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तकलीफों की दवाई

27 नवम्बर 2021

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जिस आंगन में खेला करते थे वहां अब जमी काई है
गांव भूलकर शहर में बसने वाले हर शख्स की यही सच्चाई है
खाना कम था फिर भी सभी का पेट भर गया
गौर किया क्या मां ने आज फिर अपनी भूख दबाई है
आज भी शाम को मां की गोद में सर रख लेट जाता हूं
दिन भर की थकान और तकलीफों की यही दवाई है।।

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