मोहनलाल ने सही कहा था लगभग 15 मिनट के बाद हम लोग एक मकान के सामने खड़े हुए थे दूर से देखने में वह मकान बहुत ही पुराना मालूम होता था
मैंने मोहनलाल की तरफ देख कर कहा....
इस मकान में तो मुझे कोई नजर ही नहीं आता तुम तो कह रहे थे कि यहां पर कोई मरीज है मगर मुझे इस मकान में तो क्या यहां कोई आसपास भी अभी तक कोई नजर नहीं आया..
मोहनलाल ने फिर वही जवाब मुझे दिया....
डॉक्टर साहब मैंने आपसे कहा था ना कि यहां के लोग जल्दी सो जाते हैं और वह देर से उठते हैं रहा सवाल इस मकान में किसी के रहने का.. तो आप अंदर चलिए....अंदर एक मरीज लेटा हुआ है जो बहुत बीमार है...
फिर मैंने मोहनलाल से दरवाजे पर ही खड़े रहकर पुछा
एक बात और पूछूं तुम से मोहनलाल उस वक्त में नींद में था जिस वक्त मेरे घर पर तुम मुझे बुलाने के लिए आए थे क्या तुम इन लोगों को जानते हो क्योंकि इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ तुम मुझे किसी के घर पर लेकर आए हो...ज्यादातर गांव के बाशिंदे मेरे क्लीनिक पर या अस्पताल मे ही आ कर खुद को दिखाते हैं और अपना इलाज करवाते हैं
मोहनलाल ने मेरी बात सुनकर जवाब दिया...
डॉक्टर साहब आपकी बात बिल्कुल सही है मैं इन लोगों को जानता हूं.... दरअसल ये लोग मेरे मिलने वाले हैँ...
अच्छा यह बताओ मरीज को हुआ क्या है.....
यही तो समझ में नहीं आ रहा बस वो लेटा हुआ है ना वो कुछ बोलता है और ना किसी की तरफ देखता है उसका जिस्म ठंडा पड़ा हुआ है
मोहनलाल की बात सुनकर मैं मोहनलाल के चेहरे को गौर से देखने लगा पता नहीं क्यों... पर मुझे उस वक्त सब कुछ बहुत अजीब सा लग रहा था.....
ठीक है अंदर से किसी को बुलाओ तो सही क्या यही बाहर ही खडे रहोगे....मैंने जाम्हाई लेते हुए मोहनलाल से कहा ...
किसी को बुलाने की जरूरत नहीं है डॉक्टर साहब आप मेरे साथ चलिए मैं आपसे कह चुका हूं कि ये के लोग मुझे जानते हैं यह कहकर मोहनलाल ने उस मकान का दरवाजा खोल दिया और मकान के अंदर दाखिल हो गया... और उस के पीछे पीछे मैं भी...
मैंने अंदर जा कर देखा...बाहर से देखने में वह मकान बहुत ही पुराना मालूम होता था मगर अंदर से ठीक-ठाक बना हुआ था मकान के अंदर जाते ही मैंने देखा सामने दो कमरे बने हुए थे और एक कमरे में कुछ लोगों की बातो कि आवाजें आ रही थी मैं समझ गया कि मरीज वहीं पर है
मैं मोहनलाल की तरफ देखने लगा मोहनलाल ने फिर मुझे उस के पीछे की तरफ चलने का इशारा किया मैं मोहनलाल के पीछे पीछे चलने लगा
कुछ ही लम्हों के बाद मैं एक कमरे में मौजूद था मैंने वहां पर देखा एक बुजुर्ग बैठे हुए थे जिनकी सफेद दाढ़ी थी और वहां उनके पास दो तीन औरतें भी बैठी हुई थी लेकिन वह औरतें सब बुर्के में थी मैं समझ गया यह मकान किसी मुस्लिम का ही मकान है मैंने देखा वो औरतें खामोश बैठी हुई थी
वह उस चारपाई कि तरफ देख रही थी जहां पर मरीज को लिटाया गया था मरीज के मुंह पर एक कपड़ा ढका हुआ हुआ था
मैंने उन बुजुर्ग से पूछा क्या हुआ है इनको....
