मैं उस औरत की बात सुनकर हक्का-बक्का उसकी तरफ देखने लगा मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था कि उस औरत ने मुझसे अकेले में बात करने के लिए क्यों कहा शायद वह मेरी नजरों को समझ गई थी उसने दोबारा फिर आहिस्ता से कहा और इस बार बहुत इल्तिज़ा भरे लहज़े मे कहा.....
मुझे आपसे अकेले में कुछ बात करनी है डॉक्टर साहब
फिर मैंने उस बूढ़े शख्स की तरफ देखा वह अभी भी मुझसे नजरें चुरा रहा था...
मैंने कहा ठीक है फिर उस औरत ने अपने पति को अजीब सी नजरों से देखा और वह बूड़ा चुपचाप कमरे से बाहर निकल कर चला गया अब कमरे में हम तीनों के अलावा और कोई नहीं था मैं और वह औरत और उसकी बेटी जो अभी तक बेहोश थी
फिर मैंने उस औरत से मुखातिब होकर कहा
ओके...अब यहां पर कोई नहीं है बोलिए.....
आपको मुझसे अकेले में क्या बात करनी थी....
पर मैंने देखा वह औरत बेचैनी से इधर-उधर देखने लगी शायद वह कुछ कहना चाह रही थी मगर कह नहीं पा रही थी
मैं उसकी हालत देखकर समझ गया
फिर मैंने उस से बहुत नरमी भरे लहजे में कहा
देखिए खातून मैं एक डॉक्टर हूं और मेरा काम मरीजों का इलाज करना है मैंने आपकी बेटी की हालत देखकर यह अंदाजा लगा लिया था कि आपकी बेटी ने कुछ दिनों से कुछ खाया नहीं है उसका जिस्म पूरा ठंडा पड़ा हुआ है
फिर वह बड़ी बेचैनी से मेरी तरफ देख कर बोली
डॉक्टर साहब कोई घबराने वाली बात तो नहीं है....
अभी मैंने इसका इलाज करना शुरू नहीं किया है इलाज करने के बाद मरीज की कंडीशन का पता लगेगा वैसे आपकी बेटी का नाम क्या है....
उसने बताया मेरी बेटी का नाम नादिया है यह मेरी इकलौती बेटी है हम इससे बहुत मोहब्बत करते हैं आपने जब यह पूछा कि क्या इस ने कुछ खाया है या नहीं... तो मैं घबरा गयी क्यों कि बाहर थोड़े बहुत गांव के लोग भी इकट्ठा है तो मुझे सही मालूम नहीं हुआ... आप शहर के रहने वाले हैं डॉक्टर साहब लेकिन यह गांव हैं आप यहां के लोगों को नहीं जानते यहां के लोग तिल का पहाड़ बनाने में माहिर होते हैं यहां की लड़की की इज्जत आबरू की बहुत अहमियत होती है यहां पर लोग छोटी-छोटी बातों पर किसी को भी बदनाम कर देते हैं
मैं उस औरत की बात बहुत गौर से सुन रहा था जो नादिया की मां थी फिर मैंने उनसे कहा मैं आपकी बात को समझता हूं कि हमारे हिंदुस्तान में गांव का माहौल बहुत अलग होता है और शहर वाले गांव के माहौल को पुराना माहौल कहते हैं मैं अच्छी तरह से आपकी बात समझता हूं आप बेफिक्र हो कर मुझे बताएं मैं वादा करता हूं कि आपकी खानदान कि इज्जत पर कोई भी आंच नहीं आएगी गांव की लड़की की इज्जत और खानदान की अहमियत क्या होती है मैं इस बात को अच्छी तरह से समझता हूं...
मेरी बात पूरी के बाद मैंने देखा उस औरत के चेहरे पर थोड़ा सुकून नजर आने लगा था..
