवेली के अंदर कदम रखा है यह देखकर मेरी हैरत की इंतहा और ना रही हवेली अंदर से बहुत ही आलीशान मालूम होती थी मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो अब वहां पर नादिया का बाप मौजूद नहीं था..
मैं इधर-उधर देखने लगा नादिया की मां मेरे इधर उधर देखने पर समझ गई वह मुझसे कहने लगी
वह अभी आते ही होंगे आप अंदर आप अंदर आइए ना...
नादिया की मां मुझे एक बहुत बड़े कमरे की तरफ ले गई मैंने देखा कि उस कमरे में एक बहुत बड़ी मसेहरी बिछी हुई थी जिस पर नादिया आँखें बंद कर के लेती हुई थी...
लाइट उस वक्त नहीं थी लेकिन फिर भी हवेली पूरी तरह से रोशन थी मैंने देखा उस हवेली में बड़े-बड़े झाड़ लगे हुए थे जिस पर मोमबत्ती जल रहीं थीं...
नादिया की मां नादिया को बहुत ही मोहब्बत भरी निगाह से देख रही थी
फिर नादिया की मां मुझे देख कर कहने लगी आप ही देखिए डॉक्टर साहब ये आंखें नहीं खोल रही है हम सुबह से बहुत ज्यादा परेशान हैं हमने उससे कहा भी कि चलो डॉक्टर साहब के यहां पर चलते हैं मगर इसने खुद इसरार करके हमसे कहा कि डॉक्टर साहब को यहीं पर बुला लाइए मैं उनकी बात पर मुस्कुरा दिया दरअसल मुझे नादिया का चेहरा देखकर ही तसल्ली हो गई थी मैं नादिया को बहुत ही गौर से देख रहा था वह इतनी ज्यादा खूबसूरत थी कि मैं बता नहीं सकता और वह उस वक्त मुझे और ज्यादा खूबसूरत लग रही थी...
पता नहीं उस में ऐसी कौन सी कशिश थी जो मुझे उसकी ओर खींचने की तरफ मजबूर कर रही थी फिर मैंने नादिया की मां से कहा कि इसको उठाइए.
नादिया की मां ने नादिया को आवाज लगाई
नादिया उठो..उठो..नादिया उठो...देखो डॉक्टर साहब आ गए हैं
नादिया की मां के ऐसा बोलते ही नादिया ने आंखें खोल ली.... और वह मुझे देखने लगी
मैंने देखा उसका देखने का अंदाज बड़ा अजीब था फिर वह इत्मीनान से उठ कर बैठ गई
और मुझसे कहने लगी आइए डॉक्टर साहब मैंने ही आपको यहां पर बुलवाया था मुझे आपसे कुछ बात करनी है मैंने नादिया को देखकर कहा तुम क्लीनिक आ जाती तो और भी ज्यादा अच्छा होता लेकिन चलो कोई बात नहीं हो सकता है कि तुम्हें कुछ कमजोरी हो तो तुम नहीं आ पा रही हो....
फिर नादिया ने अपनी मां की तरफ देख कर कहा.
माँ क्या डॉक्टर साहब के लिए कुछ लाओगे नहीं
नादिया की मां नादिया के कहने पर नादिया को बहुत गौर से देखनी लगे फिर थोड़ी देर बाद वह बोली
ठीक है मैं डॉक्टर साहब के लिए चाय लेकर आती हूं यह कहकर वह चली गई
अब नादिया और मैं एक दूसरे को देख रहे थे फिर थोड़ी देर बाद चुप रहने के बाद वो बोली..
डॉक्टर साहब आप अभी तक खड़े हुए खड़े क्यों हैं आप भी सोच रहे होंगे कि इस मरीज को देखने के लिए मैं यहां तक आया मगर इसने मुझे बैठने तक कि नहीं कहा यह कहकर वो हंसने लगी
मैं बैठकर उसे ही देख रहा था उस के बात करने का अंदाज वैसा ही था जब वो पहली बार क्लीनिक पर आई थी बड़े ही बेतकल्लूफाना अंदाज में उस ने कहा..