वह बुजुर्ग मेरी तरफ गौर से देखने लगे उनके देखने का अंदाज मुझे उस वक्त बहुत अजीब लगा उन कि आंखे बिलकुल सफ़ेद अंडे कि तरह लग रही थीं ऐसा लगता था कि उन कि आँखों मे पुतली जैसे हो ही न... उन को देख कर मुझे एक दहशत सी सवार होने लगी थी.. लेकिन मैंने अपने आप को संभाल लिया और अपनी कैफियत उनसे बयान नहीं की क्योंकि एक तो मैं थका हुआ था और ऊपर से नींद अभी भी आ रही थी
उन बुजुर्ग ने कोई मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया मैंने दोबारा उनसे पूछा...
हजरत क्या हुआ है इन्हें कुछ बताएंगे आप....
थोड़ी देर के बाद वह बोले आप खुद क्यों नहीं देख लेते
कि क्या हुआ है इसको.....
मैंने इससे आगे उनसे पूछना कुछ मुनासिब नहीं समझा जैसे ही मैंने मरीज के मुंह पर कपड़ा हटाने की कोशिश की तो उन बुजुर्ग ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक दिया
नहीं आप ऐसे ही देखिए क्या हुआ है इसको कपड़ा मुंह पर से नहीं हटाइए....
मैं बुजुर्ग की इस बात पर पूरी तरह से तिलमिला गया
मुझसे ना रहा गया मैं मोहनलाल की तरफ देखने लगा मुझे उनकी बात पर इस कदर गुस्सा आया कि मैं अपना आपा खो बैठा.....क्यों कि वैसे भी मैं बहुत थका हुआ था...
क्या बात कर रहे हैं आप आप ने मुझे क्या समझ रखा है मैं एक डॉक्टर हूं जब तक मैं मरीज को पूरी तरह से नहीं देखूंगा तो मैं पता कैसे लगा पाऊंगा कि इस को हुआ क्या है मुझे इसका चेहरा देखने दीजिए....
वह बुजुर्ग जिद पर अड़ गए नहीं इसका चेहरा आप नहीं देख सकते.....
मुझे उनकी बात पर फिर दोबारा गुस्सा आ गया
लेकिन दोबारा मैंने अपने गुस्से को ज़ब्त कर लिया ये सोच कर कि शायद मरीज़ कि हालत अच्छी नहीं हो.. और इन बुज़ुर्ग ने टेंशन ले ली हो..और टेंशन मे इस तरह से बोल रहे हों.. फिर मैंने मरीज का हाथ पकड़कर मैंने उसकी नब्ज चेक की जैसे ही मैंने मरीज का हाथ पकड़ा मेरे अंदर से सनाका निकल गया
वह मर चुका था मैं उधर उधर देखने लगा और बुजुर्ग मेरी तरफ देखने लगे.....
फिर मैंने बहुत ही धीमे अल्फाजों में बुजुर्ग से कहा
यह आपका कौन है.... क्या ये आप का बेटा है...
बुजुर्ग ने फिर मेरे सवाल का उल्टा जवाब दिया
तुम्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होना चाहिए कि यह मेरा कौन है या कौन नहीं है यह बताओ क्या यह ठीक हो सकता है उन के इस बर्ताव पर बुरी तरह से झुंझला गया
फिर मैंने खुलकर साफ अल्फाज़ो में कह दिया कि यह मर चुका है यह आपका कोई भी हो इस की नब्ज नहीं चल रही है और जहां तक मेरा अंदाज है इसको मरे हुए कम से कम 2 या 4 घंटे हो चुके हैं
मुझे लगा था कि मेरा ऐसा कहने पर बुजुर्ग थोड़े रोहाँसू हो जाएंगे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ...