फिर वह बोली दरअसल डॉक्टर साहब बात यह है कि मेरी इस बेटी की मंगनी हो चुकी थी मगर किसी वजह से मंगनी टूट गई.. क्यों कि मँगनी लड़के ने खुद तोड़ दी थी..और यह सदमा मेरी बेटी बर्दाश्त नहीं कर पा रही है और इसी वजह से उसने कुछ दिनों से खाना पीना बिलकुल छोड़ रखा है और बीमार बीमार सी नजर आती है....
मैं नादिया की मां की बात को बहुत गौर से सुन रहा था फिर मैंने नादिया की मां से पूछा
देखिए मुझे कोई हक तो नहीं है यह पूछने का लेकिन फिर भी क्या मैं वजह पूछ सकता हूं कि लड़के ने आखिरकार नादिया से शादी करने की क्यों मना कर दी
मैंने देखा मेरे इस सवाल पर वह औरत मुझे बेबसी से देखने लगी मैं इस बारे में कुछ नहीं बता सकती डॉक्टर साहब...
मैंने कहा घबराइए मत कुछ तो बताइए शायद मैं आप कि कुछ मदद कर सकूँ...इससे पहले कि वह औरत कुछ बोलती तभी अचानक कमरे का दरवाजा खुल गया और मैंने देखा कि वह बूड़ा अंदर आ गया जो कि नादिया का बाप था
और नादिया के बाप ने आकर मुझसे एक ही सवाल किया डॉक्टर साहब आप इलाज कब शुरू करेंगे मेरी बेटी अभी तक होश में नहीं आई...
मैंने देखा जैसे ही नादिया का बाप अंदर आया फ़ौरन नादिया कि माँ खामोशी के साथ नीचे बैठ गई कुर्सी पर......
मैंने फिर उस बूढ़े की तरह मुखातिब होकर कहा
ठीक है मैं इलाज शुरू करता हूं और मैंने एक डॉक्टर होने के नाते नादिया का इलाज करना शुरू कर दिया थोड़ी ही देर बाद मैंने देखा कि नादिया को हल्का-हल्का होश आने लगा और उसने हल्की हल्की आंखें खोल दी फिर मैंने उन लोगों से नादिया के लिए थोड़ा सा दूध मंगवाया और उसके बाप की तरफ मुखातिब होकर कहा कि आपकी की बेटी ने कुछ खाया नहीं है इसको थोड़ा सा दूध पिलाएं थोड़ी ही देर बाद मैंने देखा कि उन लोगों ने दूध मंगवा लिया था और नादिया हक्का-बक्का हैरत से सब लोगों को देख रही थी जैसे कि उसे यकीन ही ना हो कि वह इस वक्त हॉस्पिटल में है
मैंने देखा उसकी मां नादिया की तरफ दूध का गिलास लेकर खड़ी हुई थी और वह नादिया से बड़े इल्तजा भरे लहजे में कह रही थी कि बेटी थोड़ा सा दूध पी लो डॉक्टर साहब ने कहा है मगर मैंने देखा कि नादिया ने दूध पीने से साफ इनकार कर दिया फिर मैंने उस नदिया के बाप की तरफ देख कर कहा कि आप अपनी बेटी को दूध जरूर पिलाएं जब तक कुछ भी इसके पेट में नहीं जाएगा यह ठीक नहीं हो सकती और इस वक्त इस के पेट में कुछ न कुछ.. जाना बहुत जरूरी है...
मगर मैंने देखा कि नादिया का बाप फिर से नजरें इधर-उधर चुराने लगा फिर थक हार कर मैं खुद नदिया के पास गया और उस को गौर से देखने लगा मुझे तो पहली बार देखने में ही कुछ अजीब सी कशिश लगी थी उसमें....
फिर मैंने नादिया से कहा... प्लीज आप दूध पी लीजिए आपके दूध पीना बहुत जरूरी है आपने कुछ दिनों से कुछ नहीं खाया है इस तरह आपकी हालत और भी बिगड़ सकती है...
