बसते हैं सपने शहरों में
अपने बसते हैं गांवों में
तन तो धूप में जलता है
मन जलता है छांव में
बसते हैं सपने शहरों में...............
खेत,खलिहान और बागों की
रौनक गांव में होती है
धूल उड़ाती मोटर गाड़ियां
सपने शहरों में ढोती है
हर गांव से इक पगडंडी
देखो जाती है शहरों में
लेकिन लौट सड़क कोई
कभी वापस न आती गांवों में
बसते हैं सपने शहरों में...............
चाचा,ताऊ,दादा,मामा
रिश्ते अनेकों होते हैं
करते चांद -सितारो से बातें
जब बिछा खाट सब सोते हैं
शहरों में बस अंकल का
इक सम्बोधन होता है
डैडी,माॅम,डूड जैसा
अजीब उद्बोधन होता है
इक खरोंच पर पट्टी,बैंडेज
शहरों में ही होता है
यहां इक फूंक और सूखी मिट्टी
टीस मिटाती घावों में
बसते हैं सपने शहरों में...............।।