वह मेरी बात सुनकर मुझे ही बहुत गौर से देखने लगे फिर मैंने उन औरतों की तरफ नजर दौड़ाई जो उस मरीज के पास बैठी हुई थी और सभी खामोशी से मुझे ही देख रही थी मुझे उन औरतों का अपनी तरफ देखना बहुत ही अजीब लगा मैंने मोहनलाल की तरफ नजर दौड़ाई मगर मैंने देखा मोहनलाल भी मुझे ही बहुत गौर से देख रहा था माजरा मेरी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था पता नहीं क्यों मेरे जिस्म मे एक दहशत सी सवार होने लगी मुझे ऐसा लगा जैसे के यहां पर कुछ भी सही नहीं है मैं कहीं गलत जगह आ गया हूं थोड़ी ही देर बाद बुजुर्ग मेरी तरफ देख कर बोले
अब तुम इसका चेहरा हटा सकते हो डॉक्टर साहब....
मैं बुजुर्ग की तरफ हैरानी और परेशानी के आलम में देखने लगा लेकिन मैंने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया
मैंने सोचा कि एक बार और नब्ज़ चेक कर ली जाये फिर मैंने उस मरीज की दोबारा नब्ज टटोली लेकिन वह मर चुका था फिर मैंने उसके मुंह पर से कपड़ा हटा दिया
जैसे ही मैंने उसके मुंह पर से कपड़ा हटाया
मेरे जिस्म मे जान ही निकल गई और मेरे होश फाख्ता हो गए मुझे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ
कि ऐसे कैसे हो सकता है क्या यह मेरा सपना है या हकीकत लेकिन वह सपना नहीं हकीकत ही लग रही थी जब मैंने उस मरीज के चेहरे से कपड़ा हटाया तो वहां सामने मेरा ही चेहरा था यानी कि मैं खुद को मुर्दा देख रहा था मेरे होश फाख्ता हो गए और मुझसे रहा नहीं किया
और मैंने चीखते हुए बुजुर्ग की तरह मुखातिब होकर कहा यह क्या बकवास है..... ये क्या हो रहा है कौन हो तुम लोग....
मेरी बात सुनकर बुजुर्ग मुझे देख कर मुस्कुराने लगे और बहुत ही तेज आवाज़ मे मुझसे बोले
तुम्हें दिख नहीं रहा यह तुम ही लेटे हो... यह तुम ही हो....अचानक मेरा वहां पर दम घुटने लगा मुझे ऐसा लगा जैसे कि मेरी सांस रुक रही है और मुझ पर बेहोशी सी तारी होने लगी
मैंने मोहनलाल को आवाज लगाई लेकिन मैंने देखा मोहनलाल सपाट चेहरा लिए मुझे ऐसे देख रहा था जैसे कि उसे मुझसे कोई मतलब ही ना हो जैसे कि मैं उसके लिए अनजान हूं
कड़ाके कि ठंड मे मेरे पसीने की धारा बहने लगी और मैं घुटनों के बल गिर गया फिर मेरी दोबारा फिर मेरी निगाह उस मरीज पर पड़ी तो मैं एक बार फिर मै कांप कर रह गया वो यकीनन मेरा ही चेहरा था अगर वह जिंदा होता तो हूबहू बिल्कुल मेरी ही तरह होता मुझ पर बेहोशी छा रही थी और मैं अपना होश खो रहा था फिर अचानक मैं जमीन पर गिर गया.... और मुझे कुछ भी होश नहीं रहा...
थोड़ी ही देर बाद मेरे कानों में एक आवाज गूंजी
डॉक्टर साहब डॉक्टर साहब उठिए दोपहर के 12:00 बज गए हैं आपकी तबीयत तो ठीक है ना
अचानक मेरी आंख खुल गयी और मैं अपना हड़बड़ा कर उठ बैठा
मगर यह क्या.... मैंने देखा...कि मैं अपने ही कमरे पर ही मौजूद था अपने ही बेडरूम में लेटा हुआ था
फिर दोबारा आवाज आई डॉक्टर साहब डॉक्टर साहब उठिए ना.. मैं उस आवाज को पहचानता था यह आवाज किसी और की नहीं बल्कि मेरे दूध वाले की थी जो अक्सर सुबह दूध देने आता था मैंने देखा कि मैं पसीने पसीने हो रहा था मैंने उठकर झट से दरवाजा खोला तो सामने दूध वाला ही खड़ा था वह मुझे देखकर कहना लगा डॉक्टर साहब मैं सुबह भी आया था लेकिन आप सो रहे थे फिर मुझे लगा कि शायद रात रात को आप कोई मरीज वगैरा देखने निकल गए होगे आपकी नींद पूरी नहीं हुई होगी इसलिए मैं दोपहर को दूध लेकर आया हूं...
