shabd-logo

शहर-गांव

12 नवम्बर 2022

10 बार देखा गया 10

बसते हैं सपने शहरों में
अपने बसते हैं गांवों में
तन तो धूप में जलता है
मन जलता है छांव में
बसते हैं सपने शहरों में...............
खेत,खलिहान और बागों की
रौनक गांव में होती है
धूल उड़ाती मोटर गाड़ियां
सपने शहरों में ढोती है
हर गांव से इक पगडंडी
देखो जाती है शहरों में
लेकिन लौट सड़क कोई
कभी वापस न आती गांवों में
बसते हैं सपने शहरों में...............
चाचा,ताऊ,दादा,मामा
रिश्ते अनेकों होते हैं
करते चांद -सितारो से बातें
जब बिछा खाट सब सोते हैं
शहरों में बस अंकल का
इक सम्बोधन होता है
डैडी,माॅम,डूड जैसा
अजीब उद्बोधन होता है
इक खरोंच पर पट्टी,बैंडेज
शहरों में ही होता है
यहां इक फूंक और सूखी मिट्टी
टीस मिटाती घावों में
बसते हैं सपने शहरों में...............।।

सौरभ पाण्डेय की अन्य किताबें

5
रचनाएँ
कुछ बातें मन की
0.0
मन में आने वाले विचारों को कलमबद्ध किया है,आप पढ़ें और महसूस करें।।
1

मुक्तक

14 नवम्बर 2021
2
1
2

<p>जिंदगी में अब थोड़ा संभल रहे हैं हम</p> <p>लड़खड़ा कर ही सही लेकिन चल रहे हैं हम</p> <p>वक्त की इ

2

तकलीफों की दवाई

27 नवम्बर 2021
0
0
0

<p>जिस आंगन में खेला करते थे वहां अब जमी काई है<br> गांव भूलकर शहर में बसने वाले हर शख्स की यही सच्च

3

शहर-गांव

12 नवम्बर 2022
0
0
0

बसते हैं सपने शहरों में अपने बसते हैं गांवों में तन तो धूप में जलता है मन जलता है छांव में बसते हैं सपने शहरों में............... खेत,खलिहान और बागों की रौनक गांव में होती है धूल उड़ाती मोटर ग

4

सेमीफाइनल की हार

12 नवम्बर 2022
0
0
0

हार की तरह न हार हुई बेइज्जती फिर इस बार हुई कप वापस आएगा ऐसा सोचा था हमने टूटा सपना और उम्मीदें देखो फिर बेकार हुई।।

5

फुर्सत नहीं

12 नवम्बर 2022
0
0
0

ले सके दो पल चैन की सांसें इतना भी वक्त नहीं है ऐसी उलझी है जिंदगी खुद के लिए भी फुर्सत नहीं है पहले बड़े-बूढ़ों के आशीर्वाद से हो जाती थी मुरादें पूरी अब कितना भी कमा लें फिर भी घर में बरकत नहीं

---

किताब पढ़िए