मैंने देखा मेरे यह कहने पर वह मुझे बहुत गौर से देखने लगी फिर उसने सबके सामने मुझसे कहा....
ठीक है मैं आप के कहने पर दूध पी लूंगी मगर मेरी एक शर्त है अगर आपको शर्त कुबूल है तो मुझे बताइए
मैं हक्का-बक्का नादिया की तरफ देखने लगा क्योंकि मैं जानता था कि गांव का माहौल इस तरह का नहीं होता था नादिया कि इस तरह कि बेतकल्लूफी ने मुझे बहुत ज्यादा हैरान कर दिया था और मैंने देखा कि उसकी इस बात का उसकी मां पर भी कोई फर्क नहीं पड़ा था और ना उस के बाप पर...
यह वह दौर था जब इस तरह की बातें हिंदुस्तान में नहीं हुआ करती थी यह वह दौर था जब कोई भी लड़की पहली मुलाकात में किसी अजनबी से इतनी बेतकलुफी से बात नहीं करती थी और इस बात ने मुझे हैरानी में डाल दिया था
फिर मैंने पूछा... कैसी शर्त..कौन सी शर्त...
उसने कहा वह शर्त मैं आपको बाद में बताऊंगी......
बारहाल मैंने उसका दिल रखने के लिए बोल दिया कि मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है लेकिन पहले यह दूध पी लो...
मेरे कहने पर धीरे-धीरे करके उसने पूरा गिलास दूध पी लिया
फिर मैंने नदिया के बाप से मुखातिब होकर कहा
आपके साथ जो गांव वाले आए हैं उन्हें आप घर पर भेज दीजिए एक-दो घंटे बाद नदिया की हालत देखकर मैं उसे डिस्चार्ज कर दूंगा मरीज को इस तरह से और घबराहट होती है जब वह अपने आसपास बहुत से लोगों को देखता है
मैंने देखा मेरी बात सुनकर वो बूड़ा उन लोगों के पास चला गया जो लोग उसके साथ यहां तक चल कर आए थे थोड़ी ही देर बाद वहाँ ख़ामोशी थी...वहां पर अब कोई भी मौजूद नहीं था सब लोग अब वहां से जा चुके थे....
तकरीबन 1 घंटे बाद मैं फिर नादिया को दोबारा चेकउप करने गया
मुझे उसकी हालत मैं बहुत सुधार महसूस हुआ और उसकी हालत अब बहुत बेहतर हो गयी... थी...दरअसल एक डॉक्टर होने के नाते मैंने यह अंदाजा लगा लिया था कि नादिया को कोई भी बीमारी नहीं थी बस उस ने कुछ दिनों से कुछ खाया नहीं था और इसी वजह से उसकी तबीयत में गिरावट आ गयी थी...
फिर मैंने नादिया को कुछ दवाइयां लिखी और वह दवाइयां नादिया के बाप के हाथों में थमा दीं..और फिर मैंने नदिया के बाप से कहा कि आपकी बेटी बिल्कुल सही है यह दवाइयां देते रहिएगा और दो दिन बाद एक बार फिर इसका चेकअप कराने जरूर आइएगा....