मैंने उसके हाथों से दूध का पैकेट ले लिया और फिर से अपने कमरे की तरफ देखने लगा
दूध का पैकेट रख कर मैं कुर्सी पर बैठ गया और सोचने लगा कि अभी कुछ देर पहले जो मेरे साथ हुआ था.. वो क्या था...क्या वह सपना था या हकीक थी ......
घड़ी की तरफ मैने निगाह दौड़ाई तो वो दिन के 12:00 बजा रही थी
मैंने एक ऐसा सपना देखा था...जिसने मुझे अंदर तक झींझोड़ कर रख दिया था..
मैंने देखा कि मेरा बदन अभी भी डर से कांप रहा था फिर मैंने खुद को नार्मल किया और नहाने के लिए चला गया नहाने के बाद मैंने अपने लिए चाय बनाई और बाहर बैठकर चाय पीने लगा हवा ठंडी चल रही थी मैं अभी भी अपने उसी सपने के बारे में सोच रहा था जो बिल्कुल हकीकत जैसा था.... मैं सोच रहा था कि कैसा सपना था बिलकुल हक़ीक़त कि तरह....
फिर मैं अस्पताल की तरफ चल दिया...
अस्पताल पहुंचने के बाद मैंने देखा मोहन लाल दरवाजे पर ही खड़ा था
वह मुझे देखकर पूछने लगा डॉक्टर साहब आज तो बहुत देर तक सोये आप... और सोते भी क्यों नहीं रात भर आप जागे थे... आप वाकई बहुत अच्छे आदमी हो डॉ साहब... वरना रात मे बहुत से डॉक्टर अक्सर मरीज़ो को भगा देते हैँ....
मैं उसे देख कर उसके पास ही आ गया....
फिर वह मुझसे बोला आज सुबह से कोई भी पेशेंट नहीं आया डॉक्टर साहब इसलिए हमने आपको जगाना सही नहीं समझा आप रात भर के जागे थे आपके चेहरे से थकान भी साफ साफ झलक रही है
मैं मोहनलाल को गौर से देख रहा था मैं सोच रहा था कि मोहनलाल से कुछ पूछूं या ना पूछूं...
मेरा दिल एक अजीब सी कशमकश का शिकार था फिर मैंने मोहनलाल से पूछ ही लिया...
मोहनलाल... क्या तुम सुबह के वक़्त मेरे पास आए थे
मेरे इस सवाल पर मोहनलाल मुझे गौर से देखना लगा...
फिर वह कुछ सोच कर बोला
सुबह-सुबह तो नहीं आया डॉक्टर साहब..हां रात में मैं आपके पास आया था जो एक पेशेंट आया था जो एक लड़की थी आप को दिखाने के लिए उसके बाद मैं चला गया था
सुबह के वक़्त मैं आपके पास नहीं आया.....
क्या कोई खास बात..
उसने मुझसे पूछा मैंने उसकी तरफ देख कर मना कर दिया
नहीं बस मुझे लगा कि शायद सुबह किसी ने दरवाजा खटखटाया था और वह शायद तुम ही हो.....
मेरी बात सुनकर मोहनलाल हंसने लगा
नहीं डॉक्टर साहब आपको जरूर कोई वहम हुआ होगा मैं सुबह आपके पास नहीं आया बल्कि मैं तो खुद सुबह 9 बजे सो कर उठा हूं...आप रात भर के थके हुए थे डॉ साहब नींद में अक्सर कभी कभी कभार ऐसा धोखा हो जाता है....
तुम ठीक कहते हो मोहन लाल शायद मेरा वहम की होगा मैंने जबरदस्ती मुस्कुराते हुए मोहनलाल की तरफ देख कर कहा
मैंने खुद को नार्मल दिखाने की एक कामयाब कोशिश की... मोहनलाल भी मुझे मुस्कुराता देख कर खुद भी मुस्कुराने लगा फिर मैंने उसे टालने के लिए कहा
मेरे केबिन में चाय भिजवा देना मोहनलाल...
मुझे इस वक्त चाय की बहुत तलब महसूस हो रही है
मेरा ऐसा कहने पर मोहनलाल खुश हो गया...
ठीक है डॉक्टर साहब...आप अपने केबिन में चलिए मैं अभी आपके लिए आपकी पसंदीदा बढ़िया वाली चाय बनवा कर ले कर आता हूं...
यह कहकर मोहनलाल वहां से चला गया
और मैं मोहनलाल को जाते हुए देखने लगा सच तो यह है कि मेरे दिमाग में बहुत से सवाल चल रहे थे जो सपना मैंने कुछ देर पहले देखा था उस सपने ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया था...
फिर धीरे-धीरे कदमों से मैं अपने केबिन की तरफ चला गया और अपने केबिन में बैठकर फिर से उसी सपने के बारे में सोचने लगा...
अजीब सपना था बिल्कुल हकीकत की तरह... फिर मैंने अपने आप को नार्मल करने की कोशिश की....और अपने दिमाग में आ रहे ख्यालों को झटक दिया यह सोच कर फिर मैंने अपने आपको समझाया कि मैं खामखां इतना परेशान हो रहा हूं वो सिर्फ एक सपना ही तो था...
हकीकत तो यह है कि मैं इस वक्त अपने केबिन में बैठा हुआ हूं मैं यह सब बातें सोच ही रहा था कि मोहनलाल मेरे सामने चाय लेकर हाजिर हो गया
मैंने मोहनलाल के हाथ से चाय ले ली और चाय कि चुस्कीयां लेने लगा चाय वाकई बहुत ही अच्छी बनी थी मोहनलाल मेरे लिए चाय बहुत ही अच्छी बनवा कर लाया करता था मैं आराम से बैठ कर चाय पीने लगा और मोहनलाल मेरे सामने खड़ा था मैंने मोहनलाल से पूछ ही लिया...क्या बात है मोहनलाल ऐसा लगता है जैसे कि तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो....मोहनलाल मेरी तरफ देखकर हंसने लगा बाबूजी मुझे ₹100 की जरूरत है मोहनलाल अक्सर मुझसे पैसे मांग लिया करता था और मैं मोहनलाल को खुशी-खुशी पैसे दे देता था क्योंकि वह मेरे बहुत से काम भी करता था...
ठीक है मोहनलाल.... फिर अचानक मुझे याद आया कि कल नादिया के बाप ने मुझे अंधेरे में कुछ पैसे दिए थे फिर मैंने सोचा देखते हैं कितने पैसे थे मैंने कोट की जेब मे हाथ डाला वह पैसे अभी भी वैसे ही गुड़ी मुड़ी जेब मे रखे हुए थे जैसे नदिया के बाप ने मुझे हाथ में थमा दिए थे मैंने उन पैसों को जेब मे रख लिया था..
मैं वो पैसे निकाल कर गिनने लगा...मेरी हैरत की इंतहा नहीं रही वह पूरे 10 नोट थे...वो भी 100 100 के.... नोट...उस वक्त ₹1000 बहुत अहमियत रखते थे मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि नादिया का बाप देखने में तो बहुत ही ज्यादा गरीब मालूम होता था..एक गरीब आदमी इतने पैसे नहीं दे सकता मैंने उसमें से ₹100 निकालकर मोहनलाल को दे दिए और मोहनलाल वहां से चला गया
और मैं कुर्सी पर बैठे बैठे यही सोचने लगा कि ये सब क्या हो रहा है....
शेष अगले अंक मे