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इश्क़ का ओटीपी...! (भाग एक)

7 सितम्बर 2021

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इश्क़ का ओटीपी....! (भाग एक)


कक्षा 12वी की परीक्षा देकर सोनिया छुट्टियों के उन दिनों को व्यतीत करने अपनी बड़ी बहन के पास पुणे चली जाती है। नया शहर, नए लोग ,नयी अभिलाषा और ढेर सारी मौज मस्ती। सोनिया के छुट्टियों का यह दिन पिछले कई छुट्टियों से कई गुना बेहतर था पर फ़िर भी वह संतुष्ट नहीं थी। क्योंकि आज का दौर ही ऐसा है कि हर इंसान की ज़िंदगी में सच्चा प्रेम हो या ना हो, उसे प्रेम की ज़रूरत हो या ना हो, पर शौखिया तौर पर "वफ़ा एं ज़िंदगी" का लुत्फ़ सभी को उठाना है।
और इस शौकिया तौर पर वफ़ा ए जिंदगी का लुत्फ़ उठाने का एक जरिया जो उनके ताउम्र के हमसफ़र से पहले आने वाले अल्पकालीन हमसफ़र के रूप में होता है। अल्पकालीन हमसफ़र जिसे आज के दौर में बड़े ही रोमांचक नाम से पुकारा जाता है, बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड।
तो बस ऐसे ही एक अल्पकालीन नए हमसफ़र का इंतज़ार सोनिया को भी था जिस इंतज़ार को एक मुकम्मल आरज़ू बनाने के फ़िराक से वह पुणे आई थी पर उसकी ये आरज़ू बेकामिल ही अपने शहर जा रही थी क्योंकि मसला यह था कि सोनिया की बड़ी बहन सौम्या अपनी पढ़ाई पूरी कर के पुणे में जॉब कर रहीं थी और उनके फ्लैट पर रहने वाले उनके सारे दोस्त उनके हमउम्र और सोनिया से काफ़ी बड़े थे, जो सोनिया के साथ बड़े भाई की तरह पेश आते थे।
पुणे में करीब करीब एक महीने गुज़र चुके थे और आख़िरकार वह दिन भी आ गया जब करीब डेढ़ महीने बाद आज शाम की ट्रेन सोनिया के घर वापसी का इंतज़ार कर रही थी। सोनिया मौज मस्ती और नए अनुभव के ढ़ेर सारे यादों के साथ जा रही थी। मगर उसे कुछ खल रही थी और शायद यही कि वह दिल में एक हसरत और नज़रों में जो तलाश लेकर साथ आई थी और इस गैर शहर ने सोनिया को  उसकी इस हसरत और निग़ाहों में भरी तलाश के साथ सूद समेत वापस भेज दिया।

सोनिया अब अपने घर वापस सोनभद्र आ चुकी थी। बहुत दिन हो चुके थे, उसे अपने प्रिय सखी ज्योति से मिले। जिससे कि रोमिंग प्रॉब्लम की वजह से उसने उन डेढ़ महीनो में अच्छे से बात भी नहीं करी थी। वह घर आने के अगले ही शाम अपने प्रिय सखी ज्योति से मिलने उसके घर जाती है। जिसका घर सोनिया की फ्लैट के दाएं तरफ़ के ठीक नीचे वाला फ्लैट है।
सोनिया ज्योति के घर का बेल बजाती है पर दरवाज़ा ज्योति नहीं, ज्योति के दूर के भाई शुभम खोलते हैं, जो कि पिछली रात ही मेरठ से छुट्टियों का दिन व्यतीत करने अपनी दूर की मौसी (ज्योति की मां) यानि ज्योति के घर आये थे। दरवाज़ा खोलते ही शुभम की निगाहें उस 5 फुट 4 इंच की लंबाई लिए, लंबे बालों वाली, गेहुआँ रंग बदन, छोटे से चेहरे पर चंचलता के बूंदों से उभरती सोनिया पर ठहर जाती है।
शुभम के देखने के इस अंदाज़ से सोनिया की भी निग़ाहें लगभग 5 फुट 8 इंच के हेल्थी बॉडी व सांवले सलोने से गोल चेहरे पर थम गई।