मुझे उसका यह अंदाज बड़ा अजीब लगा था लेकिन पता नहीं क्यों मुझे अब उसका यह अंदाज बहुत ही अच्छा लग रहा था फिर मैंने नादिया का हाथ पकड़ कर देखा जैसे ही मैंने उसका हाथ पकड़ा तो मेरी हैरत की इंतहा नहीं रही उसकी नब्ज सही चल रही थी मगर उसका जिस्म पूरी तरह से ठंडा पड़ा हुआ था मेरा नदिया से कहा तुमने आज सुबह से कुछ खाया कि नहीं
मेरी बात सुनकर वह मुस्कुरा दी
खाने पीने का दिल नहीं करता डॉक्टर साहब बस कोई ऐसा इंसान चाहिए था कि जिससे अपनी बात कह कर अपने दिल का बोझ हल्का कर सकूं
मैं उसकी इस बात पर एकदम चौक गया फिर मैं पूछने लगा तुम कहना क्या चाहती हो मैं जो कहना चाहती हूं आप अच्छी तरह से समझ रहे हो डॉक्टर साहब दरअसल बात यह है कि मैं खुद नहीं समझ पा रही हूं कि मैं आपसे कैसे कहूं लेकिन बात असल में यह है कि जब मैंने आपको पहली बार देखा था तभी मुझे एक एहसास हुआ था कि क्यों ना आपको अपने दिल की बात आपको बताऊं और अपने दिल का बोझ को हल्का कर सकूं तुम अपने दिल की बात मुझसे कह सकती हो नादिया वैसे भी कोई भी बात दिल में नहीं रखनी चाहिए दिल में रखने से ज़ेहन बीमार हो जाता है और जब ज़ेहन बीमार हो जाता है तो पूरा हमारा पूरा जिस्म बीमार पड़ने लगता है तुम्हारे दिल में जो कुछ भी हो तुम्हें कोई भी तकलीफ हो...तो मुझे खुल कर बता सकती हो मैं एक डॉक्टर हूं तुम्हारी पूरी मदद करने की कोशिश करूंगा
मेरी बात सुनकर वह मुझे शोखी भरी नजरों से देखने लगी मगर मुझे उसका यह अंदाज बहुत ही ज्यादा अच्छा लग रहा था हम लोग बातें कर ही रहे थे कि नादिया की मां चाय लेकर हमारे पास आ गई मैंने जैसे ही चाय का कप उठाना चाहा
नादिया ने अपनी मां से कहा मैं डॉक्टर साहब के साथ बाहर जाना चाहती हूं नादिया की मां नादिया को अजीब सी नजरों से देखने लगी हालांकि उसके इस सवाल पर मैं खुद चौक कर नदिया की तरफ देखने लगा क्योंकि यह वह जमाना था जिस वक्त लड़कियां इस तरह की बात सोच भी नहीं सकती थी और नादिया ने यह बात कह दी थी मगर उसकी मां ने कुछ भी नहीं कहा और वो चुपचाप कमरे से बाहर चली गई
फिर नादिया ने कहा
आइए डॉक्टर साहब थोड़ी दूर तक चलते हैं मैं आपको कुछ दिखाना चाहती हूं
अब मुझे नादिया का रवैया बहुत ही ज्यादा अजीब लग रहा था मैं उससे इससे पहले कुछ कहता तो उसने शायद मेरा चेहरा पढ़ लिया
कुछ नहीं डॉक्टर साहब आप घबराइए मत दरअसल मुझे घर में रहते रहते घुटन होने लगी है है मेरा यहां पर दम सा घुटने लगा है बहुत दिन से मैं बाहर भी नहीं निकली
मुझे थोड़ी घबराहट सी हो रही है बाहर निकलूंगी तो शायद मुझे थोड़ा सुकून मिल जायेगा..
ठीक है नादिया जैसी तुम्हारी मर्जी लेकिन तुम्हारे अब्बा बुरा तो नहीं मानेंगे
नादिया मेरी बात सुनकर बहुत तेज तेज आवाज में हंसने लगी नहीं मानेंगे डॉक्टर साहब मेरे मां-बाप को को मुझ पर पूरी तरह से भरोसा है और मैं उनका भरोसा कभी नहीं तोडूंगी आपने देखा होगा मैंने अपनी मां से पूछा और मेरी मां ने कुछ भी नहीं कहा यकीन मानिए मेरे अब्बा भी मुझसे कुछ नहीं कहेंगे यह सुनकर मैं खामोश हो गया
नादिया उठ कर खड़ी हो गई और वह धीरे-धीरे कदमों से लड़खड़ाते हुए कदमों से बाहर की तरफ जाने लगी मुझे उसकी लड़खड़ाहट देखकर बड़ा अजीब लगा
मुझे तुम्हारी तबीयत सही नहीं लग रही है एक बार मुझे चेक करने दो पर उस ने मेरी बात को अनसुना कर दिया
और मेरी तरफ पलट कर मुस्कुरा कर देखने लगी
कुछ नहीं डॉक्टर साहब कुछ नहीं हुआ है मुझे आप चलिए ना आप घबराइए मत और वैसे भी आप मेरे साथ है ना
मैं खामोशी से उसके पीछे पीछे चलने लगा थोड़ी ही देर के बाद हम लोग बाहर निकल आए और वह मुझे अपनी बस्ती दिखाने लगी मैंने देखा बस्ती के कुछ घरों में ही लालटेन जल रही थी.. शायद बिजली नहीं थी वहां पर...रात के वक़्त मैं और नादिया अकेले ही थे... चांदनी रात थी..मगर मुझे कोई भी व्यक्ति वहां पर बाहर दिखाई नहीं दे रहा था...हैरत मुझे इस बात कि थी कि मुझे कोई जानवर भी अभी तक नहीं दिखाई दिया था.. रात के वक़्त तो कुत्ते अक्सर दिखाई ही दे जाते हैँ.. चाहे कोई गाँव हो या कोई शहर.... सब तरफ सन्नाटे का ही राज़ था.. बस यही बात मुझे बहुत अजीब लग रही थी.. मगर मैंने अपने ख्याल नादिया के सामने ज़ाहिर नहीं किये...
