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*शून्य*

14 जनवरी 2024

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गणित लगा ले चाहे जितनी , हल तो शून्य ही पाएगा।
शून्य से तू आया प्यारे ,शून्य में ही जायेगा।
आया था तब  शून्य था ,तेरी मुट्ठी के अंदर।
अंत समय  भी शून्य तेरे ,मुठ्ठी में  भी जायेगा।
गणित लगा ले ......
एक कर्म तू अच्छा कर ले  , शायद  साथ  वही जाए।
जितने बढ़िया कर्म करेगा ,शून्य संग में लग जायेगा।
शून्य से तू बड़ा हुआ है ,फिर भी शून्य नही समझा।
शून्य का  जब भाग  लगेगा ,तू अनंत को पाएगा।
शून्य में तू जोड़ रहा है ,जाने कितने शून्य ही ,
 पर परिणाम तो सुनले बंदे ,शून्य ही तू पाएगा।
शून्य से  कुछ कम नहीं होता ,न ही कुछ भी जुड़ता है।
शून्य से कर गुणा किसी को ,तो सब को ही शून्य  पाएगा।
शून्य शून्य है शून्य रहेगा , शून्य में फर्क नहीं कुछ भी।
शून्य  मैं बैठ कभी  मेरे मित्रा ,शून्य समझ में आएगा।।
शून्य समझ गर आ गया तेरे ,फिर तू चिंता से शून्य हुआ।
वरना शून्य होने खातिर ,बार बार  धरा पर आएगा।
शून्य होना आसान नहीं है होना शून्य सभी चाहे।
शून्य तो बस शून्य शून्य होकर ,शनै शनै रिस जायेगा।
अंत समय बस शून्य  ही सबके  ,  अपनी मुठ्ठी में रह जायेगा।
*कलम घिसाई*

शब्द इन

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कलम घिसाई
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इस पुस्तक में मैने एक सामान्य हिन्दी के शब्दों के माध्यम से विभिन्न गजले लिखी है। आमतौर पर गजल का अर्थ सिर्फ उर्दू काव्य से लिया जाता है। मैने इस मिथक से परे जाकर हिंदी में गीत मय गजल लिखने का प्रयास किया है। कितना सफल हुआ हूं यह पाठक ही तय कर सकते है।

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