"अरे सोनिया!" ज्योति ने मुस्कुराते हुए कहा। 
"अच्छे वक्त पर आई हो अभी कुछ देर पहले मम्मी पापा से तुम्हारी ही बात चल रही थी। तुम मम्मी पापा‌ से बात करो मैं चाय लेकर आती हूं।"

सोनिया के घर में प्रवेश लेते ही ज्योति के मम्मी पापा द्वारा सोनिया के हाल-चाल वह पुणे में गुज़रे हुए दिनों से संबंधित बातें होने लगी इसी बीच ज्योति चाय-नाश्ता लेकर आती है। अपनी मम्मी-पापा व छोटे भाई रोहन को चाय नाश्ता देते हुए, वह दूसरे छोटे से कमरे में  सोनिया को आने का इशारा करती है।
"और बताओ कैसी हो सोनिया" ज्योति ने हाल चाल लेते हुए पूछा।

"बिल्कुल बढ़िया.. तुम बताओ कैसी हो?"

"मैं भी बिल्कुल ठीक हूं। और कैसी रही पुणे की यात्रा?"

"बहुत अच्छी। नए अनुभव प्राप्त हुए और जगह भी काफ़ी बढ़िया है। घूमने लायक है। मैं तो कहती हूं वक्त मिले तो कभी तुम भी जाना।"

"हां हां क्यों नहीं जरूर" ज्योति ने हंसते हुए कहा।

"और तुमने इन दिनों क्या किया?" सोनिया ने पूछा।

"कुछ नहीं यार ..बस अच्छी कुकिंग सीख ली है और करने को था भी क्या!" ज्योति ने बोला।

"वाह जी वाह क्या बात है। फ़िर तो कल से मेरा हर शाम का नाश्ता पक्का हुआ।" सोनिया ने मस्ताने अंदाज़ में कहा।

"बेशक़" ज्योति मुस्कुराते हुए।

"सरिता कैसी है ? कल से मैंने अब तक उसे नहीं देखा। मोहतरमा यहां हैं भी या गांव गई हैं!" सोनिया और ज्योति की तीसरी गहरी दोस्त जिसके बारे में सोनिया ने पूछा।

"बिल्कुल ठीक है। कल ही मेरी बात हुइ थी। फ़िलहाल गांव है। देखो बोला तो है उसने कि जल्द ही आएगी। तुम दोनों का बढ़िया है, अपनी छुट्टी सफल कर ली दोनों ने। मुझको देखो जहां की तहां धरी पड़ी हूं। काश! मैं भी कहीं आउटिंग पर जा पाती।" ज्योति ने अपनी मनोव्यथा सोनिया के समक्ष रखी।


"तो मुझे समझ नहीं आया इसमें इतनी बिचारी सी महसूस करने वाली कौन सी बात है भला? और फ़िर तुम्हारा गांव भी लगभग नज़दीक ही है। ज्यादा कुछ नहीं तो कम से कम गांव से ही हो कर चली आती। थोड़ा मिजाज़ बदल जाता।" 

"असल में इस दो-तीन महीने पापा छुट्टी नहीं ले सकते। प्लान्ट में कुछ ठीक नहीं चल रहा। और अकेले मैं जाती हूं तो मम्मी पर पूरी जिम्मेदारी पड़ जाएगी। इस हिसाब से इन छुट्टियों में तो कहीं जाना संभव नहीं है।"

ज्योति का ध्यान एका-एक खामोश बैठे शुभम पर जाती है।
"ओह...हम लोगों के बातों के चक्कर में शुभम भाई बोर हो रहे हैं, और चाय भी ठंडी पड़ रही है।'
क्यों भाई आप चुप क्यों हैं? कुछ आप भी पूछ लीजिए। सोनिया मेरी बहुत अच्छी और पुरानी दोस्त है।" ज्योति ने शुभम से कहा।

शुभम ज्योति को चाय  देते हुए... "जी नहीं मैं बोर नहीं हो रहा। मैं तो सोच रहा हूं कि बातों के सिलसिले में मसरूफियत इतनी है कि चाय का ख्याल तक नहीं।  चाय भी बिचारा सोचता होगा कि उफ्फ़ मैं भी किसके हिस्से लग गया।" कहते हुए, चाय का एक कप शुभम ने सोनिया की तरफ़ भी बढ़ाया ।

सोनिया शुभम की ओर देखते हुए गर्दन नीचे की और ज़रा सा झुका कर मुस्कुराती हुई, शुक्रिया कहती है। 

"अब शाम हो गई। घर पर मां इंतज़ार कर रही होगी, तो मैं अब चलती हूं। समय मिले तो तुम भी आना।"

सोनिया जाते जाते एक बार निग़ाह उठाकर शुभम की ओर देखती है। इत्तफ़ाक से शुभम भी सोनिया को देख रहा होता है। फिर शरमा कर झट से अपनी निगाहें फेर लेती है और मन में सोचती है, उफ्फ् मैं भी कितनी बेवकूफ हूं। इस तरह से उनकी तरफ़ देखा वह मेरे बारे में क्या सोचते होंगे ...क्यों देख रही है यह मुझे? लेकिन वो... वो भी तो मुझे देख रहें हैं, वो मुझे क्यूं देख रहें हैं?। सोनिया मन में ही अनायास बड़बड़ा रही थी।

पर जब सोनिया जाने लगी तो शुभम ने उसकी तरफ़ देख कर कहा, 
"आपसे मिलकर अच्छा लगा। बाय! वक्त मिले तो  फ़िर से आइएगा।"

सोनिया की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा वह ख़ुद नहीं समझ पा रही थी। आज तक उसने इतने लोगों से मिला कभी ऐसा ना हुआ फ़िर पहली मुलाक़ात में शुभम के महज इतना कह देने पर कि "आपसे मिलकर अच्छा लगा" उसे इतनी ख़ुशी महसूस क्यों हो रही है।

फ़िर सोनिया ने भी झट से ऐसे पूछ लिया मानो दोबारा वक्त मिले ना मिले तो ज़ेहन में जो है, ज़ुबान पर ला ही देते हैं। उसने मुस्कुराकर हिचकिचाते  हुए पूछा..."जी जी आपने तो कुछ बात ही नहीं किया मुझसे, फ़िर मिलकर कैसे अच्छा लगा..?

 शुभम ने निग़ाहें चुराते हुए कहा, "जी हम पहली दफ़ा मिले हैं, अब अगली बार आइएगा तो अच्छे से बातें करेंगे।"

"जी बिल्कुल" सोनिया प्रत्युत्तर में कहते हुए अपने फ्लैट की तरफ़ चलने लगी थी। उसकी धड़कन कुछ तेज मालूम हो रही थी। अंदर एक अलग ही ख़ुशी का एहसास दौड़ रहा था और चेहरे की चमक भी तो कुछ अलग नज़र रही थी। जैसे दिल की कोई पुरानी हसरत और निगाहों की कोई एक लंबी तलाश खत्म होती नज़र आ रही हो । पर इस अनजान सी ख़ुशी ने सोनिया के ज़ेहन में कुछ इस कदर हलचल मचा रखी थी कि उसने ध्यान ही नहीं दिया कि दिल की जो हसरत और निग़ाहों में तलाश लेकर वो पुणे गई थी,
वह हसरतें और तलाश उस गैर शहर में नहीं बल्कि उसके अपने ही शहर में उसका इंतज़ार कर रही थी। सोनिया को घर पहुंचे अभी एक घंटे भी नहीं हुए थे। वह मात्र एक मुलाक़ात से क्यों इतना खुश है। इस बात का सबब तो उसे नहीं पता पर इतना तो अच्छे से समझ चुकी थी कि ज्योति के घर शायद उसे कुछ देर और ठहरना चाहिए था ।
सोनिया को कभी जल्दी खाने की आदत नहीं थी और आज तो इस अनजान सी ख़ुशी में उसके पेट में भूख की हाज़िरी भी ना लगने दी थी। पर फ़िर भी वह आज जल्दी नहीं बहुत जल्दी 8:30 बजे ही फटाफट रात का खाना खा लेती है। क्योंकि हमेशा की तरह रात के 9:00 से 10:00 बजे खाना खाने के बाद ज्योति और उसके छोटे भाई रोहन के साथ उसे टहलने की आदत जो थी। वह खाना खा कर बेसब्री से ज्योति के टेक्स्ट मैसेज का इंतज़ार करती है जिसमें यह लिखा मिलता कि, "बाहर आ जाओ मैंने भी खाना खा लिया है। अब टहलने चलते हैं।" 
9:00 से 9:05 हो गए थे और यह महज़ 5 मिनट की देर  सोनिया के लिए आधे घंटे की देर सी मालूम हो रही थी। बार-बार कभी टेक्स्ट मैसेज चेक करती, कभी कॉल तो कभी व्हाट्सएप पर, लेकिन ज्योति ने अब तक कोई मैसेज नहीं किया था। सोनिया परेशान होने लगी और सोचने लगी कि कहीं ऐसा तो नहीं... कि शुभम के आ जाने से ज्योति आज टहलने ही नहीं आयेगी। हां मोटी और कर भी क्या सकती है, घर में कोई भी मेहमान आ जाए तो नाइट वॉक स्किप कर देना तो इसकी पुरानी आदत है। जैसा भी हो कम से कम बताना तो था न। 
मैं खुद ही कॉल करके कंफर्म कर लेती हूँ।"

सोनिया जैसे ही ज्योति को कॉल करने जाती है, ज्योति का टेक्स्ट मैसेज आता है। जिसमें वह सोनिया को टहलने के लिए बाहर बुलाती है। अब तो सोनिया की  ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता है। ज्योति के एक टेक्स्ट मैसेज ने इतनी ख़ुशी दी जैसे ज्योति ने उसे टहलने के लिए नहीं, जॉब जॉइन करने के लिए बुलाया हो। 
सोनिया जैसे ही घर से बाहर निकलती है, उसे ज्योति और ज्योति के छोटे भाई रोहन के साथ अंधेरे में एक और शख्स मालूम पड़ता है। वो समझ जाती है कि वह शुभम ही है। बड़ी जल्दी में सीढ़ियों से नीचे उतरकर उनके साथ टहलने निकल गई। 
उस 9 से 10 के एक घंटे में सोनिया और शुभम के बीच उन दोनों के हालचाल, नाम, एजुकेशन, आगे की स्टडी, कैरियर, बैकग्राउंड से संबंधित बहुत सी बातें हुई। 
अब रात के 10:15 हो रहे होते थे, पर सोनिया और शुभम दोनों को ही रूम पर जाने का मन नहीं था। दोनों ही चाह रहे थे कि इसी कदर दोनों की बातें ज़ारी रहें। पर अब जाना तो था ही...

सोनिया ने जाते-जाते कहा "ज्योति कल वक्त निकाल के रूम पर जरुर आना।"

ज्योति क्योंकि बचपन की दोस्त थी, सोनिया के चेहरे पर इस अलग से चमक का अंदाज़ा लगा चुकी थी। उसने मजे लेते हुए हंसकर कहा "अकेले आना है या साथ में....."

सोनिया ने शरमाते हुए कहा "अकेली नहीं साथ में आना।"

"किसके साथ रोहन के साथ... ठीक है, आ जाऊंगी।"
ज्योति सोनिया के बातों को समझ कर भी नासमझ बन रही थी।

सोनिया ने अपने मुस्कुराहट को नियंत्रण में करते हुए कहा "देख यार सबके सामने मत छेड़, बात को समझ। चलो अब मैं चलती हूं, वरना मम्मी परेशान हो जाएगी। बाय गुड नाइट।

जाते जाते फ़िर एक दफ़ा सोनिया शुभम की ओर देखती है, और शुभम के द्वारा किए गए बाय, गुड नाइट का ज़वाब सोनिया हसरत भरी निगाहों से देखते हुए मुस्कुरा कर दे गई।

सोनिया घर पर थी पर उसके दिल और दिमाग का कहीं और होना यह साफ़ ज़ाहिर कर रहा था कि अगर उसके पास शुभम का नंबर होता तो रूम पर पहुंचते ही उससे संपर्क करती, पर अफसोस की बात अभी वहां तक पहुंची ही नहीं थी, कि नंबर दिया और लिया जाए।
अब अगली सुबह हुई नहीं कि सोनिया को शाम का इंतज़ार होने लगा। बेशक होता भी क्यों नहीं ज्योति के साथ शुभम आज ही तो शाम को घर आने वाला था।
आज शाम को ज्योति का  मैसेज आया कि हम पांच मिनट में आ रहे हैं। यह मैसेज सोनिया की बेताबी को और बढ़ाने के लिए काफी था। ज्योति और शुभम सोनिया के घर आ गए। सोनिया ने मुस्कुरा कर दोनों को बैठने के लिए कहा। और शुभम से पूछती है, "आप कॉफी लेंगे या चाय क्योंकि ज्योति तो चाय लेती है।"

"मैं दोनों ही ले लेता हूं। आप कुछ भी बना सकते हैं, मेरे लिए अलग से परेशान होने की कोई जरूरत नहीं। "शुभम ने कहा।

"नहीं नहीं बिल्कुल भी नहीं परेशान होने वाली कौन सी बात है। आप बताएं तो सही कॉफी पीते हैं या चाय?"

"मैं लेता तो काॅफी हूं, लेकिन आप चाय ला दीजिए। मुझको कोई हर्ज नहीं।"

सोनिया तीनो के लिए कॉफी बना कर लाई।
तीनों ने साथ बैठकर कॉफी का लुफ़्त उठाया। शुभम सोनिया के कॉफी की बहुत तारीफ़ की। 
ज्योति मज़े लेते हुए व्यंग करती हैं। "भाई बस करो सोनिया ने सिर्फ़ कॉफी बनाया है, कॉफी पाउडर नहीं। वह तो मार्केट का है। अरे तारीफ़ ही करनी है, तो नेस्कैफे कि करो। नेस्कैफे पाउडर बनाने वाले कि करो।"

अब हर रोज कई मर्तबा किसी न किसी बहाने से मुलाक़ात के लिए सोनिया का ज्योति के घर जाना और हर शाम अक्सर शुभम का ज्योति के साथ सोनिया के घर आना एक आदत सी बन गई। इस तरह से आये दिन की मुलाकातों से शुभम और सोनिया आपस में काफी दोस्ताने हो गए थे। बात बात पर हंसी मज़ाक करना, हाई-फाई देना, छोटे मोटे नोक झोंक उनकी दोस्ती का एक हिस्सा हो चला था। अब दोनों एक दूसरे के बहुत करीब हो गए थे। मात्र 4 से 5 दिन की दोस्ती कुछ इस तरह की मालूम पड़ती है, जैसे चार-पांच दिन नहीं चार-पांच साल पुरानी गहरी दोस्ती हो।

शुभम और सोनिया दोनों ही एक दूसरे से फोन पर संपर्क करना चाहते थे पर सबसे पहले कौन पहल करें.. यह दोनों की समझ से बाहर था। अब जैसा कि हर दोस्ती या प्यार के पहलुओं में किसी शक्ति का श्रद्धा पर आकृष्ट होना ही मुनासिब लगता है। और लगे भी क्यों ना, "महान कवि जयशंकर प्रसाद' जी ने भी तो अपनी 'कामायनी' में इस बात का सुस्पष्ट विवरण किया है। कि, श्रद्धा का मनु पर नहीं बल्कि मनु का श्रद्धा पर आकृष्ट  होना ही उचित था। पुरुष शक्ति होता है और नारी ...श्रद्धा। एक बार शक्ति किसी भक्ति अर्थात श्रद्धा पर आकृष्ट हो सकता है। लेकिन भक्ति यानि कि नारी का पहले किसी शक्ति अर्थात किसी पुरुष पर आकृष्ट होना शोभा नहीं देता।
कुछ ऐसा ही हुआ सोनिया और शुभम के इस नए रिश्ते में, सोनिया चाहती तो थी पर संकोच में थी इसलिए उसने कोई पहल नहीं की । चार-पांच दिनों के नए नए ख़ूबसूरत से इस राब्ता को आगे बढ़ाने का पहला पहल शुभम ने किया। शुभम ने सोनिया को एफबी पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजा। अब क्योंकि सोनिया को भी बेसब्री से इंतज़ार था। जब शुभम की तरफ़ से एफबी पर यह  फ्रेंड रिक्वेस्ट आया तो उसने पूरा नाम तक नहीं पढा, और वह समझ गई कि यह शुभम ही है। उसने फ्रेंड रिक्वेस्ट को तुरंत एक्सेप्ट कर लिया।
रोज़ की मुलाकातें, फ़िर एफबी पर बातें, फ़िर कुछ ही दिनों में व्हाट्सएप कांटेक्ट भी शेयर हो गए। इन दोनों के दरमियां इस नए राब्ता में करीबी इतनी बढ़ चुकी थी कि इसे दोस्ती का नाम दे पाना महज़ काफ़ी नहीं लगता। अब शायद वक्त नज़दीक ही था कि सोनिया को भी इस बात का एहसास हो जाए कि उसके दिल की हसरत और आंखों की तलाश खत्म हो रही है। शुभम का प्यार उसके दिल में सांस ले रहा है।
एफबी पर बात करते दो दिन हुए थे, शुभम ने सोनिया से इस दोस्ती के कारवां को प्यार में तब्दील करने की गुज़ारिश कर डाली ।
सोनिया की धड़कनें बढ़ चुकी थी। लबों की मुस्कुराहट अपनी दायरे में ना थी। नज़रें कभी झुकती तो कभी उठती सी मालूम हो रही थी। रुह को सुकुन सा मिल रहा था। अब सोनिया का यह कहना कि, मुझे थोड़ा वक्त दो, मैंने इस बारे में सोचा नहीं है, मैं तुमको कभी उस नज़र से नहीं देखा है, भला यह सब बातें तो सपनों में भी नहीं सोच सकती थी। सोनिया का दिल-दिमाग-रूह तीनों बख़ूबी वाक़िफ थे कि उसके सिर्फ़ लबों पे नहीं दिल में भी एक ख़ूबसूरत 'हां' है। सोनिया ने शुभम को 'हां' कह दिया।
शुभम और सोनिया की मुलाकातें, देर तलक बातें, अपनी बालकनी से एक दूसरे को देर तलक देखना, सुबह की हर चाय बालकनी में आकर एक दूसरे से रूबरू होकर पीना इस कदर हर दिन इनका प्यार गहराता जा रहा था।

अब वो क्या है ना....ज़िंदगी का पहला प्यार सुबह की पहली चाय सा होता है। जैसे सुबह की चाय हलक से उतरते देर नहीं लगती। ठीक वैसे ही ज़िंदगी का पहला प्यार दिल में उतरते देर नहीं लगता। जैसे सुबह की चाय हमें दिनभर के काम के लिए एक ताज़गी प्रदान करती है, ठीक वैसी ज़िंदगी का यह पहला प्यार हमें ज़िंदगी को खूबसूरत तरीके से जीने का एक महत्तर सबब प्रदान करता है। अब रोज़ाना सुबह की चाय के साथ साथ ज़िंदगी का यह प्यार रूपी चाय हलक यानी दिल पर अपनी गहरी छाप छोड़ कर रूह तक उतरता ही जा रहा था। दोनों के दरमियां प्यार दिनों दिन बढ़ता जा रहा था। एक दूसरे के साथ बाहर घूमने जाना, वक्त बिताना, एक दूसरे से बातें करना बहुत अच्छा लगने लगा था। दोनों ही इस नए प्यार की नई उमंग में इतना मशरूफ हो चुके थे। कि ख़बर होते हुए भी दोनों बेखबर थे कि शुभम का इस क्षेत्र में बस कुछ दिनों का ठहराव था, ताउम्र का बसेरा नहीं।
अब दोनों का एक दूसरे को रूठना मनाना, बखुबी प्यार जताना, एक दूसरे को नया नया निक नेम देना लगा रहता था। दोनों को ही प्यार जताने के बीच किसी भी प्रकार का अड़चन अब रास नहीं आता।
पर अब जो लाज़मी है, वह मुनासिब भी हो या ना हो पर हो ना तो है ही, क्योंकि वो लाजमी है। और शुभम सोनिया के इस क्षेत्र में एक मेहमान मात्र ही तो था। 

आज शुभम का आख़िरी दिन था। आज शाम 4:00 बजे की ट्रेन उसे सोनभद्र से मेरठ ले जाने को तैयार थी।
शुभम के जाने की ख़बर से वाक़िफ होते ही सोनिया इतनी तकलीफ़ में डूब गई, मानो शुभम  सोनभद्र से वापस नहीं उसकी ज़िंदगी से जा रहा हो, और देखा जाए तो सोनिया की ये तकलीफ़  कुछ हद तक जायज़ भी थी।
वह क्या है न.... पहला प्यार ज़रा गंभीर और सुकुवार होता है। पहले प्यार में इंसान ज़रा भी ज़ख्म बर्दाश्त नहीं करता, अब चाहे वो ज़ख्म पायाब ही क्यूं न हो।
पहला प्यार किसी कमबख्त से हो, या हमदर्द से, पर होता बेशुमार है। तनिक सी जुदाई विरह से मेल करा देती है।
सोनिया शुभम के कांधे पर अपना सर रखे उसे अपने बाजुओं में भरे आहे भरती हुई खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी। सोनिया आंखों में आंसू लेकर मध्यम सी आवाज़ में शुभम से पूछती है, "अब कब आओगे?"

शुभम आसमान की तरफ़ देखते हुए कुछ आधे अधूरे शब्दों में धीरे से कहता है, "पता नहीं खुदा जाने।"

सोनिया शुभम के कांधे से झटके में सर हटाते हुए, चौक कर पूछती है, "क्या? यह क्या कह रहे हो, अब एक पल भी तुम्हारे बिना मुस्कुराना गवारा नहीं लगता। तो क्या चाहते हैं कब तक ना मुस्कुराऊं...?"

"हां सोना.. समझने की कोशिश करो मैं आज तीन साल बाद आया हूं। अब कब आऊंगा इस बारे में कुछ नहीं कह सकता। मैं तुम्हें झूठी दिलासा दे तो दूं... पर एक वादा तोड़ने का इल्ज़ाम लेने से कोई फ़ायदा नहीं।" शुभम सोनिया को समझने की कोशिश करता है।

सोनिया झल्लाते हुए कहती है, "साफ-साफ कहो ना वहां भी कोई इंतज़ार कर रही है तुम्हारा।"

"सोना,  पागलों जैसी बातें मत करो मेरा पहला प्यार तुम हो। और रब को खबर है, आख़िरी भी तुम ही हो।"

"हां तो मैं कुछ नहीं जानती, तुम दशहरे की छुट्टियों में आ रहे हो बस।"

"समझने की कोशिश करो सोना... दशहरे की कुछ दिनों की छुट्टियों में मेरा यहां आना बिल्कुल भी संभव नहीं है। इस बार मुझे घर जाना होगा। इतनी जल्दी फ़िर यहां आने  की बात पर मैं मां को क्या कहूंगा!"

"क्या! इतनी जल्दी...दशहरा आने में अभी पूरे 6 महीने वक्त हैं। यह जल्दी तो नहीं हुआ। मैं तुम्हें कौन सा अगले ही महीने बुला रही हूं।"

"सोना समझने की कोशिश करो प्लीज़! मेरे बिना तुम्हारा ही रहना मुश्किल नहीं , अब मुझे भी तुम्हारी आदत हो गई है। जितनी तकलीफ़ तुम्हें हो रही है, शायद उससे कहीं ज्यादा मुझे। क्योंकि तुम्हें दोस्तों के साथ घूमना, फिरना बातें करना अच्छा लगता है। पर मैं हर किसी के साथ घुल मिल नहीं पाता। मैं अपने ही दोस्तों से बहुत कम बातें करता हूं।
तो प्लीज़ मेरा जाना और भी मुश्किल मत करो। समझने की कोशिश करो सोना।"

सोनिया अपनी तकलीफ पर व्यंगात्मक रूप से हंसते हुए शुभम से कहती है, "शुभ, यह प्यार का पहलु एक पहेली सा लगता है। आज से एक महीने पहले मैं कितनी बिंदास, बेफिक्र रहती थी। मुझे हंसने के लिए किसी ख़ुशी की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। खुश होने के लिए कोई सबब नहीं ढूंढती थी। ज़िंदगी से कभी कोई शिकायत नहीं रहती थी। और आज देखो मुझे मेरी खुशी, गम , मुस्कुराहट, मायूसी, ज़िंदगी इन सब का सबब फकत यह प्यार का पहलू बन गया है। 
शुभ मैंने ज़िंदगी और खुद को और खुशमिजाज बनाने के लिए इस प्यार को अपनाया था, लेकिन हमें कहां खबर था, ख़ुशी के साथ गम भी मुफ़्त में मिलता है।"
सच कुछ सोच कर ही कहा होगा किसी ने-

                अगर जोड़ना चाहते हो नाता
               अपनी फुर्सत से मसरूफियत का,
               तो किसी से इजहार-ए-इश्क़ कर लो।
               अगर चलती सांसों में भी...
               चाहिए एहसास इंतकाल का,
               तो होते हुए भी मोहब्बत उनसे
              उनका हिज्र कुबुल कर लो।।"

......क्रमशः





Manish Kumar Shukla

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सामाजिक दायरों में बंधी हुई प्रेयसी के भावों का अद्भुत विश्लेषण

23 सितम्बर 2021

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आपकी काव्‍य कुशलता उत्‍तम है। आपके उत्‍तम सफल साहित्यिक भविष्‍य के लिए शुभकामनाएं।

7 सितम्बर 2021

आंचल सोनी 'हिया'

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7 सितम्बर 2021

आदरणीय, आपका बहुत बहुत आभार।💐🙏🏻

4
रचनाएँ
इश्क़ का ओटीपी...!
5.0
"इश्क़ का ओटीपी" एक ऐसी कहानी प्रस्तुत करेगा, जो विश्वशनीय व सात्विक प्रेम को ना दरसा कर... प्रेम के बदलते स्वरूप अर्थात आधुनिक प्रेम को पेश करेगा। आज की तारीख का वह रिश्ता जिसकी शुरुआत दोस्ती से हो कर प्यार तक का सफ़र तय कर वापस दोस्ती के शुरुआती कदम पर आ ठहरती है। मुझे उम्मीद है, कि हमारे प्यारे पाठक... आज़ कल के सच्चे नहीं, कच्चे प्रेम की दास्तां जानने के लिए मेरे साथ प्रत्येक भाग में जुड़े रहेंगे। आकर्षक बिंदु यह है, की यह कहानी एक लेखिका के सलाई रूपी कलम से बुनी गई कोई काल्पनिक कथा नहीं, अपितु कॉलेज के दिनों में देखी और महसूस की गई, अपनी ही करीबी दोस्त की सच्ची दास्तां है। जो आपको ना सिर्फ़ आनंद प्रदान करती है, बल्कि रिश्तों को निभाने का अदब भी सिखाती है। (◕ᴗ◕✿)

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