करीब 15 मिनट पैदल चलने के बाद
नादिया एक घर की तरफ रुक गई फिर उसने उस घर का दरवाजा खटखटाया अंदर से एक आवाज
आई कौन है....
नादिया ने कहा मैं हूं खाला जान...नादिया...
फिर अंदर से दोबारा आवाज आयी..
ठीक है बेटी रुको मैं आती हूं
थोड़ी देर के बाद दरवाज़ा एक औरत ने खोला...
मैंने देखा एक बूढ़ी महिला थी... जो बहुत गरीब मालूम होती थी...अगर चांदनी रात नहीं होती तो मुझे उस का चेहरा भी नहीं दिखाई देता...
तू आ गयी बिटिया... अंदर आओ
मैं तेरा ही इंतजार कर रही थी
मैं और नादिया अंदर चले गए.. मैंने देखा मकान बहुत पुराना था साफ साफ लग रहा था कि ये औरत बहुत गरीब है..अंदर अंधेरा था.. बस एक लालटेन जल रही थी.. और उस कि रोशनी बहुत कम थी..
नादिया ने अंदर जाकर उस औरत से पूछा
अफरोज सब कैसा है खाला जान..
क्या बताऊं बिटिया कुछ बोलता ही नहीं है बस खामोश लेटा रहता है अच्छा हुआ तू आ गई मैं तेरा ही इंतजार कर रही थी बहुत दिनों से तू आई नहीं है ना.. जा...जा कर देख ले अंदर लेटा हुआ है हो सकता है तुझे देखकर खुश हो जाए हम तो आवाज लगाते रहते हैं पर हमारी तो बात का जवाब ही नहीं देता.....मैं उस बुढ़िया की यह बात सुनकर चौंक गया
आप फ़िक्र मत करो खाला मैं अपने साथ डॉक्टर साहब को इसी लिए लायी हूं...
मैंने नदिया से पूछा
यह अफ़रोज़ कौन है...क्या तुम इसे जानती हो...
मेरी यह बात सुनकर नादिया की आंख में आंसू आ गए आपको थोड़ी देर में पता लग जाएगा
डॉक्टर साहब आप अंदर आइए नादिया एक कमरे की तरफ चली गई और मैं नादिया के पीछे पीछे
थोड़ी देर बाद मैंने देखा एक कमरे में एक और लालटेन जल रही थी.. और चारपाई पर एक नौजवान लेटा हुआ था जिसके ऊपर एक सफेद चादर ढकी हुई थी मुझे यह देख कर बड़ा अजीब लगा ऐसा लग रहा था जैसे कि वो नौजवान सो रहा है उसकी उम्र ज्यादा नहीं लग रही थी वह भी करीब नादिया की उम्र का ही होगा
फिर नादिया ने उस नौजवान को आवाज लगाना शुरु कर दी अफरोज..अफरोज.... उठो देखो मैं आ गई मैंने देखा कि नादिया की बात पर उस नौजवान के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा मुझे देख कर बड़ा अजीब लगा....
मैंने मैंने नादिया की तरफ देख कर कहा
नादिया मेरी तरफ देखने लगी....
ठीक है मैं देखता हूं क्या हुआ है अब मैं उस नौजवान के करीब पहुंच गया जो कि एक चारपाई पर लेटा हुआ था मैंने उस नौजवान की हाथ की नब्ज पकड़ी तो मैं देख कर दंग रह गया और मुझे झटका सा लगा उसकी नब्ज नहीं चल रही थी मैं नादिया की तरफ देखने लगा
नादिया यह तो मर चुका है इस कि नब्ज़ नहीं चल रही है..