मुझे तभी पता चलेगा कि नादिया की हालत में कितना सुधार है मेरी बात सुनकर नादिया का बाप खुश हो गया....दरअसल मैंने नदिया के बाप से झूठ बोला था क्योंकि मुझे पहले ही नजर में नदिया में इतनी कशिश महसूस हुई थी कि मैं उससे दूर ही नहीं होना चाहता था मैंने उसे सिर्फ ताकत की दवाइयां लिखी थी क्योंकि मैं जानता था कि नादिया को कोई भी बीमारी नहीं है सिर्फ खाना छोड़ने की वजह से वह बेहोश हुई थी मगर मैं उसे दोबारा बुलाना चाहता था शायद मैं उसे दोबारा देखना चाहता था थोड़ी ही देर बाद मैंने देखा कि नादिया कि माँ उस का हाथ पकड़े अस्पताल के बाहर खड़ी थी
सुबह होने में अभी एक घंटा ही बाकी था मैंने घड़ी की तरफ नजर दौड़ाई तो मैंने देखा घड़ी उस वक़्त रात के 4:00 बजा रही थी यह देखकर मेरी हैरत का ठिकाना नहीं रहा ऐसा पहली बार हुआ था कि मुझे वक्त का पता ही नहीं चला वह भी रात के वक्त और ना ही मुझे एक बार नींद का कोई झोंका आया था
मैंने इस ख्याल को झटक दिया सोचा कि शायद हो सकता है कि मैं नादिया की तरफ कुछ ज्यादा ही आकर्षित हो गया हूं
मैं अपना केबिन की तरफ चला गया मैं सोच रहा था कि क्या अपने क्वार्टर वापस जाऊं कि नहीं जाऊं सुबह तो वैसे ही होने वाली थी आज की रात तो पूरी ऐसी ही जागते जागते ही कट गई थी फिर मैंने यही फैसला किया कि चलो थोड़ी देर जाकर सो लेते हैं मैं यह सोच ही रहा था कि तभी मैंने देखा है कि नादिया का बाप मेरी तरफ ही आ रहा था जैसे ही उसका बाप मेरे कमरे की तरफ आया जहां पर मैं बैठा था
अचानक लाइट चली गई और सब तरफ अंधेरा हो गया बस मुझे नादिया के बाप की आवाज सुनाई दी...
डॉक्टर साहब आप वहां से चले आए मैं आपको आपकी फीस देना तो भूल गया
मैंने उससे मना किया... नहीं नहीं अरे इसकी क्या जरूरत है वैसे भी 2 दिन बाद आपको अपनी बेटी को लेकर यहां आना है तब देख लेंगे लेकिन उसने कहा... मैं सोच रहा था कि बेचारे गरीब लोग हैँ क्या देंगे....
नहीं डॉक्टर साहब आपने बहुत मेहनत की है पूरी रात आप सोए नहीं हैं इसलिए उसने जबर्दस्ती मेरे हाथ में कुछ पैसे पकड़ा दिए और वहां से चला गया
अंधेरा का आलम था मैंने यह भी नहीं देखा कि पैसे कितने दिए हैं मैंने उसके पैसे अपने कोट की जेब में रख लिए.. और मोमबत्ती की तलाश करने लगा करीब 5 मिनट की मेहनत मशक्कत करने के बाद मुझे मोमबत्ती मिल गई मगर यह क्या जैसे ही मैंने मोमबत्ती जलाने की कोशिश की लाइट वापस आ गई
मैं बाहर की तरफ निकल आया मैंने देखा कि नदिया की मां और बाप अब वहां से जा चुके थे मेरे जहन में ख्याल आया कि इतनी जल्दी वो लोग कैसे जा सकते हैं
अभी 5 मिनट तो हुए हैं ना तो कोई रिक्शा है यहां पर और ना ही उन लोगों को पास कोई गाड़ी वगैरह थी...
