shabd-logo

फुर्सत नहीं

12 नवम्बर 2022

9 बार देखा गया 9

ले सके दो पल चैन की सांसें इतना भी वक्त नहीं है
ऐसी उलझी है जिंदगी खुद के लिए भी फुर्सत नहीं है
पहले बड़े-बूढ़ों के आशीर्वाद से हो जाती थी मुरादें पूरी
अब कितना भी कमा लें फिर भी घर में बरकत नहीं है
इक उम्र थी जब नन्हे खिलौनों के लिए रोते थे घंटों
आज सब है हासिल पर अब खेलने की हसरत नहीं है
सुना है लोग खतों में निकाल कर रख देते थे कलेजा
मोबाइल के इस युग में खत लिखने की मोहलत नहीं है
दुनिया से नजदीक होने की फ़िराक में अपनों से हो गए दूर
सुना है लोगों को घर में ही अब बात करने की आदत नहीं है।।

सौरभ पाण्डेय की अन्य किताबें

5
रचनाएँ
कुछ बातें मन की
0.0
मन में आने वाले विचारों को कलमबद्ध किया है,आप पढ़ें और महसूस करें।।
1

मुक्तक

14 नवम्बर 2021
2
1
2

<p>जिंदगी में अब थोड़ा संभल रहे हैं हम</p> <p>लड़खड़ा कर ही सही लेकिन चल रहे हैं हम</p> <p>वक्त की इ

2

तकलीफों की दवाई

27 नवम्बर 2021
0
0
0

<p>जिस आंगन में खेला करते थे वहां अब जमी काई है<br> गांव भूलकर शहर में बसने वाले हर शख्स की यही सच्च

3

शहर-गांव

12 नवम्बर 2022
0
0
0

बसते हैं सपने शहरों में अपने बसते हैं गांवों में तन तो धूप में जलता है मन जलता है छांव में बसते हैं सपने शहरों में............... खेत,खलिहान और बागों की रौनक गांव में होती है धूल उड़ाती मोटर ग

4

सेमीफाइनल की हार

12 नवम्बर 2022
0
0
0

हार की तरह न हार हुई बेइज्जती फिर इस बार हुई कप वापस आएगा ऐसा सोचा था हमने टूटा सपना और उम्मीदें देखो फिर बेकार हुई।।

5

फुर्सत नहीं

12 नवम्बर 2022
0
0
0

ले सके दो पल चैन की सांसें इतना भी वक्त नहीं है ऐसी उलझी है जिंदगी खुद के लिए भी फुर्सत नहीं है पहले बड़े-बूढ़ों के आशीर्वाद से हो जाती थी मुरादें पूरी अब कितना भी कमा लें फिर भी घर में बरकत नहीं

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए