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शोर

1 जनवरी 2016

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मुझे लगता तो नहीं के कह देने से मन की बात शोर कम हो जायेगा मगर कहने की कोशिश में, शायद शोर में छिपे शब्दों को मैं खुद कुछ तो सुन पाऊँ जान पाऊँ समझ पाऊँ के शोर क्यों है.... क्या हुआ है ....! शांत क्यों नहीं मेरा मन एक बहोत लम्बे अरसे से......... शायद लिख के खुद को कह पाऊँ के आखिर बात क्या है शायद उलझन कम हो जाये कुछ साफ़ सुनाई दे.... दिखाई दे शायद कुछ तो के आखिर यह पर्दा पड़ा क्या है...! शोर बहोत गहरा हो गया है, अब समझना ज़रूरी है..... शब्दों के जाल से मेरा अब निकलना बहोत ज़रूरी है...... उस पार की शान्ति तक, अब जल्दी से मेरा पहुंचना ज़रूरी है...... बहोत ज़रूरी है....... बहोत ज़्यादा ज़रूरी है.......!

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