फिर मैंने सोचा हो सकता है कि वैसे भी आज की रात वक्त पता ही ना लगा हो मैं जिस से 5 मिनट समझ रहा हूं उस बात को 10:15 मिनट बीत गए हैं यह सोचकर मैंने इस सवाल को भी अपने ज़ेहन से झटक दिया
और धीरे-धीरे कदमों से चलता हुआ मैं अपने क्वार्टर की तरफ पहुंच गया ठंड और ज्यादा बढ़ गई थी और मैं पूरी रात नहीं सोया था अब मुझे थोड़ी सी थकान महसूस हो रही थी तब मुझे महसूस हो रहा था कि मेरा बदन थोड़ा थका थका सा है मैं बिस्तर पर कंबल ओढ़ कर सोने की कोशिश करने लगा जब मैंने अपनी घड़ी में दोबारा वक्त देखा तो मैंने देखा कि अब मेरी घड़ी 5:00 बजा रही थी यानी सुबह हो चुकी थी मगर अब मुझे नींद इतनी बुरी तरह से आ रही थी कि मेरी पलकें उठने का नाम ही नहीं ले रही थी मैं नींद की आगोश में कब चला गया मुझे पता ही नहीं चला थोड़ी ही देर के बाद मेरी आंख लगी ही थी कि फिर दोबारा दरवाजा पीटने की आवाज से आई
मैं बहुत गहरी नींद में सो रहा था मैंने गुस्से दरवाजे की तरफ देखा और मन ही मन सोचने लगा कि अब कौन आ गया क्या आज रात मुझे चैन मिलेगा कि नहीं मिलेगा
सोचा था कि एक 2 घंटे सो लूंगा..मगर फिर कोई आ गया
फिर ज़ेहन में सवाल आया हो सकता है कोई मरीज हो
मैं उठकर दरवाजे की तरफ गया और मैंने दरवाजा खोल दिया मगर जैसे ही मैंने दरवाजा खोला मैंने देखा सामने मेरे सामने वही मेरे अस्पताल का कर्मचारी मोहनलाल खड़ा हुआ था मैंने अपनी आँखे मसलते हुए मोहनलाल से पूछा
अब क्या हुआ मोहन लाल
मैंने देखा मोहनलाल का चेहरा इस बार घबराया हुआ नहीं था बल्कि बिल्कुल सपाट था
डॉक्टर साहब किसी की तबीयत खराब है तो उन्होंने आपको इमरजेंसी में अपने घर पर बुलाया है
मैं मोहनलाल की बात सुनकर मोहनलाल को गुस्से भरी नजरों से देखने लगा
क्या बात कर रहे हो तुम किस की तबीयत खराब है... किस ने बुलाया है मुझे...
मगर मेरे ऐसा बोलने पर मैंने देखा मोहनलाल के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा
मैंने देखा बाहर सुबह का उजाला हल्का हल्का फ़ैल चुका था मैंने कहा ठीक है मोहनलाल... चलो कहां चलना है
फिर मैंने भारी मन से ओवरकोट पहना क्योंकि मुझे नींद बहुत तेजी से आ रही थी और मैं मोहन लाल के पीछे पीछे चल दिया...फिर मैंने मोहनलाल से चलते-चलते पूछा कितनी दूर यहां से घर है उनका... मोहनलाल ने कहा डॉक्टर साहब बस यहां से मुश्किल से 10 या 15 मिनट का रास्ता है....
मोहनलाल के ऐसा कहने पर मुझे थोड़ा सुकून सा मिल गया क्योंकि इस वक्त मुझ में चलने की ताकत नहीं थी
मैंने देखा मोहनलाल एक कच्ची सडक कि तरफ मुड़ गया थोड़ी ही देर बाद मोहनलाल के साथ चलने पर मुझे एहसास हुआ कि वह बड़ी अजीबोगरीब जगह थी
मैंने मोहनलाल से पूछा..
मोहनलाल आस पास कोई रहता नहीं है क्या....
सुबह का वक्त है डॉक्टर साहब यहां के लोग देर से सोकर उठते हैं
मुझे मोहनलाल के ऐसे जवाब पर बड़ी हैरानी हुई क्योंकि मैं जानता था गाँव के लोग तो सुबह जल्दी ही उठ जाते हैं...मैं चारो तरफ देखता हुआ चल रहा था अजीब सा मोहल्ला था..
वो..कच्चे और पक्के दोनों तरह के मकान थे वहां पर.. मगर कोई भी बंदा नज़र ही नहीं आ रहा था..
....शेष अगले अंक मे....