अचानक मेरी नज़र उस नौजवान के जिस्म पर पड़ी मुझे यह देख कर मुझे एक और झटका लगा...कि वह नौजवान जो चादर लपेट कर लेटा हुआ था जो कि मर चुका था उसकी चादर से नीचे खून टपक रहा है शायद थोड़ा अंधेरा होने की वजह से मेरी निगाह पहले नहीं गई थी यह देख कर मुझे एक झटका सा लगा मैंने उसके जिस्म से चादर हटा दी जैसे ही मैंने चादर हटाई तो मैंने देखा उसके सीने पर एक सुराख़ था और उसी सुराख़ से खून बह रहा है
मैं नादिया की तरफ हक्का-बक्का देखने लगा और फिर मैंने कहा यह सब क्या है नादिया.....
क्या हुआ है इसको नादिया
नादिया बहुत ही शांत लहज़े मे बोली
इस को गोली लगी है डॉक्टर साहब शायद अब वो मर चुका है इसलिए हमारी बात का जवाब नहीं देता....
मैंने नादिया की तरफ देख कर कहा हाँ ये मर चुका है
हमें पुलिस मे इन्फॉर्म करना चाहिए किसने मारा है इस को..क्या तुम जानती हो इस को किसने मारा है
नादिया मेरी बात सुनकर खामोश हो गई....
पुलिस को हम लोग बाद मे बुला लेंगे डॉक्टर साहब....
बाहर जाकर मैं आपको सब बताती हूं
फिर उसने उस बूढ़ी को आवाज लगाई मैं जा रही हूं खाला फिर उस बुढ़िया ने नादिया से कहा
अरे अफरोज ने तुझ से कुछ कहा क्या बिटिया...
नहीं खाला कल मैं फिर उससे मिलने आऊंगी
ठीक है बिटिया कल जरूर आना
यह कहकर नादिया दरवाजे के बाहर निकल आई फिर मुझसे कहने लगी कि आओ डॉक्टर साहब कहीं बैठते हैं
मैं असमंजस में पड़ा हुआ..... कि अंदर एक नौजवान कि लाश है और उसे गोली लगी हुई है और नादिया ऐसे बिहेव कर रही है जैसे कुछ हुआ ही ना हो....मुझे अब बड़ा अजीब लग रहा था...
मैं उसके पीछे पीछे चलने लगा
थोड़ी देर के बाद हम लोग मैदान में थे
मैंने देखा उस मैदान मे हल्की हल्की घास उगी हुई थी
मैंने देखा नादिया एक तरफ जाकर बैठ गई और वह खुली हवा में गहरी गहरी सांसें लेने लगी
मैं नदिया के पास बैठकर कहने लगा
यह सब क्या है मेरी तो समझ में कुछ भी नहीं आ रहा उस नौजवान को गोली लगी हुई है वो नौजवान मर चुका है और तुम ऐसे बिहेव कर रही हो जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो आखिर उस नौजवान को किसने मारा हमें पुलिस के पास जाना चाहिए....
डॉक्टर साहब मैं आपको एक सच्चाई बताती हूं उस नौजवान को किसी और ने नहीं बल्कि मेरे बाप ने ही मारा है
नादिया की यह बात सुनकर मैं हैरत से नादिया की ओर देखने लगा
कैसी बातें कर रही हो तुम...
मैं बिल्कुल सही कह रही हूं डॉक्टर साहब
उस नौजवान को मेरे बाप ने ही मारा है
अब तुम वजह पूछोगे क्यों मारा है तो मैं बताती हूं
मेरा और अफरोज का रिश्ता बचपन में ही तय हो गया डॉक्टर साहब उस वक्त मेरा बाप एक मामूली मजदूर था वह मजदूरी करता था और अफरोज का बाप भी मजदूरी करता था हम दोनों के घर में इतना आना जाना था कि हमारे घर वालों ने आपस में बचपन में ही हमारा रिश्ता तय कर दिया था फिर जब हम जवान हुए तो मेरे बाप कि किस्मत बदलने लगी और वह देखते ही देखते बहुत बड़ा आदमी बन गया मगर जब उसके पास दौलत आई तो दौलत अपने साथ- बहुत सारा घमंड भी लेकर आई मेरा बाप दौलत के घमंड में चूर हो गया
अब उसे मेरा अफरोज से मिलना जुलना पसंद नहीं था उसने मुझ से साफ इंकार कर दिया कि वह अब मेरी शादी अफ़रोज़ से नहीं कर सकता
मैं अफरोज को बचपन से ही चाहती थी बचपन से ही मैं अपने दिल में उसकी तस्वीर लिए बैठी हुई थी मेरे सपने चकनाचूर हो गए
.......